Bihar Election: ओवैसी के कारण हार हुई तेजस्वी की
तेजस्वी की हार के बाद ओवैसी के घर पर वोटकटवों ने जमकर फोड़े पटाखे, कांग्रेस ने कहा कि AIMIM है BJP का मोहरा..
नई दिल्ली. महागठबंधन को बीच में अचानक लगने लगा था कि वो जीत भी सकता है किन्तु चुनाव के मतदान की गिनती के खत्म होने के साथ उनकी उम्मीद भी खत्म हो गई और गलतफमी भी. जिस तरह गीता में कहा गया है कि जिस तरफ कृष्ण हैं विजय उसी तरफ है. इसी तरह देश में भी जिस तरफ मोदी हैं, जीत भी उसी तरफ है. तो फिर तेजस्वी को कैसे गलतफहमी हो गई थी कि वे जीत सकते हैं, उनको हराने के लिए ओवैसी भी तो थे?
ओवैसी सिद्ध हुए गेमचेंजर
सीधा समीकरण है जिसने चुनाव के पहले ही बता दिया था कि तेजस्वी और बिहार सीएम की कुर्सी के बीच ओवैसी खड़े हैं. और जब तक ओवैसी बीच में खड़े हैं कुर्सी पर बैठ नहीं सकते तेजस्वी. हुआ भी वही ओवैसी सिद्ध हो गए गेमचेंजर और तेजस्वी साबित हुए फ्लॉप. जीत के पास पहुंच कर हार गये तेजस्वी जिन्होंने बिहार के अगले सीएम बनने के लिये मन में पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन..
वोटों का समीकरण साफ़ था
मोदी ब्रांड वाली बीजेपी को अपने पक्के वोट तो मिलने ही थे, थोड़े बहुत गिने -चुने वोट नितीश को भी दिए लोगों ने लेकिन जो वोट नितीश के खिलाफ महागठबंधन को मिलने थे वे बंट गए क्योंकि बीच में आ गए ओवैसी. ओवैसी की पार्टी ने तेजस्वी की उम्मीदों पर भांजी मार दी और अच्छे खासे मुस्लिम वोट और साथ ही काफी हद तक दलित वोट भी अपनी तरफ खींच लिए और महागठबंधन की चार टांगों वाली कुर्सी की एक टांग तोड़ दी और उसके बाद जब तेजस्वी ने बैठना चाहा तो ज़मीन पर आ गए.
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उम्मीद से ज्यादा मिला महागठबंधन को
नितीश कुमार की सरकार के विरुद्ध तैयार हुए महागठबंधन को उम्मीद से ज्यादा वोट मिले हैं. इसकी वजह भी बहुत साफ़ है. जितने वोट महागठबंधन को मिल गए वो सिर्फ इसलिए ही मिले हैं कि सुशासन बाबू का अर्थहीन तमगा माथे पर चिपकाये बैठे हुए नितीश कुमार पिछले पांच साल सिर्फ बैठे ही रहे, बिहार के लिए कुछ नहीं किया. किन्तु जनता चुप नहीं बैठी और जनता ने किया इंतज़ार और पांच साल बाद जब आया चुनाव का वक्त तो जनता ने निकम्मी सरकार बदलने का मौक़ा भुनाया और नितीश के विरुद्ध जमकर मतदान किया. किन्तु नितीश फिर भी आ गये..
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जनता भी हारी तेजस्वी की तरह
नितीश की आरामखोरी से परेशान जनता की मजबूरी देखिये, उसके पास नितीश का विकल्प भी मौजूद नहीं था. नितीश के विरुद्ध जो इकलौता विकल्प बिहार की जनता के पास था वो उस पार्टी के नेतृत्व वाला था जिसने बिहार को लम्बे समय तक जंगल-राज के दुर्दिन दिखाए थे. इसलिए जनता को जिसे चुनना पड़ा, वो वही था जिससे बच कर जनता ने नितीश पर भरोसा किया था. आखिर में बिहार की जनता भी तेजस्वी की तरह हार गई.
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