Titanic Sank: 14-15 अप्रैल 1912 की दरम्यानी रात थी. अटलांटिक महासागर की लहरों पर उस दौर का दुनिया का सबसे शानदार जहाज दौड़ रहा था. इस जहाज का नाम था टाइटैनिक, जिसके ऊपर फिल्म भी बन चुकी है. जहाज के बारे में कहा जाता था कि यह कभी नहीं डूबेगा. लेकिन बर्फ की विशाल चट्टान से टकराकर यह अद्भुत जहाज महज 2 घंटे 40 मिनट में अटलांटिक महासागर की गोद में कई फुट नीचे समा गया. 


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समुद्र की गहराइयों में इसका मलबा आज भी दो टुकड़ों में मौजूद है, जो धीरे- धीरे सड़ रहा है. लेकिन यहां बात हम टाइटैनिक की नहीं कर रहे हैं बल्कि 26 साल पहले मिले उस सिग्नल की कर रहे हैं, जो टाइटैनिक के करीब से मिला था और अब जाकर वैज्ञानिकों के हाथों में 'खजाना' लगा है. 1996 में पीएच नार्गोलेट नाम के गोताखोर ने इको साउंडिंग डिवाइस यानी सोनार के जरिए टाइटैनिक के पास रहस्यमयी चीज देखी थी. तब इसके बारे में पता नहीं चल पाया था. इस वस्तु की खोज से जुड़ा अभियान भी शोधकर्ताओं ने चलाया था. 


क्या मिला समुद्र में


जब उस जगह पर समुद्र में खोज की गई तो वहां एक चट्टान मिली. ये चट्टान विभिन्न ज्वालामुखी संरचनाओं से बनी थी. यहां प्रवाल, स्पंज, झींगा और मछलियों की हजारों प्रजातियों के होने की संभावना है. स्कॉटलैंड के एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी में समुद्री जीव विज्ञान और पारिस्थितिकी के प्रोफेसर मुरे रॉबर्ट्स के मुताबिक, जैविक रूप से यह बेहद लुभावनी चीज है. इस चट्टान के करीब जो जीव रहते हैं, वे उन जीवों से काफी अलग हैं, जो रसातल महासागर में रहते हैं. रसातल महासागर वो जगह होती है, जो समुद्र के 3-4 किलोमीटर की गहराई में हो. 


वैज्ञानिकों ने बताई बड़ी खोज


प्रोफेसर रॉबर्ट्स के मुताबिक, नार्गोलेट की डिस्कवरी अहम है. उन्होंने इसे जहाज का मलबा माना था लेकिन यह उससे भी ज्यादा कीमती है. पहले माना जा रहा था कि पत्थर कीचड़युक्त और एकदम सपाट हो सकता है. लेकिन हाल ही में जब गोताखोरों की टीम इस जगह पर गई तो उन्होंने पाया कि इस पर चट्टानी ढांचा भी था. अब चट्टान की करीब से ली गई तस्वीरों और वीडियो का विश्लेषण किया जा रहा है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे समंदर के जीवन को लेकर उनकी समझ और बेहतर होगी.


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