अखिलेश यादव को सता रहा मुस्लिम वोट खिसकने का डर? इन सीटों पर बढ़ रही चिंता
यूपी चुनाव से पहले तुष्टिकरण की राजनीति अपने चरम पर है, अखिलेश यादव को इन दिनों एक खास चिंता सता रही है कि कहीं उनके पाले से मुस्लिम वोटबैंक छटक ना जाए. इसका संकेत वो खुद बार-बार दे रहे हैं.
नई दिल्ली: यूपी की राजनीति में सूबे का मुस्लिम वोटबैंक एकतरफा जिसे पड़ेगा, उसकी चुनाव में बल्ले-बल्ले है और ये बात अखिलेश यादव बखूबी जानते हैं. शायद यही वजह है कि इसी सियासी गोटी को सेट करने के लिए वो साम दाम दंड भेद सभी की नीति अपनाने की कोशिश में हैं. यहां एक-एक करके आपको समझाते हैं कि अखिलेश यादव को इन दिनों सबसे बड़ी टेंशन किस बात की है और उसका उपाय करने के लिए वो इन दिनों क्या-क्या कर रहे हैं.
अखिलेश को मुस्लिम वोटबैंक की टेंशन
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को असल डर मुस्लिम वोट खिसकने का है. यूपी की 20 फीसदी मुस्लिम वोटबैंक जिस पर अखिलेश यादव की नजर है. उन्हें पता है कि भगवा के मजबूत किले को ढहाने के लिए मुसलमानों का साथ बहुत जरूरी है. अगर मुस्लिम वोट पर भाईजान या कांग्रेस-बीएसपी ने सेंध लगाई तो समाजवादी खेला बिगड़ जाएगा.
अब आपको ये भी समझना होगा कि हर हाल में इस वोटबैंक को अपने पाले में लाने के लिए अखिलेश यादव क्या कर रहे हैं. यूपी की राजनीति में जैसे नेता तुष्टिकरण का हर दांव आजमाते हैं, अखिलेश भी इन दिनों उसी राह पर हैं.
अखिलेश यादव ने पहले देश के दुश्मन जिन्ना का गुणगान किया और इतने से बात नहीं बनी तो साधु-संतों को चिलमजीवी बता दिया. एक तरफ तो अखिलेश यादव खुद को राम भक्त बताते हैं और दूसरी तरफ हिन्दू साधु-संतों के लिए अपमानजनक टिप्पणी करते हैं.
यूपी में मुस्लिम वोटबैंक का गणित
यूपी में मुस्लिम वोटबैंक करीब 20 फीसदी है. सूबे की 143 सीटों पर मुस्लिम वोटर काफी ज्यादा हैं. 70 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम आबादी 20-30 फीसदी है. ओवैसी 55 जिलों की मुस्लिम बहुल सीटों पर प्रत्याशी उतारने की तैयारी में हैं.
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अखिलेश यादव की सबसे बड़ी परेशानी तो यही है कि ओवैसी कहीं उनका खेल बिगाड़ ना दें. मुस्लिम बहुल वाली 143 सीटों पर बीजेपी तभी जीत सकती है जब मुस्लिम वोट एसपी-बीएसपी और AIMIM के बीच बंट जाए. अखिलेश की टेंशन यही है कि वो किसी भी हाल में मुस्लिम बहुल वाली सीटों को हाथ से नहीं जाने देना चाहते, वरना समाजवादी खेला बिगड़ जाएगा.
इन सीटों पर लगातार बढ़ रही चिंता
यदि पूरे उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां सबसे अधिक मुस्लिम वोटबैंक रामपुर में है. रामपुर की बात करें तो यहां जिलेवार मुस्लिम वोटों की तादाद 48 से 51 फीसदी है. पिछले चुनाव में अखिलेश की समाजवादी पार्टी ने तीन सीटों पर अपना परचम फहराया था. इनमें स्वार विधानसभा, चमरव्वा विधानसभा और रामपुर विधानसभा शामिल है. तीनों सीटों पर मुस्लिम विधायक चुने गए थे.
तब की बात कुछ और थी, क्योंकि उस वक्त आजम खान जेल में नहीं थे. अब अखिलेश ने आजम खान से दूरी क्या बनाई ओवैसी ने खुद को आजम खान का हमदर्द बताना शुरू कर दिया. अब आजम खान और असदुद्दीन ओवैसी.... खैर, सियासत में कुछ भी हो सकता है. ओवैसी खुद को मुस्लिम वोटबैक के ठेकेदार बताने में जुटे हैं. अल्पसंख्यकों को भड़का रहे हैं, जिससे अखिलेश डरे हुए हैं.
