हमारे जीवन काल में किए जाने वाले कर्मों पर निगाह रखने व उसके अनुसार ही फल प्रदान करने के चलते शनिदेव को न्याय का देवता भी कहा जाता है. लेकिन शनि देव के दंड के विधान यानि आपके अनुचित कर्मों पर दिए जाने वाले दंड के कारण शनि का नाम सुनते ही लोगों के मन में भय बैठ जाता है. ऐसे में तकरीबन हर कोई जाने अंजाने में किए अनुचित कर्मों के दंड से मुक्ति पाने के लिए तमाम प्रयास भी करता है.
पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि दरअसल ज्योतिष में शनि देवता को न्याय का देवता कहा जाता है. माना जाता है कि वह सभी के कर्मों का फल देते हैं. वहीं सनातन धर्म के अनुसार सप्ताह में शनिवार को शनिदेव पूजा के लिए विशेष दिन माना गया है.
ज्योतिष की मान्यता है कि शनिवार का कारक ग्रह शनि ही है. कोई भी बुरा काम उनसे छिपा नहीं शनिदेव हर एक बुरे काम का फल मनुष्य को जरूर देते हैं. जो गलती जानकर की गई उसके लिए भी और जो अंजाने में हुई दोनों ही गलतियों पर शनिदेव अपनी नजर रखते हैं. इसीलिए उनकी पूजा का बहुत महत्व है.
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि शनिदेव के साथ ही इस दिन हनुमानजी की पूजा करने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है. इस संबंध में कई कथा प्रचलित हैं. एक ओर जहां शनिदेव हनुमान जी 11वें रुद्रावतार के गुरु सूर्य देव के पुत्र हैं. वहीं शनि भगवान शिव के शिष्य भी हैं. पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में शनिदेव को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था. जब उन्हें मालुम हुआ कि हनुमानजी भी बहुत शक्तिशाली हैं तो शनिदेव उनसे युद्ध करने पहुंच गए. शनिदेव ने हनुमानजी को ललकारा. उस समय वे अपने आराध्य प्रभु श्रीराम का ध्यान कर रहे थे.
हनुमानजी भी क्रोधित हो गए
व्यास ने बताया कि हनुमानजी ने शनि को लौट जाने के लिए कहा लेकिन शनि युद्ध के लिए बार-बार उन्हें ललकार रहे थे. हनुमानजी भी क्रोधित हो गए और युद्ध के लिए तैयार हो गए. दोनों के बीच युद्ध शुरू हो गया. हनुमानजी ने शनिदेव पर ऐसे प्रहार किएए जिनसे वे बच नहीं सके और घायल हो गए. इसके बाद शनि ने क्षमा याचना की. हनुमानजी ने क्षमा किया और घावों पर लगाने के लिए तेल दिया. तेल लगाते ही शनि के घाव ठीक हो और दर्द खत्म हो गया. शनि ने हनुमानजी से कहा अब जो भी भक्त आपकी पूजा करेंगे उन्हें शनि के दोष का सामना नहीं करना पड़ेगा. तभी से शनि के साथ ही हनुमानजी की पूजा करने की परंपरा शुरू हो गई.
डा. अनीष व्यास ने बताया कि एक अन्य कथा के मुताबिक शनि को रावण की कैद से हनुमान जी ने निकाला था ऐसे में शनि कैद में मिले घावों से शनिदेव को दर्द का अहसास हो रहा था. इसे देखते हुए हनुमानजी ने शनिदेव को घावों पर लगाने के लिए तेल दिया. तेल लगाते ही शनि के घाव ठीक हो और दर्द खत्म हो गया. शनि ने हनुमानजी से कहा अब जो भी भक्त आपकी पूजा करेंगे उन्हें शनि के दोष का सामना नहीं करना पड़ेगा. तभी से शनि के साथ ही हनुमानजी की पूजा करने की परंपरा शुरू हो गई.
शनिदेव की पूजा करने की विधि
व्यास ने बताया कि हर शनिवार शनि देवता कि पूजा की जाती है. मान्यता है कि अगर पूजा सही तरीके से की जाए तो इससे शनिदेव की असीम कृपा मिलती है और ग्रहों की दशा भी सुधरती है. हर शनिवार मंदिर में सरसों के तेल का दीया जलाएं ध्यान रखें कि यह दीया उनकी मूर्ति के आगे नहीं बल्कि मंदिर में रखी उनकी शिला के सामने जलाएं और रखें. अगर आस-पास शनि मंदिर ना हो तो पीपल के पेड़ के आगे तेल का दीया जलाएं. अगर वो भी ना हो तो सरसों का तेल गरीब को दान करें. शनिदेव को तेल के साथ ही तिल काली उदड़ या कोई काली वस्तु भी भेंट करें. भेंट के बाद शनि मंत्र या फिर शनि चालीसा का जाप कंरे. शनि पूजा के बाद हनुमान जी की पूजा करें उनकी मूर्ति पर सिन्दूर लगाएं और केला अर्पित करें.
शनिदेव की पूजा के दौरान इस मंत्र का जाप करें
ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:।।
ध्यान रहे शनिवार के दिन भक्तों को हनुमान पूजन के उपरांत ही शनि पूजन करना चाहिए. शनिदेव के पूजन समय सरसों के तेल का दीपक अवश्य जलायें. माना जाता है कि शनिवार के दिन हनुमान जी के पूजन के बाद शनि देव का पूजन करने से घर में खुशहाली आती है.
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