Explainer: अमेरिका और यूरोप हुए फेल, गाजा पर चीन ने वो कर दिखाया जो कोई नहीं कर पाया!
Hamas and Fatah: चीन के सरकारी टीवी CCTV ने कहा कि हमास, फतह और अन्य छोटे दल फलस्तीन की भलाई के लिए एकजुट होने पर सहमत हो गए हैं.
Israel-Hamas War: गाजा पर इजरायल-हमास युद्ध का 10वां महीना चल रहा है. अंतरराष्ट्रीय जगत की आवाज को दरकिनार करते हुए इजरायल ने कहा है कि जब तक वो गाजा से हमास की सत्ता पूरी तरह मिटा नहीं देता तब तक वो अपने सैन्य ऑपरेशन को बंद नहीं करेगा. उधर हमास ने सैकड़ों इजरायलियों को बंधक बना रखा है और वो मांग कर रहा है कि इजरायल जब तक गाजा से नहीं हटेगा तब तक वो उनको नहीं रिहा करेगा. कुल मिलाकर दोनों पक्ष किसी की सुनने को तैयार नहीं हैं और हजारों मासूम और निर्दोष लोग जंग का शिकार होकर जान गंवा चुके हैं.
इस बीच मध्य पूर्व से हजारों मील दूर इस मामले में पहली राहत की खबर चीन की राजधानी बीजिंग से आई है. चीन की सरपरस्ती में फलस्तीन के सभी घटकों की बैठक के बाद इस बात पर सहमति बनी है कि युद्ध के बाद वहां पर एक ऐसी सरकार बनेगी जिसमें वहां के सभी दलों की आवाजें होंगी. कहने का मतलब है कि हमास और फतह ग्रुप एक साथ मिलकर गाजा में सरकार बनाने को तैयार हो गए हैं. चीन के सरकारी टीवी CCTV ने इस खबर की पुष्टि करते हुए कहा कि हमास, फतह और अन्य छोटे दल फलस्तीन की भलाई के लिए एकजुट होने पर सहमत हो गए हैं.
अब दिक्कत क्या है?
इस सूचना के सामने आने के साथ ही इजरायल ने कहा कि गाजा को लेकर जिस सरकार में भी हमास होगा वो उसको किसी भी प्रकार की कोई मान्यता नहीं देगा. इजरायल के विदेश मंत्री ने कहा कि गाजा में हमास और फतह की सत्ता को वो स्वीकार नहीं करेगा क्योंकि वो हमास को समूल रूप से नष्ट करके ही दम लेगा. अमेरिका और पश्चिमी देश भी इस मामले में इजरायल के साथ हैं. उनका कहना है कि हमास के गाजा सरकार में शामिल होने संबंधी किसी भी प्रस्ताव को जब तक इजरायल स्वीकार करते हुए मान्यता नहीं देगा तब तक वो भी ऐसा नहीं करेंगे.
दूसरा पेंच फतह ग्रुप से जुड़ा है. फलस्तीन के एक हिस्से वेस्ट बैंक पर इस ग्रुप का शासन है और अमेरिका समेत कई देश यहां के फलस्तीन अथॉरिटी को मान्यता देते हैं. यहां के राष्ट्रपति महमूद अब्बास हैं. अमेरिका का कहना है कि यदि हमास को इजरायल स्वीकार नहीं करता तो गाजा पर भी फतह के नेतृत्व वाले फलस्तीन अथॉरिटी को मान्यता दी जानी चाहिए. इजरायल इस पर भी सहमत नहीं है.
तीसरी अहम बात ये है कि फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास की फतह पार्टी भी हमास के साथ किसी तरह के सत्ता समझौते के पक्ष में कभी नहीं रही. इस वजह से ही पहले भी पूरे फलस्तीन को एकजुट करने की गरज से हमास और फतह को एक साथ लाने के प्रयास हो चुके हैं लेकिन वो कभी कारगर नहीं हुए.
फलस्तीन पर किसका नियंत्रण?
फलस्तीन का एक हिस्सा गाजा पट्टी है जिस पर हमास का 17 वर्षों से शासन है. अमेरिका समेत कई देश हमास को आतंकवादी संगठन मानते रहे हैं. लिहाजा इस हिस्से को कभी फलस्तीन अथॉरिटी के रूप में अमेरिका ने मान्यता नहीं दी. दूसरी तरफ फलस्तीन का एक हिस्सा वेस्ट बैंक के नाम से जाना जाता है. वहां पर फतह पार्टी का नियंत्रण है. अमेरिका इसको ही फलस्तीन अथॉरिटी के रूप में मान्यता देता है और इसके नेता महमूद अब्बास को फलस्तीन के राष्ट्रपति के रूप में स्वीकार करता है.
फतह Vs हमास (Fatah Vs Hamas)
हमास की स्थापना 1987 में हुई थी. ये एक सुन्नी-इस्लामिक कट्टरवादी संगठन है. जबकि फतह ग्रुप (स्थापना 1959) के नेता यासर अराफात थे. 1969 में फलस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन के चेयरमैन बने. उसमें फतह सबसे बड़ा दल था. वो फलस्तीन नेशनल अथॉरिटी के पहले नेता भी थे. 2004 में उनकी मौत के बाद 2006 में जब चुनाव हुए तो उसमें हमास की जीत हुई लेकिन सत्ता के लिए समझौता नहीं हो पाया. 2007 में उसका नतीजा गाजा पट्टी पर हमास के कंट्रोल के रूप में सामने आया.