Bengal Election: महाभारत से मौर्यकाल तक समृद्ध रहा है नंदीग्राम का इतिहास, आज हो रहा चुनावी संग्राम
पं. बंगाल में दूसरे चरण के चुनाव में नंदीग्राम में वोटिंग हो रही है. पूर्वी मेदिनापुर की यह सीट ऐतिहासिक रही है. इतिहास का सिरा पकड़कर चलें तो यह हमें मौर्यकाल से लेकर महाभारत के पौराणिक युग तक ले जाता है. जिसकी समृद्धि ने विदेशी इतिहासकारों को भी आकर्षित किया था.
कोलकाताः पं. बंगाल (West Bengal) में आज दूसरे चरण का चुनाव हो रहा है. इसमें सबकी निगाहें नंदीग्राम (Nandigram) सीट पर लगी हैं.
ऐसा इसिलिए, क्योंकि यहां से वह दो महाराथी आमने-सामने हैं जिन्होंने कभी एक साथ एक ही रथ पर चढ़कर लेफ्ट के किले पर फतह हासिल की थी. शुवेंदु (Shuvendu Adhikari) और ममता (Mamta) के बीच यह चुनावी लड़ाई राजनीतिक जानकारों को अपनी ओर खींच रही है.
लेकिन इससे भी अधिक इतिहासकारों जो अपनी ओर खींचता है वह है खुद नंदीग्राम.
नंदीग्राम का प्राचीन इतिहास
जैसा कि नंदीग्राम (Nandigram) का नाम है, इससे किसी प्राचीन संस्कृति की सुगंध आती है. इसकी गलियों में घूमें तो कदम खुद बखुद तमलुक पहुंच जाते हैं.
आज के दौर में तमलुक पूर्वी मेदिनापुर जनपद का मुख्यालय है. लेकिन इसका इतना ही परिचय नहीं है. यह इलाका अपने आप में 5000 साल पुरानी विरासत संजोए हुए हैं. जिसकी जड़ें महाभारत काल तक ले जाती हैं.
आज का तमलुक तब ताम्रलिप्ति था
दरअसल, विद्वानों का मत है कि आज का तमलुक ही प्राचीन काल का ताम्रलिप्ति (Tamralipti) जनपद है. ताम्रलिप्ति जैसा कि इसका नाम है, यहां तांबें के औजारों या इस धातु से जुड़े काम करने वालों का गढ़ रहा होगा.
इसका वर्णन मौर्य काल में भी आता है, जहां यह बंदरगाह और बाहरी व्यापार के लिए प्रयोग किए जाने वाले स्थल के तौर पर पहचाना जाता रहा है.
महाभारत में मिलता है वर्णन
पौराणिक कथाओं के आधार पर महाभारत (Mahabharat) के भीष्म पर्व (9-76) में भी इसका जिक्र आता है. जहां एक प्रसंग है कि भीम ने पूर्वी राज्य पर चढ़ाई की और ताम्रलिप्ति के राजा को हराकर वहां से कर वसूला.
राज्य की विजय के प्रतीक में यहां शिव मंदिर का निर्माण भी कराया गया, हालांकि वह मंदिर कौन सा है, इसके ठीक-ठीक प्रमाण नहीं मिलते हैं.
लेकिन नंदीग्राम में स्थित रेयापाड़ा के सिद्धेश्वर शिव मंदिर का इतिहास 1000 साल पुराना बताया जाता है. CM ममता ने नामांकन से पहले यहां पूजा भी की थी.
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कभी समृद्ध जनपद रहा है तमलुक
तमलुक (Tamluk) या तामलुक (Tamralipti) बंगाल की खाड़ी से सटे हुए रूपनारायण नदी के किनारे बसा हुआ है. इतिहास में प्लिनि (Pliny the Elder) नाम का एक रोमन भूगोलवेत्ता हुआ है.
भारत की धनी भौगोलिक संरचना से प्लिनि बहुत प्रभावित था और इसने इसका वर्णन अपनी एक किताब में किया है.
इसकी लिखी 'नेचुरल हिस्ट्री' (प्राकृतिक इतिहास) 37 भागों में है जिसके छठे भाग में भारत की विशेषकर गंगा किनारे बसे राज्यों की स्थिति का वर्णन है.
रोमन भूगोलवेत्ता प्लिनि का लेखन
प्लिनि (Pliny the Elder) एक ऐसी सड़क का वर्णन करता है जो उत्तरी पश्चिमी सीमा में पुष्करावती (आज पेशावर के पास) से शुरू होकर तक्षशिला, हस्तिनापुर, वर्तमान अनूपशहर और डिबाई होते हुए कन्नोज, प्रयाग, वाराणसी और पाटलिपुत्र तक जाती थी.
