नई दिल्ली: पूरे देश में कोरोना वायरस को हराने पर विचार चल रहा है. सभी लोग मिलकर इसे मात देने में जुटे हैं. वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे हैं जो इस पर केंद्र सरकार का साथ देने के बजाय राजनीति कर रहे हैं. दिल्ली पुलिस के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों पर मुकदमा ना करने की मांग की है.
मुकदमा न दर्ज करने की मांग
आपको बता दें कि कोरोना वायरस के तेजी से फैलते संक्रमण को रोकने के लिए पूरे देश में 3 मई तक का लॉकडाउन जारी है. लॉकडाउन को सफल बनाने के लिए सरकार पुलिस की सहायता से सख्ती अपना रही है और उल्लंधन करने वाले लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर रही है. बता दें कि ये मुकदमा आईपीसी के धारा 188 के तहत सरकारी आदेशों के उल्लंघन करने के तहत दर्ज किया जा रहा है.
कानून की कमजोरी को ढाल बना रहे समाज के दुश्मन
कानूनी प्रावधान के अनुसार और सुप्रीम कोर्ट तथा हाईकोर्ट के कई फैसलों के अनुसार आईपीसी की धारा 188 के तहत पुलिस में सीधे एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती. केंद्रीय गृह सचिव ने राज्यों को धारा 188 के तहत कार्रवाई करने का निर्देश दिया है.
उल्लेखनीय है कि कानूनी प्रावधानों के अनुसार सरकारी अधिकारी या कर्मचारी को अदालत के सम्मुख लॉकडाउन के उल्लंघन करने वाले व्यक्ति के खिलाफ शिकायत दर्ज करानी होगी, यानी कंपलेंट केस दायर करना होगा. लेकिन किसी भी स्थिति में पुलिस के द्वारा धारा 188 के तहत एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती. इसी को तथ्य बनाकर लॉक डाउन पर भी सियासत करने की कोशिश लिब्रल्स द्वारा की जा रही है.
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वैश्विक महामारी है कोरोना वायरस
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस को वैश्विक महामारी घोषित की है. लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ एफआईआर होना उनके साथ और ज्यादा अन्याय है. याचिका में एक अन्य चार्ट से यह समझाया गया है की ऐसे छोटे मामलों में पुलिस ने वैकल्पिक दंड दिया है. जो लोग कोरोना फैला रहे हैं या पेशवर अपराधी हैं उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए. लेकिन छिटपुट मामलों में आपराधिक कार्रवाई करना कानून की व्यवस्था का उल्लंघन है.
केंद्र सरकार की अनेक गाइडलाइंस का कई राज्यों द्वारा ही पालन नहीं हो रहा तो फिर आम जनता से भिन्न भिन्न गाइडलाइंस की जानकारी की अपेक्षा कैसे की जाए.
आपको बता दें कि याचिका में देश के अनेक लॉ इंटर्न द्वारा की गई रिसर्च में ऐसे मामलों का विवरण दिया गया है और सुप्रीम कोर्ट से मांग की गयी है कि धारा 188 के तहत दर्ज सभी एफआईआर को रद्द करने का आदेश जारी किया जाए.
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