एक आंख खोलकर सोएंगे ईरान के रहनुमा, मिडल ईस्ट की आग बुझाने आ रहा सबसे बड़ा `डॉन`; एक्सपर्ट्स की चेतावनी
Israel Iran War : दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की जीत ने ईरान के नेताओं की नींद उड़ा दी है. विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की वापसी मिडिल ईस्ट में भड़की हिंसा को काबू पाने में बहुत मददगार साबित होगी.
Donald Trump Second Term: डोनाल्ड ट्रंप का दूसरा कार्यकाल ना केवल अमेरिका को महान बनाने के एजेंडे में टॉप पर होगा. बल्कि लंबे समय से युद्ध की आग में जल रहा मिडिल ईस्ट भी ट्रंप के एजेंडे में प्रमुखता से रहेगा. विशेषज्ञों ने तो यहां तक चेतावनी दे डाली है कि डोनाल्ड ट्रंप की वापसी के बाद ईरान के नेताओं को ''एक आंख खोलकर सोना चाहिए". जाहिर है इस क्षेत्र में बढ़ते जा रहे तनाव को दूर करने के लिए व्हाइट हाउस के 'डॉन' डोनाल्ड ट्रंप जल्द फैसले लेंगे.
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ईरान पर बढ़ेगा दबाव
पिछले साल 7 अक्टूबर को हमास द्वारा किए गए नरसंहार के बाद से शुरू हुए संघर्ष ने इस क्षेत्र को तबाह कर दिया है. इजराइल भी ईरान के आतंकी प्रतिनिधियों को खत्म करने के लिए जमकर जवाब दे रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप अपने कार्यकाल की शुरुआत से ही ईरान पर दबाव बनाएंगे और उस पर लगाम लगाने के लिए इजरायल के हाथ मजबूत करेंगे.
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मिडिल ईस्ट की भी बदलेगी तस्वीर
साथ ही कुछ इजरायली अधिकारियों का मानना है कि ट्रंप उस क्षेत्र में "नया मध्य पूर्व" लाने की तैयारी कर सकते हैं जो पूरी तरह से युद्ध के कगार पर है. ट्रंप से ऐसी उम्मीद किए जाने के पीछे कई कारण हैं, जो उनके पिछले कार्यकाल पर एक नजर डालने से ही समझे जा सकते हैं. जैसे- उनकी अप्रत्याशितता, सहयोगियों को सतर्क रखना और अपने दुश्मनों में ज्यादा से ज्यादा डर पैदा करना.
सुरक्षा मुद्दों पर ट्रंप की दृढ़ता
द सन द्वारा विशेषज्ञों से की गई बातचीत के अनुसार हेनरी जैक्सन सोसाइटी के कार्यकारी निदेशक डॉ एलन मेंडोजा ने कहा, "ट्रंप सुरक्षा मुद्दों पर दृढ़ थे. साथ ही उन्होंने लंबे समय से चली आ रही समस्याओं को हल करने के लिए अपने साहसिक विचारों को सामने रखने की इच्छा भी जताई थी. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो इस क्षेत्र के मसलों को निपटाने के लिए ट्रंप भविष्य में क्या कर सकते हैं.
गाजा-लेबनान का मुद्दा सबसे ऊपर
गाजा और लेबनान में युद्ध खत्म करना संभवतः ट्रंप के एजेंडे में सबसे ऊपर होगा. इजरायल के पूर्व राजनयिक एलोन पिंकस ने सीएनएन को बताया कि ट्रंप उन युद्धों को एक ज्वलंत मुद्दे के रूप में अपनी मेज पर नहीं रखना चाहते हैं. ऐसे में साफ है कि वे शुरुआत में ही इनका निपटारा कर देंगे.
हालांकि ट्रंप ईरान पर सीधे हमला करने से बचेंगे, लेकिन वे पहले की तरह इजरायल के जरिए ईरान को काबू में करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. बता दें कि ट्रंप की ईरान नीतियों में अमेरिका को ईरान परमाणु समझौते से अलग करना और गंभीर प्रतिबंध लगाना शामिल रहा है. अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रंप इन प्रतिबंधों को बढ़ा भी सकते हैं.
संभलकर रहे ईरान
डॉ. मेंडोजा ने कहा, जाहिर है ट्रंप के पिछले कार्यकाल की नीतियों और मौजूदा रवैया को देखते हुए "ईरान को ट्रंपकी वापसी के बारे में बहुत सतर्क रहना चाहिए. उनका प्रशासन तेहरान की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं के विरोध और हिज्बुल्लाह और हमास जैसे समूहों को दिए जा रहे समर्थन को लेकर स्पष्ट था."
वहीं प्रोफेसर स्वैन ने कहा कि ट्रंप की अप्रत्याशितता से अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में कुछ फायदे मिल सकते हैं - खासकर बातचीत में. साथ ही यह यह उनके दुश्मनों में और भी अधिक डर पैदा करेगा. क्योंकि जब बात वैश्विक मामलों की आती है तो ट्रंप बहुत ज्यादा अप्रत्याशित व्यक्ति के तौर पर सामने आते हैं. उस पर उनकी व्यापक जीत का असर अमेरिकी सहयोगियों और दुश्मनों दोनों पर समान रूप से होगा.
एक आंख खोलकर सोएं ईरान के नेता
डॉ मेंडोजा ने तो यहां तक कहा, "अब ईरान के नेताओं को एक आंख खोलकर सोना चाहिए. अगर मैं तेहरान में मुल्ला होता, तो मैं वास्तव में बहुत चिंतित होता, क्योंकि वे पहले से ही जानते हैं कि ट्रंप के पास उनका पुराना रिकॉर्ड है. ट्रंप उन उन पर अधिकतम दबाव बनाना चाहते था.
सितंबर में, ट्रंप को ईरान द्वारा उनकी हत्या की साजिशों के बारे में भी जानकारी दी गई थी. भले ही इन आरोपों को ईरान ने "निरर्थक और दुर्भावनापूर्ण" कहकर खारिज कर दिया था लेकिन ट्रंप इसे भूलेंगे नहीं.
समाधान खोजने का प्रस्ताव
हालांकि ट्रंप ने अब तक यह नहीं बताया है कि वह गाजा और लेबनान में चल रहे युद्ध से कैसे निपटेंगे. लेकिन उन्होंने पिछले कार्यकाल में इजरायल और फिलिस्तीनियों के बीच डील कराने का प्रयास किया. उन्होंने "समृद्धि से शांति " नाम का "टू-स्टेट" हल पाने का प्रस्ताव रखा. यह प्रस्ताव फिलिस्तीनियों के लिए कड़ी शर्तों के साथ था लेकिन दूसरी ओर दिलचस्प भी था क्योंकि इसमें केवल फिलिस्तीनियों को संप्रभुता प्राप्त करना शामिल नहीं था. बल्कि एक ऐसा ढाँचा तैयार करना शामिल था जो यह सुनिश्चित करेगा कि दोनों पक्ष एक-दूसरे की सुरक्षा से समझौता किए बिना सह-अस्तित्व में रह सकें.