जब विवेकानंद ने लोगों से कहा- `थूक दो अपने राजा की मूर्ति पर`, हक्का-बक्का रह गई पूरी सभा
विवेकानंदर देश भ्रमण के दौरान एक बार राजस्थान के अलवर पहुंचे थे. उस वक्त वहां के राजा के दीवान मेजर रामचंद्र होते थे. रामचंद्र आध्यात्मक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे और उनकी साधु संतों में बहुत आस्था थी. उन्होंने स्वामी विवेकानंद को अपने घर उपदेश के लिए आंमंत्रित किया. दिलचस्प बात ये हुई कि स्वामी जी के सत्संग में अलवर के राजा मंगल सिंह खुद भी पहुंचे थे. फिर एक दिलचस्प वाकया घटित हुआ....जानें क्या?
नई दिल्ली. स्वामी विवेकानंद को दुनिया के समक्ष के सिर्फ हिंदू धर्म में निहित उदारता और मानवता के सिद्धातों को रखने के लिए पहचाना जाता है. शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन के बाद उनकी ख्याति दुनियाभर में फैली. विवेकानंद के एक पहचान आत्मविश्वास से भरे ओजस्वी भाषणों की भी है. इसी से मिलती जुलती एक कहानी है जो अलवर के राजा से जुड़ी हुई है.
जब देश भ्रमण में अलवर पहुंचे विवेकानंद
विवेकानंदर देश भ्रमण के दौरान एक बार राजस्थान के अलवर पहुंचे थे. उस वक्त वहां के राजा के दीवान मेजर रामचंद्र होते थे. रामचंद्र आध्यात्मक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे और उनकी साधु संतों में बहुत आस्था थी. उन्होंने स्वामी विवेकानंद को अपने घर उपदेश के लिए आंमंत्रित किया. दिलचस्प बात ये हुई कि स्वामी जी के सत्संग में अलवर के राजा मंगल सिंह खुद भी पहुंचे थे.
राजा ने कहा- मूर्ति पूजा में मेरी आस्था नहीं
यहां पर स्वामी विवेकानंद से मंगल सिंह का एक संवाद हुआ जो शिक्षा की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है. मंगल सिंह ने कहा- बाबा जी मेरा मूर्ति पूजा में कोई भरोसा नहीं है, मुझे इसमें कोई सार्थकता नहीं दिखती.' इस विवेकानंद ने पूछा- आप मजाक तो नहीं कर रहे? मंगल सिंह ने जवाब दिया कि यह मजाक नहीं बल्कि वास्तविकता है. यही मेरे जीवन का सत्य है.
विवेकानंद बोले- थूक दो राजा के चित्र पर
विवेकानंद ने राजा ने यह जवाब सुना और सोचने लगे. उन्हें दीवान रामचंद्र के घर में अलवर नरेश का एक भव्य चित्र दिखाई दिया. उसे देखते ही विवेकानंद ने सत्संग में मौजूद लोगों से कहा कि इस चित्र पर थूक दो. स्वामी जी की यह बात सुनते ही सारे लोग सन्न हो गए और हाथ जोड़कर कहा कि हम ऐसा कैसे कर सकते हैं! इस पर स्वामी जी ने दीवान रामचंद्र को भी आदेश दिया लेकिन उन्होंने असमर्थता जाहिर करते हुए मना कर दिया.
स्वामी जी ने राजा का संशय दूर किया
फिर विवेकानंद ने मंगल सिंह को जवाब दिया- राजा साहब आपमें इन लोगों की श्रद्धा है. इसलिए ये लोग आपके चित्र पर नहीं थूक रहे. हालांकि आपका अस्तित्व इस चित्र पर ही निर्भर नहीं है. लेकिन यह भी सच है कि इस चित्र में लोगों को आप उपस्थित दिखते हैं.
विवेकानंद बोले-ऐसा ही मूर्ति पूजकों के साथ भी लागू होता है. मूर्ति पूजा वही लोग करते हैं जिनकी उस मूर्ति में इष्टभावना है. सत्य को समझने के लिए केवल भरोसा होना चाहिए. विवेकानंद का जवाब सुनकर मंगल सिंह का भ्रम मिट गया. उन्होंने स्वामी को प्रणाम करते हुए कहा कि आपने मेरे मन का संशय हटा दिया. इसके बाद मंगल सिंह की श्रद्धा स्वामी विवेकानंद में आगे भी रही.
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