पाकिस्तान में ईशनिंदा से जुड़े फैसले पर बवाल, चीफ जस्टिस को पकड़ने सुप्रीम कोर्ट में घुस गई कट्टरपंथी भीड़
Pakistan Supreme Court News: ईशनिंदा मामले में फैसले से नाराज भीड़ ने पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट पर ही हमला बोल दिया. उग्र कट्टरपंथियों की भीड़ SC के परिसर में घुस गई.
Pakistan Supreme Court Attacked: पाकिस्तान में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का जनता हिंसक विरोध कर रही है. पड़ोसी मुल्क में न्यायपालिका के खिलाफ कट्टरपंथियों ने मोर्चा खोल रखा है. फरवरी में दिए गए फैसले के बाद से ही विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं. सोमवार को, इस्लामाबाद में नाटकीय घटनाक्रम के दौरान, कई प्रदर्शनकारी सुप्रीम कोर्ट परिसर में घुस गए. रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले दाग लोगों को भगाया.
आलमी मजलिस तहफ्फुज-ए-नबूवत द्वारा आयोजित इस विरोध प्रदर्शन में मांग की गई कि अदालत मुबारक सानी मामले में अपने फैसले को पलट दे. फरवरी से फैसले में तीन बार बदलाव हो चुका है. इसके बावजूद, 7 सितंबर से पहले फैसले को अंतिम रूप से वापस लेने की मांग की गई. एक प्रदर्शनकारी ने चेतावनी दी कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो 'इस्लामाबाद में शांति नहीं रहेगी.'
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सुप्रीम कोर्ट और संसद तक पहुंच गई भीड़
सोमवार को जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (जेयूआई) और जमात-ए-इस्लामी (जेआई) समेत विभिन्न धार्मिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने मजलिस-ए-तहफ्फुज-ए-खतमे नबुव्वत के बैनर तले मुबारक सानी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया. उन्होंने कोर्ट से इसे पूरी तरह से वापस लेने की मांग की. सोशल मीडिया पर आई तस्वीरों में प्रदर्शनकारियों को पुलिस द्वारा आंसू गैस का इस्तेमाल करके रोकने के प्रयासों के बावजूद सुप्रीम कोर्ट के जज गेट में घुसने की कोशिश करते हुए दिखाया गया. पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज और पानी की बौछारों का भी इस्तेमाल किया, लेकिन प्रदर्शनकारी आखिरकार संसद भवन और सुप्रीम कोर्ट की इमारत तक पहुंच गए.
मुबारक सानी केस क्या है?
पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने 6 फरवरी को एक ऐतिहासिक फैसले में, मुबारक सानी नाम के अहमदिया को रिहा कर दिया था. सानी को पिछले साल तफ़सीर-ए-सगीर बांटने करने के लिए गिरफ्तार किया गया था. द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, यह तफ़सीर-ए-कबीर का एक छोटा संस्करण है जो अहमदिया संप्रदाय के संस्थापक के बेटे मिर्जा बशीर-उद-दीन महमूद अहमद द्वारा कुरान की 10-खंड वाली व्याख्या है.
सानी पर 2021 के पंजाब कानून का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था जो 'दूसरे पंथ की' कुरान से जुड़ी टिप्पणियों के मुद्रण और वितरण पर रोक लगाता है. हालांकि, सानी ने दलील दी कि उन्होंने कानून लागू होने से पहले 2019 में किताब बांटी थी. पाकिस्तान के चीफ जस्टिस काजी फैज ईसा ने सानी के पक्ष में फैसला सुनाया. उन्होंने इस सिद्धांत का हवाला दिया कि आपराधिक कानूनों को पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं किया जा सकता है.
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शुरू में फैसले पर किसी का ध्यान नहीं गया लेकिन हिंसक ईशनिंदा विरोधी प्रदर्शनों के लिए कुख्यात तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) के सोशल मीडिया पर हवा देने के बाद मामले ने तूल पकड़ा. कट्टरपंथी सुन्नी समूहों ने नाराजगी जताते हुए चीफ जस्टिस पर अहमदिया का पक्ष लेने का आरोप लगाया. 23 फरवरी को, हजारों पाकिस्तानियों ने मुख्य न्यायाधीश ईसा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, क्योंकि उन्हें लगा कि यह ईशनिंदा से संबंधित है.
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस ईसा के फैसले का बचाव करते हुए एक बयान जारी किया, जिसमें साफ किया गया कि यह पाकिस्तान के इस्लामी संविधान का उल्लंघन नहीं करता है. बढ़ते विवाद के बीच, पंजाब सरकार ने एक समीक्षा याचिका दायर की. कई धार्मिक दलों ने भी याचिकाएं दायर कीं, लेकिन अदालत ने संवैधानिक और इस्लामी कानून के तर्कों पर ध्यान केंद्रित करते हुए उनके अधिकार को सुनवाई तक सीमित कर दिया.
इसके बाद एक दुर्लभ कदम उठाया गया - 24 जुलाई को चीफ जस्टिस ईसा सहित तीन जजों की पीठ ने फैसले की फिर से जांच की. जजों ने साफ किया कि उनका निर्णय केवल पूर्वव्यापी प्रभाव के मुद्दे पर आधारित था और उन्होंने फिर से पुष्टि की कि अहमदिया अभी भी मुस्लिम के रूप में पहचान नहीं कर सकते हैं या अपने पूजा स्थलों के बाहर अपने विश्वासों का प्रचार नहीं कर सकते हैं.
इस फैसले से सुन्नी चरमपंथी नहीं माने. अब पंजाब सरकार ने एक बार फिर कोर्ट के निष्कर्षों को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है. इसमें दलील रखी गई है कि ये गलत धारणाओं पर आधारित थे. कोर्ट 22 अगस्त को याचिका पर ‘तत्काल’ सुनवाई करने वाला है.