नई दिल्ली: Kurma Dwadashi 2024: कूर्म द्वादशी भगवान विष्णु के दूसरे अवतार को समर्पित है. संस्कृत में कूर्म का अर्थ कछुआ होता है. पंचांग के अनुसार, कूर्म द्वादशी पौष मास के शुक्ल पक्ष की 12वीं तिथि को आती है. आज यानी 22 तारीख को कूर्म द्वादशी मनाई जा रही है. ऐसा माना जाता है कि कूर्म द्वादशी के दिन दान, धर्म और श्राद्ध कार्यों से पापों का नाश होता है. आइए, कूर्म द्वादशी का महत्व और पूजा विधि के बारे में जानें..


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कूर्म द्वादशी पूजा विधि
इस पूरे दिन को भगवान विष्णु को समर्पित किया जाता है. व्रत करने वाले को सुबह उठकर ही स्नान करके व्रत की शुरुआत करना चाहिए. इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के साथ कछुए की एक छोटी मूर्ति पूजा स्थल पर रखनी चाहिए. फिर चंदन, कुमकुम, रोली मूर्ति पर लगाएं. इसके बाद तुलसी के पत्ते और पीले फूलों को भगवान विष्णु  कोअर्पित करें. फलाहार कर पूरे दिन व्रत रहें.
 
कूर्म द्वादशी का महत्व

कूर्म जयंती का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है. माना जाता है कि कूर्म द्वादशी का व्रत व पूजन पवित्र मन से करने वाले भक्तों के सारे दुख दूर होते हैं. मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करता है और उसके जीवन में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है.


कूर्म द्वादशी पर कछुआ घर लाने से क्या लाभ होता है?
कुछ स्थानों पर कूर्म द्वादशी के दिन कछुए की मूर्ति या अंगूठी घर लाने की परंपरा है. ऐसा माना जाता है कि इससे घर में देवी लक्ष्मी की कृपा आती है और आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं. कछुआ धन और समृद्धि के साथ-साथ धैर्य और स्थिरता का भी प्रतीक माना जाता है. इसलिए माना जाता है कि घर में कछुए का पदक, अंगूठी, मूर्ति रखने से व्यक्ति को धैर्य और स्थिरता के साथ-साथ धन और समृद्धि भी मिलती है.


(Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Hindustan इसकी पुष्टि नहीं करता है.)


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