नई दिल्ली: Janeu wearing rules: हिंदू परंपरा के अनुसार, मनुष्य जीवन को सार्थक बनाने के लिए 16 संस्कारों को अपने जीवन में अपनाना जरूरी है. इन्हीं संस्कारों में दसवां संस्कार है उपनयन संस्कार, जिसे जनेऊ संस्कार नाम से भी जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस संस्कार को करने से बच्चे की न केवल भौतिक, बल्कि आध्यात्मिक प्रगति भी अच्छी तरह से होती है. इस संस्कार में शिष्य को गायत्री मंत्र की दीक्षा मिलती है. इसके बाद उसे जनेऊ धारण करना होता है.  


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जनेऊ पहनने का मंत्र
ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं, प्रजापतेयर्त्सहजं पुरस्तात्। आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं, यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।


जनेऊ उतारने का मंत्र
एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया। जीर्णत्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम्।।


जनेऊ धारण करने का नियम
1. जनेऊ  धारण को हमेशा बाएं कंधे से दाये कमर पर पहनना चाहिए और इसे मल-मूत्र विसर्जन के समय दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ साफ करने के बाद ही कान से नीचे उतारना चाहिए. 


2. जनेऊ धारण के इस नियम के पीछे उद्देश्य यह है कि मल-मूत्र विसर्जन के समय यज्ञोपवीत कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो.


3. जनेऊ धारण को घर में किसी के जन्म या मरण के दौरान सूतक लगने के बाद बदल देने की परम्परा है. कुछ लोग जनेऊ में चाभी आदि बांध लेते हैं.  
 
जनेऊ धारण करने का महत्व
1. तीन धागे वाले जनेऊ धारण करने वाले व्यक्ति को आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. जनेऊ के तीन धागे को देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण का प्रतीक माना जाता है. 


2. इसे सत्व, रज और तम और तीन आश्रमों का भी प्रतीक माना जाता है. विवाहित व्यक्ति या फिर कहें गृहस्थ व्यक्ति के लिए छह धागों वाला जनेऊ होता है. इन छह धागों में से तीन धागे स्वयं के और तीन धागे पत्नी के लिए माने जाते हैं.


3. हिंदू धर्म में किसी भी धार्मिक या मांगलिक कार्य आदि करने के पूर्व जनेऊ धारण करना जरूरी है. बगैर जनेऊ के किसी भी हिंदू व्‍यक्ति का विवाह संस्‍कार नहीं होता है.
 
(Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Hindustan इसकी पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर ले लें.)