वाराणसीः काशी, यानी कि वह स्थली, जहां लोक और परलोक की परंपराओं का संगम होता है. कहते हैं कि जिसके नाथ बाबा विश्वनाथ (Lord Shiva) तो वो अनाथ कैसे होगा. यही वजह है कि महादेव के त्रिशूल पर टिके होने की मान्यता के साथ काशी को जहां एक ओर मां गंगा (River Ganga) पावन बनाती हैं तो वहीं वरुणा और असी नदियों का संगम इसे वाराणसी (Varanasi) बना देता है.


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आज यही काशी मस्ती में डूबी है, रंग में भीगी और किसी उत्सव के उल्लास में है. हो भी क्यों नहीं, आज उसके बाबा भोलेनाथ, पर्वतराज की पुत्री को अपनी पत्नी बनाकर ला रहे हैं. 


काशी में गुरुवार को बाबा विश्वनाथ और माता पार्वती का गौना मनाया जा रहा है. यह रंगभरी एकादशी (Rangbhari Ekadashi) का पवित्र दिन है. जहां विश्वनाथ मंदिर की गलियां रंग से सराबोर हैं. बुधवार को ही एकादशी-द्वादशी तिथि का संयोग होने के कारण काशी में इसका अनुष्ठान किया गया. बुधवार को ब्रह्म मुहूर्त में बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ के गौना के मुख्य अनुष्ठान शुरू हुए.



भोर लगभग चार बजे 11 वैदिक ब्राह्मणों ने विधि विधान से बाबा का रुद्राभिषेक किया. शिव-शक्ति (Shiv-Shkti) को पंचगव्य से स्नान कराने का साथ षोडषोपचार पूजन किया गया. वहीं दोपहर में अन्‍न क्षेत्र का भी परंपराओं के अनुरूप उद्घाटन किया गया.अनुष्‍ठानों का दौर शुरू हुआ तो बाबा विश्वनाथ का दरबार हरहर महादेव के उद्घोष से गूंज उठा.



दूर दराज से लोग पहुंचे तो विश्‍वनाथ गली में भी ट्रैफ‍िक जाम सरीखा नजारा दिखने लगा. बस लोगों को बाबा की पालकी का ही इंतजार बचा रह गया था जो शाम होते ही निकली तो काशी विश्‍वनाथ गली हर हर महादेव के उद्घोष से गूंज उठी. 


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आज के दिन कीजिए आंवले की भी पूजा
रंगभरी एकादशी जहां महादेव (Lord Shiva) की आराधना का दिन है तो वहीं इसके साथ भगवान विष्णु की पूजा आंवले के पेड़ के रूप में की जाती है. हर साल रंगभरी एकादशी फाल्गुन मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है. इस एकादशी (Ekadashi) को आंवलकी एकादशी भी कहते हैं. आज के दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ आंवला के पेड़ की भी पूजा होती है.


यह हरिहर पूजा यानी कि शिव और विष्णु पूजा (Lord Vishnu) का खास दिन होता है. प्राचीन काल में जब शैव और वैष्णव मान्यताओं के बीच कुछ मतभेद हुए थे तो इसी खास दिन दोनों के अनुयाइयों को इसका महत्व समझाया गया था. 


आज से काशी में शुरू होगा होलात्सव
वहीं दूसरी ओर मान्यता है कि आज पहली बार भगवान शिव माता पार्वती को काशी लेकर आए थे. इसलिए ये एकादशी बाबा विश्ननाथ के भक्तों के लिए महत्वपूर्ण होती है. आज से काशी में होली का पर्व शुरू हो जाता है जो अगले छह दिनों तक चलता है. बाबा विश्वनाथ के मंदिर को दूल्हे के रूप में सजाया जाता है.



फिर हर्ष और उल्लास के साथ माता पार्वती का गौना कराया जाता है. माता पार्वती पहली बार ससुराल के लिए निकलती हैं. 


यह है पूजन का समय
रंगभरी एकादशी तिथि की शुरुआत- 24 मार्च को 10 बजकर 23 मिनट पर
रंगभरी एकादशी समाप्त – 25 मार्च को 09 बजकर 47 मिनट तक है
व्रत के पारण का समय- 26 मार्च को सुबह 06 बजकर 18 मिनट से 08 बजकर 21 मिनट तक रहेगा. 


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