बीच में वह सिंधु, झेलम, व्यास, सतलज, यमुना और गंगा को पार करती थी.
इस सड़क का आखिरी छोर ताम्रलिप्ति था, ऐसा अनुमान लगाया जाता है. शेरशाह सूरी ने इसी मार्ग पर आधार GT Road बनवाई, ऐसा भी कहा जाता है, हालांकि यह विषय मतभेद का है.
मौर्यकाल में रहा जलीय व्यापार का केंद्र
मौर्य काल (Maurya Period) में ताम्रलिप्ति की प्राकृतिक स्थिति जलीय मार्ग के अनुकूल रही और दक्षिणी-पूर्वी भारत को ही नहीं समुद्रपार के देशों को भी मध्य एशिया के नगरों से जोड़ने वाली थी.
दक्षिणी-पूर्वी एशिया के देशों की जानकारी होती गई साथ ही उनसे भारत के व्यापारिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंध बढ़ते गए,
ताम्रलिप्ति भी बढ़ता गया. इतिहासकार मानते हैं कि चौथी सदी से 12वीं सदी तक इसके किनारे अनेक देशों के जहाज लगे रहते थे. यहां से नील, शहतूत और पशम का निर्यात बाहर के देशों को किया जाता था.
बौद्ध ग्रंथों में भी है ताम्रलिप्ति
अशोक (Ashoka) के काल में ताम्रलिप्ति का बौद्ध धर्म संबंधी से जुड़ाव भी बढ़ा. सिंहल के बौद्ध ग्रंथों-महावंश और दीपवंश में उसे तामलप्ति, ताम्रलिप्ति कहा गया है.
महावंश, 11-38 और दीपवंश, 3-33 यह भी बताते हैं कि अशोक ने यहां से जहाज के जरिए बोधिवृक्ष की शाखा सिंहल भेजी थी.
बाद में चीनी यात्री फाह्यान भी यहीं से समुद्रमार्ग से सिंहल गया था. (गाइल्स, पृष्ठ 65). हर्षवर्धन के समय भी आने वाले विदेशी यात्री ताम्रलिप्ति को देखने जाते थे.
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आज तमलुक में प्राचीन जैसा कुछ नहीं
यह तो था ताम्रलिप्ति (Tamralipti) का प्राचीन इतिहास, लेकिन यह कब तमलुक बन गया और प्राचीन धन्य संस्कृति कैसे खंडहर बन गई तो इसकी एक वजह आक्रमण भी रही होगी और बाद में हुए भौगोलिक परिवर्तन भी.
दरअसल रूपनारायण नदी की एक धारा गंगा से मिलती थी और उसका फाट भी काफी चौड़ा था. ऐसे में कई स्थानों पर ताम्रलिप्ति (Tamralipti) को गंगा किनारे का जनपद मान लिया गया.
या संभव हो कि ऐसा ही हो, लेकिन वर्तमान में ऐसा नहीं है.
तमलुक का 1947 का इतिहास
अब इस दौर को छोड़ दें तो 1947 का इतिहास एक बार फिर रुक कर तमलुक को देखने के लिए मजबूर करता है. दरअसल यह इतिहास और भी दिलचस्प है. नंदीग्राम की भूमि को आंदोलन की भूमि मानी जाती है.
1947 में देश की स्वतंत्रता से पहले, “तामलुक” को अजय मुखर्जी, सुशील कुमार धारा, सतीश चन्द्र सामंत और उनके मित्रों ने नंदीग्राम के निवासियों की सहायता से अंग्रेजों से मुक्त करा लिया था.
ब्रिटिश शासन से यह क्षेत्र मुक्त हो गया था. तमलुक का इतिहास बताता है कि यह वह क्षेत्र रहा है, जिसे दो बार आजादी मिली है.
2 मई की तारीख बदलेगी भाग्य
नंदीग्राम (Nandigram), तमलुक और मेदिनापुर का इतिहास जो भी रहा है वह रहा, लेकिन आज यहां से बंगाल की आने वाली नई विधानसभा के भाग्य लेखन का दूसरा अध्याय लिखा जा रहा है.
इसी के साथ रण में उतरे दो योद्धाओं का भी भाग्य EVM के सहारे तय होगा. देखते हैं 2 मई का चुनावी राशिफल क्या कहता है.
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