Rakshabandhan Story: देवी लक्ष्मी ने क्यों एक दैत्य को बनाया भाई, जानिए रक्षाबंधन का ये रहस्य

 Rakshabandhan Story: राजा बलि ने भगवान विष्णु से वरदान मांग लिया था कि आप हमेशा मेरे साथ पाताल में रहें. भगवान ने ये स्वीकार कर लिया और राजा के साथ पाताल लोक चले गए. तब देवी लक्ष्मी ने क्या किया?

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Aug 20, 2021, 07:12 AM IST
  • बलि कर रहा था शतकुंडीय महायज्ञ
  • श्रीहरि ने लिया था वामन का अवतार
Rakshabandhan Story: देवी लक्ष्मी ने क्यों एक दैत्य को बनाया भाई, जानिए रक्षाबंधन का ये रहस्य

नई दिल्लीः Rakshabandhan Story: एक दिन देवी लक्ष्मी विष्णु लोक में सुबह उठीं तो देखा कि शेष शैय्या पर हरि तो हैं ही नहीं. वह चारों ओर जगत के स्वामी को खोजने लगीं. माता लक्ष्मी की करुण पुकार सुनकर देवर्षि नारद आए. उन्होंने पहले मां को शांत कराया, और पूछा कि आर श्रीहरि के ऐसे क्यों पुकार रही हैं. वह तो हमेशा ही आपके साथ नित्यलीला में रहते हैं. 

नारद ने बताया रहस्य
तब देवी लक्ष्मी ने कहा, उपहास मत करो नारद. स्वामी अपनी शेष शैय्या पर नहीं हैं. वह कहां हैं? तब नारद ने मुस्कुराते हुए कहा- क्या आपको सच में नहीं पता कि प्रभु कहां हैं?

देवी ने कहा- नहीं मुझे यह नहीं पता, हालांकि वे तो अंशावतार में वामन रूप लेकर सती अदिति के घर जन्में थे. लेकिन सशरीर कहां गए? तब नारद ने कहा- श्रीहरि ने विष्णु पद त्याग दिया और बलि के पाताल महल में रहने लगे हैं. 

वामन अवतार में थे श्रीहरि
तब नारद ने कथा सुनाई कि, राजा बलि देवताओं से स्वर्ग को जीतकर यज्ञ कर रहा था. यदि यह यज्ञ पूरा हो जाता तो बलि ही इंद्र बन जाता. इसके बाद श्रीहरि वामन अवतार लिया और बटुक ब्राह्मण के रूप में राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे. ब्राह्मण ने बलि से दान में तीन पग भूमि मांगी. बलि ने सोचा कि छोटा सा ब्राह्मण है, तीन पग में कितनी जमीन ले पाएगा. ऐसा सोचकर बलि ने वामन को तीन पग भूमि देने का वचन दे दिया.

बलि ने दी तीन पग भूमि दान
ब्राह्मण वेष में श्रीहरि ने अपना कद बढ़ाना शुरू किया और एक पग में पूरी पृथ्वी नाप ली. दूसरे पग में पूरा ब्राह्मांड नाप लिया. इसके बाद ब्राह्मण ने बलि से पूछा कि अब मैं तीसरा पैर कहां रखूं? राजा बलि समझ गए कि ये सामान्य ब्राह्मण नहीं हैं.

बलि ने तीसरा पैर रखने के लिए अपना सिर आगे कर दिया. ये देखकर वामन अवतार प्रसन्न हो गए और विष्णुजी के स्वरूप में आकर बलि से वरदान मांगने के लिए कहा. राजा बलि ने भगवान विष्णु से कहा कि आप हमेशा मेरे साथ पाताल में रहें. भगवान ने ये स्वीकार कर लिया और राजा के साथ पाताल लोक चले गए. 

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तबसे मनने लगा रक्षाबंधन का त्योहार
तब महालक्ष्मी ने पूछा, अब मैं स्वामी को वापस कैसे लाऊं? वैकुंठनाथ को वैकुंठ में तो लाना ही होगा. तब नारद ने कहा कि देवी आप ही इसका उपाय कर सकती हैं. आप बलि को भाई बना लीजिए. कोई भी भाई अपनी बहन को उसके पति को दूर नहीं रखना चाहेगा. तब महालक्ष्मी पाताल लोक गईं और राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर उसे भाई बना लिया.

इसके बाद बलि ने देवी से उपहार मांगने के लिए कहा, तब लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को मांग लिया. राजा बलि ने अपनी बहन लक्ष्मी की बात मान ली और विष्णुजी को लौटा दिया. मान्यता है कि तभी से रक्षाबंधन का पर्व मनाया जा रहा है. हर साल बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती हैं और भाई बहन की रक्षा करने का वचन देते हैं.

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