नई दिल्ली: व्यक्ति क्या काम करेगा , उसकी शादी कहां होगी उस व्यक्ति का भाग्य कैसे खुलेगा कौन से काम से लाभ होगा और व्यक्ति को कितना मान सम्मान और इज्जत मिलेगी यह सब कुंडली पर आधारित होता है . कुंडली से ही पता चलता है कि शनि की साढ़े साती कब शुरू होगी कब खत्म और राहु काल कब शुरू और खत्म होगा. कुंडली के माध्यम से ही लग्न राशि और कौन सा नक्षत्र चल रहा है वह पता चलता है.


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व्यक्ति की कौन सी दशा और अंतर्दशा चालू हो वह भी कुंडली ही बताती है. जन्म कुंडली निर्माण काफी महत्वपूर्ण कार्य है क्योंकि ज्योतिष के आधार पर ही जन्मपत्री रचना होती है. जब तक यह पूर्णतया सही ना बने तब तक फल कथन में प्रमाणिकता नहीं आती है. अतः सही जन्मपत्रिका की रचना के लिए गणितीय सूत्र गणित प्रक्रिया में दक्ष होना आवश्यक है. यदि गणितीय प्रक्रिया ही गलत हुई तो फल कथन भी शुद्ध नहीं होगा. अतः ज्योतिष जो जन्मकुंडली बनाता है उसे गणित के क्षेत्र में दक्ष होना चाहिए इसी के आधार पर सही फलादेश किया जाता है.


आइये जानते हैं कुंडली के द्वादश भाव के बारे में-


1. प्रथम भाव
लग्न,होरा,देह ,रूप,सिर,वर्तमान काल,जन्म, इन सब का विचार प्रथम भाव से किया किया जाता है.


2. द्वितीय स्थान
धन,विद्या,अपनी वस्तु, धन पर अधिकार,खाना, पीना,वाणी,भोजन, दाहिना नेत्र,चेहरा,कुटुंब इन सब का विचार द्वितीय स्थान से कीजिए.


3. तृतीय भाव
दुश्चिकय,छाती,दाहिना कान,सेना,हिम्मत,साहस,शक्ति,वीरता ,छोटे भाई बहनों का विचार तृतीय स्थान से किया जाता है..इसे दुश्चिकय भाव भी कहते है.


4. चतुर्थ भाव
घर,खेत,मामा, भांजा,बन्धु मित्र सवारी माँ गाय भैस सुगन्धि वस्त्र जेवर तथा सुख का विचार चतुर्थ स्थान से किया जाता है..चौथे घर को हिबुक भी कहते है.


5. पंचम भाव
राजशासन की मोहर मंत्री कर टैक्स आत्मा बुद्धि भविष्य ज्ञान प्राण सन्तान पेट श्रुति वेद शास्त्र का ज्ञान पेट इन सब चीज़ों का विचार पंचम स्थान से किया जाता है.


6. छठा भाव
कर्ज़ अस्त्र शस्त्र चोर घाव चोट रोग शत्रु युद्ध दुष्ट कर्म पाप भय अपमान आदि का विचार छठे घर से करे.


7. सप्तम भाव
हृदय की इच्छा, काम वासना, मद,मार्ग,लोक,जनता पति, पत्नी इन सब का विचार सप्तम स्थान से करना चाहिए..इसे द्युन तथा जामित्र भाव भी कहते है तथा इसे अस्त की भी संज्ञा है.


8. अष्टम स्थान
मांगल्य (स्त्री का सौभाग्य पति का जीवित रहना )रन्ध्र छिद्र आधी ,मानसिक बीमारी,चिंताए,क्लेश,बदनामी, मृत्यु,विघ्न,दास ,तथा गुदा का विचार भी अष्टम स्थान से किया जाता है.


9. नवम भाव
आचार्य गुरु,देवता आराध्य देव,पिता, पूजा पूर्वभाग्य,तप,सत्कर्म,पौत्र,उत्तम वंश,उन सब चीज़ों का विचार नवम स्थान से करे.


10. दशम भाव
व्यापार उच्च स्थान ,इज्जत,कर्म,जय,यश,यज्ञ आजीविका का उपाय ,कार्य मे अभिरुचि,आचार, सदाचार या दुराचार,, गमन गुण आकाश आदि का विचार दशम स्थान से करे. इसे मेशुरण या आज्ञा स्थान भी कहते है.


11. एकादश भाव
लाभ ,आमदनी,प्राप्ति,आगमन,सिद्धि,वैभव,धन ऐश्वर्य,कल्याण,शलाध्यता प्रशंशा बड़ा भाई या बड़ी बहन बायां कान सरसता अच्छी खबर आदि का विचार एकादश भाव से करें.


12. द्वादश भाव
दुख ,पैर,बायां नेत्र, ह्रास चुगलखोर,अंत,किसी का आखरी परिणाम,दरिद्रता,जेल जाना,पाप शयन खर्चा बंधन इसके अतिरिक्त पुरुष स्त्री गुप्त सम्बन्ध का विचार भी द्वादश स्थान से करते है.

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