नई दिल्ली: क्योंकि, कल हुए चुनाव के बाद इज़राएल को अपना नया चौकीदार मिल चुका है. और इस नए चौकीदार का नाम है, बेंजामिन नेतन्याहू. वैसे तो बेंजामिन नेतन्याहू ने लगातार चौथी बार जीत हासिल की है. और अब वो 5वीं बार इज़राएल के प्रधानमंत्री बनने वाले हैं.


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लेकिन इस बार की जीत कई मायनों में नई है. क्योंकि, इस बार के चुनाव में उनके सामने इज़राएल के पूर्व सेना प्रमुख की चुनौती थी. और ऐसा माना जा रहा था, कि Israel Defense Forces के पूर्व Chief of General Staff, Benjamin Gantz इज़राएल के नए प्रधानमंत्री बन सकते हैं. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.  


शुरुआती नतीजों में बेंजामिन नेतन्याहू की Likud Party को 120 में से 35 सीटें मिली हैं. जबकि, उनके विरोधी  Blue And White गठबंधन को भी 35 सीटें ही मिली हैं. यानी किसी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है.


इज़रायल के इतिहास में आज तक कोई भी पार्टी पूर्ण रूप से बहुमत में नहीं आई है. और वहां पर हमेशा से गठबंधन की सरकारें बनी हैं. और इस बार भी गठबंधन वाले खेल में, बेंजामिन नेतन्याहू अच्छे नंबरों से पास हो गए हैं. क्योंकि, उनकी खुद की पार्टी एक Right Wing Party यानी दक्षिणपंथी पार्टी है. और इज़राएल की कई छोटी-छोटी दक्षिणपंथी पार्टियां उनका समर्थन कर रही हैं. इस लिहाज़ से देखा जाए, तो बेंजामिन नेतन्याहू के गठबंधन के पास इस वक्त 65 सीटें हैं. हालांकि, इसे आप फाइनल Tally मत मानिए. क्योंकि, इज़राएल के चुनाव के अंतिम नतीजे शुक्रवार तक आने की संभावना है. ऐसे में ये भी हो सकता है, कि बेंजामिन नेतन्याहू की कुछ सीटें और बढ़ जाएं.


आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इज़राएल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को जीत की बधाई दी है. और कहा है, कि वो भारत के गहरे मित्र हैं. और इस नई शुरुआत के बाद भारत और इज़राएल के रिश्ते एक नए मुकाम पर पहुंचेंगे.


यहां आपको बेंजामिन नेतन्याहू की जीत का एक दूसरा पहलू भी देखना चाहिए. क्योंकि, उनकी जीत के बाद अब दुनिया की व्यवस्था यानी World Order में भी कई बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं. इस नई विश्व व्यवस्था में ऐसे देश एक साथ आ सकते हैं, जिनका राष्ट्र अध्यक्ष...राष्ट्रवाद की बात करता है और अपने देश के हितों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है. आप इसे दुनिया के सबसे मज़बूत राजनेताओं की एक नई राष्ट्रवादी टीम भी कह सकते हैं. इसे समझने के लिए कुछ उदाहरण देखिए.


पिछले साल Russia की राजनीति में राष्ट्रपति के रूप में व्लादिमीर पुतिन की एक और पारी की शुरुआत हुई थी. और इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह थी, पुतिन का राष्ट्रवाद. वर्ष 2018 में राष्ट्रपति पद के चुनाव में पुतिन को 76 फीसदी से ज़्यादा वोट मिले थे. Russia में पुतिन का राष्ट्रवादी चेहरा हमेशा छाया रहता है. क्योंकि वो देश के हित में कड़े फैसले लेने से नहीं हिचकते. 


ठीक इसी तरह अमेरिका के राष्ट्रपति Donald Trump की छवि भी एक राष्ट्रवादी नेता की है. और वो हमेशा अमेरिका के लोगों की नौकरियों और उनके हितों से जुड़े मुद्दे उठाते हैं. अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव अगले साल होना है. और दुनिया में जिस तरह राष्ट्रवादी सरकारें बन रही हैं उसे देखते हुए अगर Trump जीत जाते हैं तो इस पर किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए.


ठीक इसी तरह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी देशहित और राष्ट्रवाद की बात करते हैं. इस बार लोकसभा चुनाव में भी राष्ट्रवाद बीजेपी का मुख्य हथियार है. इस वक्त देश में राष्ट्रवाद को लेकर एक लहर चल रही है. लोगों के मन में ऐसी भावना है, कि आतंकवाद और देश की सुरक्षा के मुद्दे पर भारत को कड़े फैसले लेने की ज़रुरत है. ऐसे में अगर नरेंद्र मोदी की जीत होती है तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. 


इस वक्त Russia, Turkey, Israel, Hungary, Poland, United States और Brazil जैसे देश ऐसे हैं, जहां पर राष्ट्रवादी विचारधारा वाली पार्टियां सत्ता में हैं. Britain, Canada और Australia जैसे देशों में भी राष्ट्रवाद की जड़ें मज़बूत होती जा रही हैं. जापान में शिंज़ो आबे की पार्टी कुछ वक्त पहले तक एक Liberal Party के तौर पर पहचानी जाती थी. लेकिन अब वहां भी राष्ट्रवाद ने अपनी जड़ें जमा ली हैं. अगर आप भारत के संदर्भ में देखें, तो इन सभी देशों के राष्ट्र अध्यक्षों के साथ भारत के प्रधानमंत्री के अच्छे रिश्ते हैं. सभी एक दूसरे के दोस्त हैं. और सबकी नेटवर्किंग भी अच्छी है. ऐसे में अगर प्रधानमंत्री मोदी दोबारा चुनकर आते हैं, तो वो पुतिन, ट्रम्प, नेतन्याहू और अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ मिलकर एक नया World Order यानी एक नई विश्व व्यवस्था.. बना सकते हैं.