नई दिल्ली: त्रेतायुग की बात है. लंका तक पहुंचने के लिए समुद्र पर पुल (Ramsetu) बांधने का काम जोरों पर था. नल-नील कुशल शिल्पियों की देखरेख में पुल बनाया जा रहा था. उनके बताए अनुसार वानर दल बड़े-बड़े पत्थर उठा कर ला रहा था. हनुमान उन पर राम नाम लिखते और नल-नील उन्हें सागर में तैरा देते थे.


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यह कार्य बिना रुके और बड़ी ही तन्मयता से जारी था. कई बार वानरों में आपसी होड़ मच जाती कि कौन कितना बड़ा और भारी पत्थर उठा लेता है. 


वानर दल ला रहा था बड़े पत्थर
इस तरह अपनी क्षमता का प्रदर्शन करते हुए उनमें यह भाव भी आ रहा था कि रामसेतु (Ramsetu) के निर्माण में उसी का योगदान सराहनीय है जिसकी क्षमता अधिक भार का पत्थर उठा लेने की है. इस तरह एक-दूसरे के साथ हंसी-ठिठोली करते हुए काम चल रहा था. राम-लक्ष्मण यह सब देखते, वानरों की बात सुनते और सहज ही मुस्कुरा देते थे. 


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राम-लक्ष्मण ने देखा विचित्र दृश्य
अचानक लक्ष्मण ने देखा कि बड़े भैया राम की नजर बड़ी देर से सागर किनारे पड़ी रेत पर ही टिकी है. ध्यान से देखने पर उन्होंने पाया कि वहां एक गिलहरी थी. ऐसा लग रहा था कि वह जल और रेत में कोई खेल खेल रही है. लक्ष्मण ने पूछा, भैया आप उधर ही क्या देख रहे हैं? क्या वहां कोई विशेष बात है. 



श्रीराम बोले- हां अनुज लक्ष्मण, वह देखो, वहां एक गिलहरी मुझे चकित कर रही है. वह बार–बार समुद्र जल में खुद को भिगोती है और फिर किनारे जाती है. वहां रेत पर लोटपोट करके रेत को अपने शरीर पर चिपका लेती है. जब रेत उसके शरीर पर चिपक जाती है तो फिर वह सेतु पर जाकर अपनी सारी रेत सेतु पर झाड़ आती है. वह काफी देर से यही कार्य कर रही है.  


आखिर क्या था रहस्य
लक्ष्मण बोले ‘नहीं प्रभु, मुझे ऐसा लगता है कि वह समुद्र के किनारे किसी तरह के खेल में आनंद ले रही है. और कुछ नहीं'.  भगवान राम (Lord Ram) ने कहा,  ‘नहीं लक्ष्मण तुम उस गिलहरी के भाव को समझने का प्रयास करो. चलो आओ उस गिलहरी से ही पूछ लेते हैं कि वह क्या कर रही है.?’ दोनों भाई उस गिलहरी के पास गए. भगवान राम ने गिलहरी से पूछा कि ‘तुम क्या कर रही हो?’ 


जानिए, क्या कर रही थी गिलहरी
गिलहरी ने उत्तर दिया वानरों के कोलाहल से जानकारी मिली कि अत्याचारी रावण के अत्याचार से सभी जीवों को मुक्ति देने के लिए इस सेतु का बनना जरूरी है. हमारे वन प्रदेशों में भी रावण के राक्षसों ने बहुत उत्पात मचाया है.



ऐसे में जरूरी है कि मैं भी इस कार्य में अपना सहयोग करूं. इसलिए पुल बनाने के लिए अपने शरीर पर जितने कंकड़ ले जा सकती हूं, वह सब निर्माण स्थल पर पहुंचा रही हूं. अच्छा अब मैं चलती हूं. मुझे जल्दी ही और पत्थर पहुंचाने हैं. 


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क्या रहा गिलहरी के प्रयास का प्रभाव
यह सुनकर श्रीराम (Lord Ram) का हृदय करुणा से भर गया. उन्होंने प्रेम के वश होकर गिलहरी को उठाया और उसकी पीठ सहलाने लगे. कहते हैं कि इसका प्रभाव यह हुआ कि गिलहरी की पीठ पर आज भी काली-भूरी धारियां दिखाई देती हैं वह श्रीराम के सहलाने का ही असर है. उनके ही हाथों की छाप है. गिलहरी के इस प्रयास का असर हुआ कि बड़े पत्थरों के जो जगह खाली रह गई थी, छोटों कंकड़ों ने उन दरारों को भरकर सेतु को मजबूती प्रदान की थी. 


आज महामारी से हमें ऐसे ही निपटना है
रामायण के बीच से निकले इस प्रसंग पर कुछ लोग सहसा भरोसा नहीं करते. गिलहरी जैसे जीवों के बोल सकने जैसी बातों से कथा काल्पनिक लग सकती है. कई लोग इसे असत्य भी बताते हैं. इसके बावजूद कहानी का एक मर्म है जो बिल्कुल सच है. 


यह मर्म है कि संकट काल में जितना भी हो सके, जैसा सामर्थ्य हो उसके अनुसार समाज के काम आना चाहिए. जरूरी नहीं कि सभी वीर हनुमान की तरह बली हों, या अंगद की तरह सामर्थ्यवान. इसे ऐसे समझें कि हर कोई धनाढ्य नहीं हो सकता, लेकिन अपनी स्थिति के अनुसार सहयोग तो कर ही सकता है.


चाहे धन से या फिर श्रम से. आज के दौर में जब ऐसी खबरें आ रही हैं कि कुछ लोग मदद के बजाय कोरोना (Corona) के मौके को कमाई का जरिया समझ रहे हैं, 10 गुने तक दाम में दवाई और एंबुलेंस की सुविधा दे रहे हैं तो समाज का यह स्वरूप खिन्न कर देता है. 



गिलहरी प्रयास की यह नीयत हमें आज के दौर में इस महामारी संकट से लड़ने का साहस प्रदान करेगी.


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