मरते-मरते पृथ्वी से 30 गुना बड़े ग्रह को निगल गया तारा, वैज्ञानिक बोले- पृथ्वी का भी यही हाल होगा
हाइड्रोजन के खत्म होने पर वो अपने हीलियम को भी फ्यूज करने लगते हैं. यही वो अवस्था होती है जब उनसे बड़ी मात्रा में ऊर्जा निकलती है और फिर उनका आकार बढ़ने लगता है. ये ऐसी स्थिति होती है कि वो बढ़ते-बढ़ते मूल आकार से 1000 गुना तक ज्यादा बड़े हो जाते हैं.
क्या आपने कभी किसी तारे द्वारा ग्रह को निगलने के बारे में सुना है? ये बात अजीब और हैरान करने वाली लग सकती है लेकिन ये सच है. दरअसल, वैज्ञानिकों ने एक ऐसे तारे के बारे में जानकारी जुटाई है जो खत्म होते-होते अपने ही ग्रह को निगल गया. साथ ही वैज्ञानिकों ने इस बात की संभावना भी जताई है कि आने वाले समय में पृथ्वी के साथ भी ऐसा ही हो सकता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, 500 करोड़ साल बाद पृथ्वी को भी सूर्य अपने अंदर ऐसे ही समा लेगा. पृथ्वी ही नहीं, बुध और शुक्र को भी सूर्य निगल लेगा.
नेचर जर्नल में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, मरते-मरते ग्रह को निगलने वाला तारे की पृथ्वी से दूरी 13 हजार लाइट ईयर था. वैज्ञानिकों ने इस तारे के अंतिम क्षणों को सफेद रौशनी के रूप में कैद किया. वैज्ञानिकों के मुताबिक ये तारा धीरे-धीरे बढ़ता गया और अपने वास्तविक आकार से 1000 गुना ज्यादा बड़ा हो गया था. रिपोर्ट के मुताबिक इस तारे ने जिस ग्रह को अपने अंदर समाहित किया वो पृथ्वी से 30 गुना बड़ा था.
हाइड्रोजन परमाणुओं को हीलियम के साथ मिलाकर तारे रौशन होते हैं, लेकिन हाइड्रोजन के खत्म होने पर वो अपने हीलियम को भी फ्यूज करने लगते हैं. यही वो अवस्था होती है जब उनसे बड़ी मात्रा में ऊर्जा निकलती है और फिर उनका आकार बढ़ने लगता है. ये ऐसी स्थिति होती है कि वो बढ़ते-बढ़ते मूल आकार से 1000 गुना तक ज्यादा बड़े हो जाते हैं और अपने ही ग्रहों को निगलना शुरू कर देते हैं. इन तारों को रेड जियांट्स कहा जाता है.
वैज्ञानिकों ने अपने रिसर्च के दौरान एक खगोलिय सर्वे का इस्तेमाल किया और एक हैरान कर देने वाली रौशनी देखी जो तेजी से बढ़ रही थी और अचानक अपने आकार से काफी बड़ा होने के बाद बुझ गई. इसके बारे में जानकारी जुटाने के लिए वैज्ञानिकों ने इसमें हुई कैमिकल कंपोजीशन के बारे में जानकारी जुटाई. हालांकि, शुरू में उन्हें लगा कि वो किसी नोवा को देख रहे हैं लेकिन फिर उन्होंने टेलीस्कोप की मदद से जो देखा उससे इस नतीजे पर पहुंचे कि फ्लैश से निकलने वाली ऊर्जा पहले वाले तारे के मुकाबले 1000 गुना कम थी. इसके बाद वैज्ञानिकों को समझ आया कि इससे पहले जो तेज रौशनी उन्होंने देखी थी वो उस तारे की आखिरी अवस्था थी जो फिर बुझ गई.