नई दिल्लीः बौद्ध धर्म से संबंधित महान ग्रंथ है त्रिपिटक. इसी ग्रंथ का एक हिस्सा जातक कथाएं कहलाता है. इन कथाओं में महात्मा बुद्ध के पूर्वजन्मों की कथाएं हैं, जिनमें उन्होंने कई अलग-अलग जीवों के रूप में जन्म लेकर संसार का कल्याण किया. इन्हीं कहानियों में एक कथा कुछ ऐसी भी है.


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शेर को मिला सियार
प्राचीन हिमालय की किसी कन्दरा में एक बलिष्ठ शेर रहा करता था. एक दिन वह एक भैंसे का शिकार कर और उसे खाकर अपनी गुफा को लौट रहा था. तभी रास्ते में उसे एक सियार मिला. वह काफी मरियल और बीमार था. सियार ने उसे लेटकर दण्डवत प्रणाम किया.



जब शेर ने उससे ऐसा करने का कारण पूछा तो उसने कहा, “सरकार मैं आपका सेवक बनना चाहता हूं . कुपया मुझे आप अपनी शरण में ले लें . मैं आपकी सेवा करूंगा और आपके द्वारा छोड़े गए शिकार से अपना गुजर-बसर कर लूंगा.” शेर ने उसकी बात मान ली और उसे मित्रवत् अपनी शरण में रखा.


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शेर के साथ रहकर सियार हो घमंडी
कुछ ही दिनों में शेर द्वारा छोड़े गए शिकार को खा-खा कर वह सियार बहुत मोटा हो गया. प्रतिदिन सिंह के पराक्रम को देख-देख उसने भी खुद को शेर का प्रतिरूप मान लिया. एक दिन उसने सिंह से कहा, “अरे सिंह ! मैं भी अब तुम्हारी तरह शक्तिशाली हो गया हूं.


आज मैं एक हाथी का शिकार करूंगा और उसे खाऊंगा. उसके बचे-खुचे मांस को तुम्हारे लिए छोड़ दूंगा.” शेर ने उस सियार को हमेशा मित्र की तरह देखा था, इसलिए उसने उसकी बातों का बुरा न मान उसे ऐसा करने से रोका. 


और मारा गया दंभी सियार
वह घमंडी और दम्भी सियार शेर के सुझाव को नहीं माना और पहाड़ की चोटी पर जा खड़ा हुआ. वहां से उसने चारों और नजरें दौड़ाई तो पहाड़ के नीचे हाथियों के एक छोटे से झुंड को देखा. फिर सिंह-नाद करने की कोशिश में तीन बार सियार की आवाजें लगा कर एक बड़े हाथी के ऊपर कूद पड़ा. 



सियार, सियार ही रहता है. घात लगाना और लंबी छलांग मारना तो उसने सीखा नहीं था. कूदते हुए वह संतुलन नहीं बना पाया और हाथी के सिर पर न गिरकर उसके अगले पैरों के सामने गिरा. हाथी अपनी मस्तानी चाल से अपना अगला पैर उसके सिर के ऊपर रख आगे बढ़ गया और सियार कुचलकर मारा गया. पहाड़ के ऊपर से सियार की सारी हरकतें देख कर शेर ने कहा जो मूर्ख और घमंड होते हैं उनका यही हश्र होता है. 


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