रामपुर के अलावा मुरादाबाद में 45 से 50 फीसदी, संभल में 48 से 50 फीसदी, बिजनौर 42 से 45 फीसदी, सहारनपुर 40 से 45 फीसदी, शामली 38 से 42 फीसदी, मुजफ्फर नगर में 40 से 42 फीसदी मुस्लिम वोटबैंक हैं. यदि ऐसी सीटों पर ओवैसी अपना जोर आजमाएंगे, तो अखिलेश का चिंता बढ़ना वाजिब है.
ऐसे बिगड़ सकता है अखिलेश का गेम
अगर AIMIM, बीएसपी और कांग्रेस ने मुस्लिम वोटों में हिस्सेदारी ली तो समाजवादी पार्टी का खेल बिगड़ सकता है. दरअसल महामारी के मुश्किल वक्त के बावजूद योगी सरकार ने यूपी की तस्वीर बदली है. एक्सप्रेस-वे, एयरपोर्ट की सौगात, गरीबों को आवास, रोजगार से लेकर केंद्र की तमाम लाभकारी योजनाओं का लाभ सीधे जनता तक पहुंचा है.
अखिलेश को चुनावी मौके पर जिन्ना से भी प्यार हो गया है. पिछले दिनों अखिलेश यादव ने जिन्ना की तारीफ में कुछ इस कदर कसीदे पढ़े कि देश की सियासत में भूचाल आ गया. यही वजह है कि अखिलेश को अब भाजपा के बड़े-बड़े नेता कोसने लगे हैं. यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने शनिवार को ही कहा कि 'अब मैं उन्हें अखिलेश अली जिन्ना कहता हूं.'
केशव प्रसाद मौर्य ने बबुआ का नामकरण अखिलेश यादव से अखिलेश अली जिन्ना कर दिया है, तो बौखलाए अखिलेश ने कहा कि ये तुष्टिकरण की नहीं दुष्टिकरण की राजनीति है. लेकिन सवाल ये है कि तुष्टिकरण की राजनीति का जनक कौन है. यूपी के युद्ध में जिन्ना की एंट्री किसने कराई. जिन्ना की तुलना सरदार पटेल से किसने की.
अखिलेश, सपा और माफिया...!
माफिया और गुंडों के खिलाफ योगी सरकार का बुलडोजर चल रहा है. अपराधियों और बदमाशों को सलाखों के पीछे पहुंचाया जा रहा है, लेकिन अखिलेश यादव को मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद जैसे लोगों के लिए हमदर्दी है. इसके पीछे भी कहीं ना कहीं वोटबैंक और सियासी फायदा ही है.
400 सीटों जीतने का दम भर रहे बबुआ कभी राम-राम जपने लगते हैं तो कभी वोट के लिए जिन्ना को हीरो बना देते हैं. भाजपा ने ये भी आरोप लगाया कि अखिलेश सरकार के दौरान गुंडे बदमाश बेखौफ थे, लेकिन जब योगी राज में गुंडों-बदमाशों की प्रॉपर्टी का गर्दा उड़ाया गया तो वो भड़के हुए हैं.
केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी शनिवार को कहा कि सपा-बसपा सरकारों में हूटर पर शूटर चलते थे. अखिलेश के लिए 'टोपी' महत्वपूर्ण है, बीजेपी के लिए 'रोटी'. अखिलेश दंगा कराते हैं हम दंगल कराते है.
वोट की सियासत की खातिर नेता रंग बदलते रहते हैं. कभी बाबरी मस्जिद को बचाने के लिए राम भक्तों पर गोलियां चलवा दी गई थी. उस वक्त कुछ दल के नेताओं के लिए अयोध्या अछूत हो गया था, लेकिन अब वही नेता राम-राम जपने लगे.
अखिलेश यादव को मुस्लिम वोट के लिए खौफ तो है, क्योंकि हैदराबादी भाईजान की एंट्री से सभी सियासी पार्टियां और खास कर अखिलेश इस कदर डरे हैं कि देश के दुश्मन जिन्ना और माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की तरफदारी करने से भी नहीं चूक रहे. मुस्लिम बहुल सीटों को लेकर अखिलेश की चिंता लगातार बढ़ रही है, लेकिन अब ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि चुनावी नतीजों में किसकी लंका लगेगी और कौन बनेगा यूपी का बाहुबली...!
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