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नई दिल्ली: अफगानिस्तान (Afghanistan) पर तालिबान (Taliban) के कब्जे के बाद पूरी दुनिया खौफ में है और सभी देश अपने नागरिकों को किसी भी तरह वहां से निकालने में जुट गए हैं. भारत ने भी रविवार को 129 भारतीयों की एअर इंडिया (Air India) के विशेष विमान के जरिए काबुल (Kabul) से रेस्क्यू किया है. कुछ देश तो तालिबान सरकार को मान्यता देने के खिलाफ हैं जबकि चीन (China) तालिबान के साथ दोस्ती करना चाहता है.
चीन ने सोमवार को कहा कि वह तालिबान के साथ दोस्ताना रिलेशन बनाना चाहता है और अफगानिस्तान में तालिबान शासन को मान्यता देने के लिए भी तैयार है. इसके अलावा चीन ने साफ कर दिया कि वह काबुल स्थित अपने दूतावास को बंद नहीं करेगा. चीन के अलावा पाकिस्तान, तुर्की और रूस जैसे देश भी काबुल में अपने दूतावास को ऑपरेशनल रखने को तैयार हैं. इससे इतर कनाडा जैसा देश पहले ही तालिबान की घुसपैठ के बाद अफगानिस्तान से अपने राजनीतिक संबंध तोड़ चुका है.
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आखिर क्या वजह है कि तालिबान के लिए चीन के दिल में इतनी हमदर्दी पनप रही है? इसकी वजह है कि चीन लालच देकर तालिबान के जरिए अफगानिस्तान में अपनी जड़ें जमाना चाहता है. इससे पहले वहां अमेरिकी फोर्स की तैनाती थी और उस दौरान चीन की दाल गलना मुश्किल हो रही थी. अब अमेरिकी सेना अफगानिस्तान से वापसी कर चुकी है और ऐसे में चीन वहां अपने लिए मौके तलाश रहा है.
इसके अलावा तालिबान की दौलत पर भी चीन की नजर है. ड्रैगन के कई प्रोजेक्ट अफगानिस्तान में शुरू हो सकते हैं और पुननिर्माण के नाम पर वह अपने कारोबार को बढ़ावा देना चाहता है. ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक चीन का साफ मानना है कि तालिबान को मान्यता देने में किसी तरह का कोई नुकसान नहीं है और जो लोग ऐसे नहीं करना चाहते हैं, उन्हें शायद विदेश नीति की समझ नहीं है.
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चीन ने काबुल में अपने मौजूदगी बढ़ाने की कोशिश काफी पहले से शुरू कर दी थी. इसी मकसद से 28 जुलाई को चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने तालिबान के डेलीगेशन से मुलाकात भी की थी और इस बैठक में तालिबानी नेता मुल्ला अब्दुल गनी बरादर भी शामिल हुआ था. ऐसा तब किया जा रहा है जब दुनिया के कई मुल्क तालिबान को आतंकी संगठन मानते हैं और खुलकर उसकी खिलाफत करते आए हैं.
दरअसल अफगानिस्तान में प्राकृतिक खनिजों का भंडार है जिस पर चीन की नजर है. वहां डेवलेपमेंट के नाम पर चीन अपनी घुसपैठ करेगा जिससे वहां के भंडार को लूटने में मदद मिल सके. इसके विपरीत तालिबान भी जानता है कि बंदूक के दम पर ज्यादा दिन तक अफगानिस्तान की सत्ता नहीं हथियाई जा सकती और उसे भी किसी बड़े देश की मदद लेनी ही पड़ेगी. यही वजह है कि तालिबान और चीन एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं.