Tulsi Vivah: जानिए आज क्यों होता है तुलसी विवाह, मांगलिक कार्यों की होती है शुरुआत

Dev Uthani Ekadashi, Tulsi Vivah: कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी को इसे देव उठनी एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. यह एकादशी तिथि चतुर्मास अवधि के समापन का प्रतीक है, जिसमें श्रावण, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक महीने शामिल हैं.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Nov 4, 2022, 12:10 PM IST
  • आज से मांगलिक कार्यों की होती है शुरुआत
  • शालिग्राम और तुलसी विवाह का है प्रावधान
Tulsi Vivah: जानिए आज क्यों होता है तुलसी विवाह, मांगलिक कार्यों की होती है शुरुआत

नई दिल्ली. Dev Uthani Ekadashi, Tulsi Vivah kaise kare आज प्रोबोधिनी एकादशी है. इस दिन तुलसी की पूजा का विशेष महत्व है. मान्यता है कि आषाढ़ मास की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं, उस दिन से श्रीहरि विश्राम के लिए चार महीनों तक श्रीरसागर में चले गए थे. इन चार महीनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किये जाते हैं. वहीं, देवउठनी एकादशी के दिन से घरों में मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं.

इस दिन कई स्थानों पर शालिग्राम तुलसी विवाह का भी प्रावधान है. बता दें कि शालिग्राम भगवान विष्णु का ही एक स्वरूप है. मान्यता है कि इस बात का जिक्र मिलता है कि जलंधर नाम का एक असुर था. उसकी पत्नी का नाम वृंदा था जो बेहद पवित्र व सती थी. उनके सतीत्व को भंग किये बगैर उस राक्षस को हरा पाना नामुमकिन था. ऐसे में भगवान विष्णु ने माया से  वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया और राक्षस का संहार किया.

नारायण को मिला था श्राप
इस से कुपित होकर वृंदा ने श्री नारायण को श्राप दिया, जिसके प्रभाव से वो शिला में परिवर्तित हो गए. और भगवान के आशिस्वाद से वृंदा काष्ट व्रत हो गई. अर्थात सरल हो जाओ. इस कारण उन्हें शालिग्राम कहा जाता है. वहीं, वृंदा भी जलंधर के समीप ही सती हो गईं. अगले जन्म में तुलसी रूप में वृंदा ने पुनः जन्म लिया. भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि बगैर तुलसी दल के वो किसी भी प्रसाद को ग्रहण नहीं करेंगे.

शालिग्राम रूप से तुलसी का विवाह
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने कहा कि कालांतर में शालिग्राम रूप से तुलसी का विवाह होगा. देवताओं ने वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने के लिए भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया. इसलिए प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि के दिन तुलसी विवाह कराया जाता है.

 कन्यादान के समान पुण्य की प्राप्ति
हिंदू पुराणों में ऐसा कहा गया है कि ऐसे माता-पिता जिनकी कोई भी संतान के तौर पर कन्या नहीं है वह तुलसी विवाह करवा करके या फिर इसमें शामिल होकर के कन्यादान के पुण्य की प्राप्ति कर सकते हैं.

(Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Hindustan इसकी पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर ले लें.)

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