काबुल: अफगानिस्तान (Afghanistan) पर तालिबान का शिंकजा कसा तो राष्ट्रपति समेत कई नेता देश छोड़कर चले गए. अफगान प्रांतों पर लगातार हुए कब्जे के बाद हालात तेजी से बिगड़े तो मानो मुल्क की आवाज को ही तालिबान (Taliban) के खौफ में झोंक दिया गया. अमेरिका (US) 20 साल तक अफगानिस्तान में रहा लेकिन उसके हटने के 10 दिन बाद ही तालिबान वहीं पहुंच गया जहां से भागा था. अमेरिकी फौज हटते ही अफगानिस्तान इस तरह बिखर जाएगा, ये कल्पना किसी ने भी नहीं की थी.


सुर्खियों में है एक नाम


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अमेरिका की अपील पर कुछ साल पहले पाकिस्तान (Pakistan) की जेल से रिहा तालिबानी कमांडर अब्दुल गनी बरादर (Abdul Gani Baradar) फिलहाल दुनियाभर की सुर्खियों में है. बरादर अफगानिस्तान में 20 साल से जारी युद्ध के विजेता के तौर पर उभरा है. वो फिलहाल तालिबानी राजनीति का चीफ और संगठन का सबसे बड़ा पब्लिक फेस है. ऐसे में चिंता की बात उसका हालिया बयान है जिसमें उसने कहा कि तालिबान की असली परीक्षा अभी शुरू हुई है और उसे मुल्क की खिदमत करनी है.


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कौन है अब्दुल गनी बरादर?


1968 में उरुजगान में जन्मे बरादर ने साल 1980 के दशक में सोवियत संघ के खिलाफ अफगान मुजाहिदीन में लड़ाई लड़ी थी. साल 1992 में रूसियों को बाहर निकालने के बाद और देश में प्रतिद्वंद्वी गुटों के युद्ध के बीच बरादर ने अपने पूर्व कमांडर और बहनोई, मोहम्मद उमर के साथ कंधार में एक मदरसा स्थापित किया. उसे फरवरी, 2010 में गिरफ्तार किया गया. दोनों ने मिलकर तालिबान की स्थापना की, जो देश के धार्मिक शुद्धिकरण और एक अमीरात के निर्माण के लिए समर्पित युवा इस्लामी विद्वानों के नेतृत्व में हुआ एक आंदोलन था.


उसे फरवरी, 2010 में गिरफ्तार किया गया. बरादर को पाकिस्तानी शहर कराची से अमेरिका -पाकिस्तान के संयुक्त अभियान में पकड़ा गया. साल 2012 के अंत तक मुल्ला बरादर के बारे में बहुत कम चर्चा होती थी. हालांकि उसका नाम तालिबान कैदियों की सूची में सबसे ऊपर था, जिन्हें शांति वार्ता को प्रोत्साहित करने के लिए अफगान रिहा करना चाहते थे.


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द गार्जियन की एक रिपोर्ट में बरादर को जीत का प्रमुख रणनीतिकार बताया गया है. बरादर ने पांच साल के तालिबानी शासन में सैन्य और प्रशासनिक भूमिकाएं निभाईं थीं. तब उसके पास उप रक्षा मंत्री का प्रभार भी था. तालिबान के 20 साल के निर्वासन के दौरान, बरादर ने शक्तिशाली सैन्य नेता और माइक्रो पॉलिटिकल कंट्रोलर होने का रुतबा हासिल किया.


2018 में संभाली बातचीत की कमान


रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018 में अमेरिकी रवैया बदला तो पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खास और अफगान दूत, जालमय खलीलजाद ने पाकिस्तानियों से बरादर को रिहा करने के लिए कहा, ताकि वो कतर में चल रही बातचीत की अगुवाई कर सके. दरअसल अमेरिका को इस बात का भरोसा था कि बरादर सत्ता के साझाकरण या हस्तांतरण दोनों स्थितियों में अहम भूमिका निभाएगा.


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