मराठा योद्धा शरद पवार ने भाजपा के चाणक्य को ऐसी दी मात! जानें, इतिहास
24 अक्टूबर से शुरू हुए महाराष्ट्र के सियासी महाभारत के एक अध्याय का अंत हो चुका है. हिंदुस्तान के सियासी इतिहास में इतना भीषण और दिलचस्प महासंग्राम शायद ही पहले देखने को मिला हो. क्योंकि सियासी दुनिया के दो महारथी अमित शाह और शरद पवार रिंग में थे.
नई दिल्ली: महाराष्ट्र की सियासत में दांव पेच, शह मात और जोड़-तोड़ के इस खेल में कौन बाजी मारेगा? इस सवाल का जवाब हर किसी को मिल चुका है. भाजपा के चाणक्य अमित शाह इतनी जल्दी हथियार डाल देंगे ये आम तौर पर देखा नहीं जाता है, लेकिन राजनीतिक घटनाक्रम को देखते हुए शरद पवार को विजेता माना जा रहा है.
शिवसेना को अछूत मानते थे पवार!
जो शिवसेना पवार के सहयोग से महाराष्ट्र में पूरे 5 साल सत्ता चलाने का दम भर रही है. क्या वो जानती है कि साल 1999 में जब बाला साहब ठाकरे के अयोध्या में राम मंदिर के लिए छिड़े आंदोलन के वक्त पवार तब शिवसेना को इतना अछूत मानते थे कि खुलेआम कहते थे कि बाल ठाकरे के घर जाने वाले हमारे साथी कैसे हो सकते हैं.
सिर्फ शिवसेना ही नहीं बल्कि शरद पवार तो सोनिया गांधी के नाम पर भी कभी इतनी कड़ी आपत्ति थी कि कांग्रेस से अपनी राह जुदा कर नई पार्टी का गठन कर दिया था. 25 मई 1999 को पीए संगमा और तारिक अनवर के साथ नई पार्टी का ऐलान करते वक्त पवार ने ये ऐलान किया था कि हमारी पार्टी बीजेपी और सोनिया कांग्रेस से समान दूरी बनाकर रखेगी.
पवार तब कांग्रेस पार्टी को सोनिया कांग्रेस कहते थे. और उनका तब साफ मानना था कि विदेशी मूल के किसी पुरुष या महिला के हाथ में देश की बागडोर नहीं सौंपा जा सकती है. हालांकि बाद के दिनों में उन्होंने महाराष्ट्र और केंद्र दोनों जगहों पर कांग्रेस के साथ चुनावी समझौते किए और सत्ता के साझीदार बनें.
क्या कहता है इतिहास?
सियासत की समझ रखने वाले शरद पवार की किसी चाल को आखिरी नहीं मानते हैं. इसके पीछे कई वजहें हैं. साल 1978 की बात है, जब महाराष्ट्र में कांग्रेस यू और कांग्रेस आई के गठबंधन वाली सरकार थी. दरअसल 1977 में कांग्रेस दोफाड़ हो गई कांग्रेस आई और कांग्रेस यू के रूप में 1978 में महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव दोनों पार्टियों ने अलग-अलग लड़ा था. लेकिन चुनाव के बाद जनता पार्टी को रोकने के लिए कांग्रेस आई और कांग्रेस यू ने हाथ मिला लिया. और वसंत दादा पाटील महाराष्ट्र के सीएम बनें. शरद पवार उनकी कैबिनेट में उद्योग मंत्री थे. वसंत दादा पाटील ने जुलाई 1978 की एक दोपहर अपने युवा उद्योग मंत्री शरद पवार को भोजन पर बुलाया था. भोजन करने के बाद शरद पवार ने वसंत दादा पाटील से कहा था 'तो दादा अब मैं चलता हूं, भूल चूक माफ कर देना'
तब के सीएम वसंद दादा पाटील कुछ समझ नहीं पाए. लेकिन शाम होते-होते उन्हें समझ में आ गया कि पवार ने किस बात की माफी पहले ही मांग ली थी. दरअसल 38 साल के शरद पवार ने अपने राजनीतिक गुरु यशवंत राव के इशारे 38 विधायकों को तोड़ दिया और तब की जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार बना ली. इस तरह शरद पवार महाराष्ट्र का सबसे युवा मुख्यमंत्री बनने का खिताब अपने नाम कर लिया. बाद में पवार के गुरु यशवंत राव भी उनके साथ हो लिए.
1980 में बर्खास्त हो गई पवार की सरकार
1980 में इंदिरा गांधी जब केंद्र की सत्ता में दोबारा वापस लौटीं तो उन्होंने शरद पवार की सरकार को बर्खास्त कर दिया. उसके बाद भी 6 साल तक शरद पवार कांग्रेस से दूर ही रहे. लेकिन राजीव गांधी से नजदीकी बनाकर 1986 में उन्होंने दोबारा कांग्रेस में वापसी कर ली. लेकिन 1998 में जब सोनिया गांधी ने सीताराम केसरी को बेदखल कर कांग्रेस की बागडोर संभाली तो उनका विदेशी मूल का होना शरद पवार को खटकने लगा. और एक साल के भीतर ही पवार ने अपनी अलग पार्टी बना ली.
इसे ही कहते हैं पवार स्टाइल राजनीति, लिहाजा न फडणवीस को निराश होना चाहिए और ना ही उद्धव ठाकरे को ज्यादा उत्साहित. क्योंकि पवार की गुगली का कोई भरोसा नहीं है. शरद पवार की अगली चाल क्या होगी, ये कोई भी नहीं जानता है. लेकिन महाराष्ट्र में भतीजे पवार ने पलटी मारी तो चाचा ने अपनी पावर दिखा दी. जिसके बाद जनाब भतीजे को घर वापसी करनी ही पड़ी.
इसे भी पढ़ें: उद्धव के ताजपोशी की तैयारी लगभग पूरी! इन नेताओं को मिल सकता है मंत्री पद