Joe Biden Vs Donald Trump: जब अमेरिकी विदेश नीति के बारे में बड़े सवाल चुनाव से टकराते हैं, तो यह एक मौजूदा राष्ट्रपति के लिए शायद ही अच्छी खबर होती है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के सामने भी कुछ मुद्दे आए, जैसे रूस का यूक्रेन पर हमला. बाइडेन से पहले उनके जैसे अन्य नेताओं के सामने भी कुछ मुद्दे आए थे, जैसे अफगानिस्तान से वापसी.


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इसके साथ ही गाजा के खिलाफ इजराइल की जवाबी कार्रवाई और ईरान की भूमिका भी कुछ अन्य मुद्दे हैं. इन संकटों के नतीजे और इस फैक्ट को देखते हुए कि ये चुनाव प्रचार के दौरान सामने आये हैं, यह हैरानी की बात नहीं है कि बाइडेन की विदेश नीति पर सबकी नजरें टिकी हैं.  


क्या पलट जाएगा वोटर्स का फैसला?


तो क्या बाइडेन की विदेश नीति नवंबर में वोटर्स के फैसले को कैसे प्रभावित कर सकती है? चलिए समझते हैं. कई राजनीतिक पंडित बाइडेन की विदेश नीति की परेशानियों की शुरुआत को अफगानिस्तान से अमेरिका की नाकाम वापसी के तौर पर बताते हैं. कुछ राजनीतिक पंडितों के अनुमान के मुताबिक, अकेले अफगानिस्तान के मुद्दे में चुनावी प्रभाव डालने की संभावना नहीं थी. 


जरूरी नहीं कि अन्य वैश्विक संकटों के मामले में भी ऐसा ही हो, जो अब बाइडन प्रशासन को जकड़े हुए हैं - खासकर गाजा को लेकर इसका रिएक्शन. वोटर क्या सोच रहा है, इसका अनुमान लगाना बेहद मुश्किल है, खासकर ऐसे जब चुनाव का दिन अभी दूर है. हालांकि चुनावों में वोटर्स के इरादे पर अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के प्रभाव के इतिहास पर एक नज़र डालने से हमें यह समझने में मदद मिल सकती है कि अमेरिकी, दुनिया में अपनी भूमिका के बारे में कैसे सोचते हैं और इस बार उनके नेता की पसंद पर क्या प्रभाव पड़ सकता है. 


गाजा को लेकर बंटा बाइडेन प्रशासन


वियतनाम जंग के मुद्दे की तरह, आज की डेमोक्रेटिक पार्टी गाजा पर बाइडेन प्रशासन की रिएक्शन पर बंटी हुई है. ईरान मुद्दे ने भी पिछले अमेरिकी चुनावों में बड़ी भूमिका निभाई है. पिछले हफ्ते की घटनाओं को देखते हुए, यह मुद्दा फिर से ऐसा कर सकता है. साल 1979 की ईरानी क्रांति और उसके बाद ईरानी बंधक संकट से निपटने में लापरवाही ने तत्कालीन डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति जिमी कार्टर को आधुनिक अमेरिकी इतिहास की सबसे अपमानजनक हार दी थी. 


साल 1980 के चुनाव से एक साल पहले और ईरानी क्रांति के बीच में उग्रवादी छात्रों ने तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर कब्जा कर लिया और 50 से अधिक अमेरिकियों को बंधक बना लिया था. यह संकट एक साल से ज्यादा वक्त तक खिंचा, लाचार अमेरिकी अधिकारी इसे देखते रहे. दिसंबर 1979 में अफगानिस्तान पर सोवियत संघ के हमले ने कार्टर की स्थिति बेहद कमजोर कर दी. उनके रिपब्लिकन प्रतिद्धंद्वी रोनाल्ड रीगन ने अमेरिका को फिर से महान बनाने का वादा करते हुए कार्टर की कमजोरियों को पूरे गाजे-बाजे के साथ उठाया. कार्टर हार गए और रीगन के शपथग्रहण के दिन बंधकों को रिहा कर दिया गया. वह समय कोई संयोग नहीं था.


कार्टर की परोक्ष कमजोरी के बारे में पारंपरिक टिप्पणी अक्सर इस बात पर ध्यान देने में विफल रहती है कि असफल बचाव प्रयास के बाद कार्टर प्रशासन राष्ट्रपति के अंतिम दिन तक ईरान के साथ लंबी बातचीत में लगा रहा. यह वह बातचीत थी जिसके बाद बंधकों को रिहा करने का समझौता हुआ. संकट के समाधान में रीगन के प्रचार की भूमिका के बारे में सवाल बने हुए हैं. 


(इनपुट- द कॉन्वर्सेशन)