चेन्नई: भारत में तिरंगे, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान जैसे मुद्दों पर आए दिन किसी न किसी प्रकार की बहस होती रहती है. देशभक्ति से ओतप्रोत हर व्यक्ति राष्ट्रीय प्रतीकों के सम्मान के विषय में बहुत भावुक होता है. इसी से जुड़े हुए एक मुद्दे पर मद्रास हाईकोर्ट में जमकर बहस हुई और उच्च न्यायालय ने अहम फैसला सुनाया.  


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तिरंगे वाला केक काटना अपमान नहीं


मद्रास उच्च नय्यालय ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अशोक चक्र के साथ तिरंगे की डिजाइन वाले केक को काटना तिरंगे का अपमान नहीं है. ना ही यह देशभक्ति के खिलाफ है.


न्यायालय ने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के एक वाक्यांश के हवाले से कहा देशभक्ति हमारा अंतिम आध्यात्मिक आश्रय नहीं हो सकती. मेरी शरण मानवता है. मैं हीरे की कीमत में कांच नहीं खरीदूंगा और मैं मानवता पर कभी भी देशभक्ति की जीत नहीं होने दूंगा. 


क्रिसमस डे कार्यक्रम में काटा गया था तिरंगे वाला केक 


तमिलनाडु के कोंयबटूर के एक मामले में संदर्भ में हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया है, जिसमें जिला कलेक्‍टर समेत कई अधिकारी और नेता का नाम है. सेंथिलकुमार ने 2013 में याचिका दर्ज कराई थी जब क्रिसमस डे पर तिरंगे के 6x5 फीट के केक को काटा गया था. इस कार्यक्रम में कोयम्बटूर के जिला कलेक्टर के साथ पुलिस उपायुक्त, अन्य धार्मिक नेताओं और एनजीओ के सदस्यों के साथ 2,500 से अधिक मेहमानों ने भाग लिया था. 


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राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक देशभक्ति का पर्यायवाची नहीं 


याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत जैसे लोकतंत्र में राष्ट्रवाद बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन, उग्र और मतलब से ज्यादा पालन करना, हमारे देश की समृद्धि को उसके अतीत के गौरव से दूर कर देता है. एक देशभक्त सिर्फ वही नहीं है जो केवल तिरंगे को उठाता है, इसे अपनी आस्तीन पर पहनता है. राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक कभी देशभक्ति का पर्यायवाची नहीं हो सकता है. 


याचिकर्ता ने कोर्ट में दलील दी थी कि राष्ट्रीय सम्मान के अपमान की रोकथाम अधिनियम 1971 के तहत तिरंगे की डिजाइन वाली केक काटना अपराध है लेकिन अदालत ने इस तर्क को अस्वीकार कर दिया. 


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