जानिए शिवजी को क्यों मिला था गाय दान करने का दंड, मां पार्वती को भी करना पड़ा था गौ दान
गरुड़ पुराण के अनुसार वैतरणी पार करने के लिए गौ दान का महत्व बताया गया है. श्राद्ध कर्म में भी गाय के दूध की खीर का प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसी खीर से पितरों की ज्यादा से ज्यादा तृप्ति होती है.
नई दिल्ली. विज्ञान के अनुसार गाय का गोबर परमाणु विकिरण को कम कर सकता है. गाय के गोबर में अल्फा, बीटा और गामा किरणों को अवशोषित करने की क्षमता है. घर के बाहर गोबर लगाने की परंपरा के पीछे यही वैज्ञानिक कारण है. वहीं गाय के सींगों का आकार पिरामिड की तरह होने के कारणों पर भी शोध करने पर पाया कि गाय के सींग शक्तिशाली एंटीना की तरह काम करते हैं और इनकी मदद से गाय सभी आकाशीय ऊर्जाओं को संचित कर लेती है और वही ऊर्जा हमें गौमूत्र, दूध और गोबर के द्वारा प्राप्त होती है.
इसके अलावा गाय की कूबड़ ऊपर की ओर उठी और शिवलिंग के आकार जैसी होती है. इसमें सूर्यकेतु नाड़ी होती है. यह सूर्य की किरणों से निकलने वाली ऊर्जा को सोखती है, जिससे गाय के शरीर में स्वर्ण उत्पन्न होता है. जो सीधे गाय के दूध और मूत्र में मिलता है. इसलिए गाय का दूध हल्का पीला होता है. यह पीलापन कैरोटीन तत्व के कारण होता है. जिससे कैंसर और अन्य बीमारियों से बचा जा सकता है. गाय की बनावट और गाय में पाए जाने वाले तत्वों के प्रभाव से सकारात्मक ऊर्जा निकलती है. जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध होता है और मानसिक शांति मिलती है.
हिन्दू धर्म के अनुसार गाय में 33 कोटि देवी-देवता निवास करते हैं. शास्त्रों और विद्वानों के अनुसार 84 लाख योनियों में कुछ पशु-पक्षी ऐसे हैं, जो आत्मा की विकास यात्रा के अंतिम पड़ाव पर होते हैं. उनमें से गाय भी एक है. इसके बाद उस आत्मा को मनुष्य योनि में आना ही होता है. ऋग्वेद ने गाय को अघन्या कहा है. यजुर्वेद कहता है कि गौ अनुपमेय है. अथर्ववेद में गाय को संपत्तियों का घर कहा गया है.
भगवान शिव को मिला था गाय दान करने का दंड
पौराणिक मान्यताओं व श्रुतियों के अनुसार, गौएं साक्षात विष्णु रूप है, गौएं सर्व वेदमयी और वेद गोमय है. भगवान राम के पूर्वज महाराजा दिलीप नंदिनी गाय की पूजा करते थे. गणेश भगवान का सिर कटने पर शिवजी पर एक गाय दान करने का दंड रखा गया था और वहीं पार्वती को भी गाय देनी पड़ी थी. भगवान भोलेनाथ का वाहन नंदी दक्षिण भारत की आंगोल नस्ल का सांड था.
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