Nepal में प्रचंड सरकार पर संकट, सत्तारूढ़ गठबंधन टूटा, अब पीएम के सामने है ये बड़ी चुनौती
Nepal Politics: नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) ने सोमवार को पार्टी के शीर्ष नेताओं से मुलाकात के बाद सर्मथन वापसी की औपचारिक घोषणा की.
Nepal News: नेपाल में दो महीना पुराना सत्तारूढ़ गठबंधन टूट गया है. पूर्व पीएम के पी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सीपीएन-यूएमएल पार्टी ने पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ के नेतृत्व वाली सरकार से अपना समर्थन वापस लेने का सोमवार को फैसला किया. नेपाल की राजनीति के जानकारों के मुताबिक पीएम प्रचंड के सामने अब सदन में अपना बहुमत साबित करने और विश्वास मत हासिल करने की चुनौती होगी.
नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) ने सोमवार को पार्टी के शीर्ष नेताओं से मुलाकात के बाद सर्मथन वापसी की औपचारिक घोषणा की.
सीपीएन-यूएमएल ने समर्थन वापसी पर क्या कहा?
सीपीएन-यूएमएल के उपाध्यक्ष बिष्णु पौडेल ने कहा, ‘नेपाल के प्रधानमंत्री के अलग तरीके से काम करने और राष्ट्रपति चुनाव से पहले बदले हुए राजनीतिक समीकरण के कारण हमने सरकार से हटने का फैसला किया.’
समर्थन वापसी का यह है मुख्य कारण
ओली के गठबंधन से हटने का मुख्य कारण यह है कि प्रचंड ने राष्ट्रपति पद के लिए नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राम चंद्र पौडेल का समर्थन करने का फैसला किया है. पौडेल विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस से हैं. उनकी पार्टी सत्तारूढ़ गठबंधन से बाहर है.
नेपाल में राष्ट्रपति चुनाव नौ मार्च को होगा. ओली ने पौडेल के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए सीपीएन-यूएमएल पार्टी के सदस्य सुबास नेमबांग को नामित किया है.
प्रंचड के सामने अब बड़ी चुनौती
पीएम प्रचंड के सामने अब बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है. उन्हें अब सदन में अपना बहुमत साबित करने और विश्वास मत हासिल करना होगा. नेपाल में सरकार बनाने के लिए कम से कम 138 सांसदों का समर्थन प्राप्त करना अनिवार्य होता है.
हालांकि पीएम प्रचंड को विश्वासमत लेना चाहिए या नहीं इस पर जानकार बंटे हुए हैं. कई जानकार ऐसा मान रहे हैं कि उन्हें विश्वासमत नहीं लेना चाहिए. जबकि कुछ का यह भी कहा है कि सबसे बड़े गठबंधन सहयोगी ने सरकार से समर्थन वापस लिया है इसलिए पीएम को सदन में विश्वासमत हासिल करना चाहिए.
क्या कहता है नेपाल संविधान?
नेपाल के संविधान के मुताबिक यदि कोई दल सरकार से समर्थन वापस ले लेता है या पार्टी टूट जाती है तो पीएम को विश्वासमत दोबारा हासिल करना चाहिए. प्रधानमंत्री को तीस दिनों के भीतर सदन में विश्वास प्रस्ताव पेश करना चाहिए और इस पर मतदान होना चाहिए.
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