नई दिल्ली: ज्योतिष के अनुसार कुंडली में क्रमशः दूसरे व ग्यारहवें भाव को धन स्थान व आय स्थान कहा जाता है. इसके साथ ही आर्थिक स्थिति की गणना के लिए चौथे व दसवें स्थान की शुभता भी देखी जाती है. यदि इन स्थानों के कारक प्रबल हों तो, अपना फल देते ही हैं. निर्बल होने पर अर्थाभाव बना रहता है विशेषतः यदि धनेश, सुखेश या लाभेश छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो या इसके स्वामियों से युति करें तो धनाभाव, कर्ज व परेशानी बनी ही रहती है.


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ग्यारहवां स्थान आय स्थान कहलाता है. इस स्थान में स्थित राशि व ग्रह पर आय स्थिति निर्भर करती है. इसका स्वामी निर्बल होने पर कम आय होती है. यदि यह स्थान शुभ राशि का है या शुभ ग्रह से दृष्ट है तो आय सही व अच्छे तरीके से होती है. यदि यहाँ पाप प्रभाव हो तो आय कुमार्ग से होती है. दोनों तरह के ग्रह होने पर मिलाजुला प्रभाव रहता है. इसी तरह यदि लाभ भाव में कई ग्रह हो या कई ग्रहों की दृष्टि हो तो आय के अनेक साधन बनते हैं. हाँ, यदि शुभ आयेश पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो या आयेश कमजोर हो तो आय के साधन अवरुद्ध ही रहते हैं. शुभ ग्रहों के साथ हो, शुभ स्थान में हो तो भी आय के साधन अच्छे रहते हैं.


सूर्य ग्रह


वैदिक ज्योतिष में सूर्य को ऊर्जा, पराक्रम, आत्मा, अहं, यश, सम्मान, पिता और राजा का कारक माना गया है. ज्योतिष के नवग्रह में सूर्य सबसे प्रधान ग्रह है. इसलिए इसे ग्रहों का राजा भी कहा जाता है.
यदि जिस व्यक्ति की कुंडली में सूर्य की स्थिति प्रबल हो अथवा यह शुभ स्थिति में बैठा हो तो जातक को इसके बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं. इसके सकारात्मक प्रभाव से जातक को जीवन में मान-सम्मान और सरकारी नौकरी में उच्च पद की प्राप्ति होती है. यह अपने प्रभाव से व्यक्ति के अंदर नेतृत्व क्षमता का गुण विकसित करता है. मानव शरीर में मस्तिष्क के बीचो-बीच सूर्य का स्थान माना गया है.


चंद्र ग्रह
नवग्रहों में चंद्रमा को मन, माता, धन, यात्रा और जल का कारक माना गया है. वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा जन्म के समय जिस राशि में स्थित होता है वह जातक की चंद्र राशि कहलाती है.
हिन्दू-ज्योतिष में राशिफल के लिए चंद्र राशि को आधार माना जाता है. यदि जिस व्यक्ति की जन्म कुण्डली में चंद्रमा शुभ स्थिति में बैठा हो तो उस व्यक्ति को इसके अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं. इसके प्रभाव से व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ्य रहता है और उसका मन अच्छे कार्यों में लगता है. जबकि चंद्रमा के कमजोर होने पर व्यक्ति को मानसिक तनाव या डिप्रेशन जैसी समस्याएं रहती हैं. मनुष्य की कल्पना शक्ति चंद्र ग्रह से ही संचालित होती है.


मंगल ग्रह
ज्योतिष विज्ञान में मंगल को शक्ति, पराक्रम, साहस, सेना, क्रोध, उत्तेजना, छोटे भाई, एवं शस्त्र का कारक माना जाता है. इसके अलावा यह युद्ध, शत्रु, भूमि, अचल संपत्ति, पुलिस आदि का भी कारक होता है.
गरुड़ पुराण के अनुसार मनुष्य के नेत्रों में मंगल ग्रह का वास होता है. यदि किसी व्यक्ति का मंगल अच्छा हो तो वह स्वभाव से निडर और साहसी व्यक्ति होगा और उसे युद्ध में विजय प्राप्त होगी. परंतु यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में मंगल अशुभ स्थिति में बैठा हो तो जातक को नकारात्मक परिणाम मिलेंगे.


व्यक्ति छोटी-छोटी बातों से क्रोधित होगा तथा वह लड़ाई-झगड़ों में भी शामिल होगा. ज्योतिष में मंगल ग्रह को क्रूर ग्रह की श्रेणी में रखा गया है. वहीं मंगल दोष के कारण जातकों को वैवाहिक जीवन में समस्या का सामना करना पड़ता है.


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