Munich Massacre: खुले आसमान के नीचे बिखरी थी लाशें, सन्न थी दुनिया; अब क्यों याद आई 52 साल पुरानी मोसाद के बदले की वो कहानी
1972 Munich Olympics: पेरिस ओलंपिक (Paris Olympics 2024) शुरू होने के बाद सोशल मीडिया पर जर्मनी के म्यूनिख में 1972 में हुए ओलंपिक खेलों का वो मनहूस वाकया वायरल हो रहा है, जिसने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया था. खेलों के इतिहास में ये पहला मौका था. जब कुछ फिलिस्तीन से आए नफरती आतंकियों ने कई इजरायली खिलाड़ियों को मौत के घाट उतार दिया था.
Munich Olympics Massacre: पेरिस ओलंपिक का आज (28 जुलाई) दूसरा दिन है. दुनिया में खेलों के इस महाकुंभ (Paris Olympic 2024) को लेकर उत्साह का माहौल है. आयोजन स्थल से लगातार शानदार तस्वीरें आ रही हैं और दो चीजों की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है. पहली है मेडल टैली और दूसरी 52 साल पहले आयोजित हुए म्यूनिख ओलंपिक में हुए आतंकवादी हमले की जब फिलिस्तीनी आतंकियों ने इजरायल के खिलाड़ियों और एथलीटों की खुलेआम दिन दहाड़े हत्या कर दी थी.
इंटरनेशनल इवेंट में हमले की वजह थी पर्सनल
उस आतंकवादी हमले की वजह भले ही पर्सनल थी लेकिन उसने पूरी दुनिया को झकझोर के रख दिया था. जर्मनी के म्युनिख में खेलों का महाकुंभ चल रहा था. दुनिया के कई देशों की तरह वहां इजरायल के खिलाड़ियों का दल पहुंचा था. हमले की वजह इजरायल के जन्म और अस्तित्व से जुड़ी थी. यहूदियों का मुल्क दुनिया के नक्शे में आ चुका था. चारों तरफ से दुश्मनों से घिरा इजरायल, अमेरिकी बैकअप और हथियारों के दम पर सर्वाइव कर रहा था. इजरायल की तरक्की और विकास कुछ फिलिस्तीनियों को रास नहीं आ रहा था. अमेरिका की दरियादिली भी उनके सीने में खंजर की तरह चुभती थी. ये वही समय था जब इजरायल ने फिलिस्तीनी आतंकवादियों के एक बड़े समूह को अपनी जेलों में ठूस दिया था. फिलिस्तीन अपने लोगों को हर हाल में छुड़ाना चाहता था.
234 आतंकवादियों को छोड़ने की थी मांग
उस दौर में फिलिस्तीन से आए आतंकवादियों के पास 'हमास' जैसा प्रचंड आतंकी हमला करने की ताकत नहीं थी. उनकी इतनी औकात भी नहीं थी कि वो इजरायल के अंदर उसका कुछ बिगाड़ पाते. ऐसे में उन्होंने जर्मनी के म्यूनिख ओलंपिक में खेलने गए इजरायली खिलाड़ियों को टारगेट करके अपनी मांगें मनवाने की कोशिश की. 5 सितंबर, 1972 की सुबह ‘ब्लैक सेप्टेम्बर’ ग्रुप के 8 आतंकी खेल गांव में घुसते हैं. आतंकवादी ट्रैकसूट पहने थे, वो एकदम एथलीट लग रहे थे. वो जर्मन पुलिस को धता बताकर इजराइली कैंप में दाखिल हुए.
बिखरी थी लाशें... खौफनाक था मंजर
आतंकियों ने इजरायली कैंप में घुस कर खून बहाया. वहां 11 इजरायली एथलीट्स थे. दहशत फैलाने के लिए उन्होंने दो की हत्या कर दी और 9 को बंधक बना लिया था. फिलिस्तीनी आतंकवादियों ने एथलीटों को बंधक बनाने के बाद तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री गोल्डामेयर को मैसेज भेजा कि अगर वो अपने खिलाड़ियों की सलामती चाहती हैं तो इजरायल फौरन अपनी जेलों में बंद 234 फिलिस्तीनी कैदियों को सुरक्षित गलियारा बनाकर रिहा कर दे.
लेकिन, इजरायल नहीं झुका. ओलंपिक की वजह से जर्मनी की इज्जत दांव पर लगी थी. जर्मनी की तत्कालीन सरकार ने आतंकियों को बंधक ले जाने के लिए बस का इंतजाम कर दिया. इजरायल झुकने के लिए तैयार नहीं था. इसके भड़के आतंकवादियों ने बाकी इजरायली खिलाड़ियों की भी बेरहमी से हत्या कर दी.
इजरायल ने अपनों को खोया
दूसरी ओर इजरायल की सीक्रेट एजेंसी एक्टिव हो चुकी थी. जर्मनी की सेना तैयार थी. अमेरिका की हालात पर पैनी नजर थी. अंदरखाने इस होस्टेज यानी बंधक संकट को खत्म कराने के लिए अंदरखाने काम चल रहा था. 5 सितंबर 1972 को जब कोई और चारा नहीं दिखा तो आतंकवादियों ने बाकी खिलाड़ियों को भी मार डाला.
मोसाद के बदले की कहानी
इस जख्म के बाद इजराइल ने बदला लेने की कसम खाई और अपनी खुफिया एजेंसी मोसाद को असंभव सा लगने वाला टास्क सौंपा. मोसाद तब भी खतरनाक थी और आज भी उसकी गिनती टॉप सीक्रेट एजेंसी में होती है. मोसाद के बाद आतंकियों को मारने का लंबा एक्सपीरिएंस था. उसने हमलावरों को चुन-चुन कर मारा और ये साबित कर दिया कि अगर कोई इजरायल के एक नागरिक या सैनिक को हाथ लगाएगा तो जवाबी हमले में इजरायल के फौजी बिना गिने अपने दुश्मनों को खत्म कर देंगे.