मुंबईः महाराष्ट्र में नया सूरज उगनेवाला है. बाला साहेब को दिया उद्धव का वचन पूरा होने वाला है. एक शिवसैनिक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होनेवाला है. एक ऐसा शख़्स जो कभी सियासत में कदम नहीं रखना चाहता था. जिसने अपने घर के आंगन से लेकर अपने पिता की गोद में सिर्फ और सिर्फ सियासत ही देखी लेकिन जिसके भीतर ना वो बाला साहेब वाला तेवर आया ना ही वो कट्टर छवि. फिर भी 59 साल के उद्धव ठाकरे ने राजनीति में महज़ 19 साल दिए और अब सत्ता के शिखर पर बैठने जा रहे हैं.


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 दो ध्रुवों का मिलन, लेकिन कैसे?
सत्ता की इस सियासत में महाराष्ट्र में जो तस्वीर उभर कर आई है, वो बताती है कि जिस मराठा मानुष और हिंदुत्व की पृष्ठभूमि तैयार कर शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी ने महाराष्ट्र के लोगों के दिलों में जगह बनाई, वही सियासत आज दो फाड़ हो गई.



आज महाराष्ट्र की सियासत में एक नई फिल्म का प्लॉट तैयार होने लगा है. दो ध्रुवों का मिलन हो रहा है, दो विपरित विचारधाराओं के मिलने से आनेवाले समय में तस्वीर कैसी रहेगी यह देखना दिलचस्प होगा. इससे पहले शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा था कि डेफिनेटली, उद्धव ठाकरे अगले मुख्यमंत्री होंगे. 5 साल के लिए उद्धव ठाकरे साहब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री होंगे.


आज बाला साहेब की बातें भी याद आती हैं
बात यहीं तक नहीं है, उद्धव ने शिवसेना में एक साथ कई सारी नई परंपराओं का आगाज किया है. सबसे पहले उस पार्टी के साथ कंधे से कंधा मिलाना जिसकी प्रमुख को बाला साहेब ठाकरे ने कहा था कि मुंबई सबकी है, लेकिन इटैलियन मम्मी की नहीं है, नया सिर्फ विचारधाराओं के संगम का नहीं है, नया यह भी है कि पहली बार किंग मेकर की भूमिका में रहनेवाली शिवसेना किंग बनने जा रही है. इस बारे में बाला साहेब ठाकरे का कहना था कि यह कुर्सी का मोह मुझे नहीं है, कुर्सी क्या होती है. जब लोग मुझे किंग मेकर के तौर पर स्वीकार करते हैं, तो मुझे क्या जरूरत है कुर्सी के ऊपर बैठने की, तुम्हारी कुर्सी ही है, बैठो आराम से, कोई खींच नहीं ले जाएगा.


जब बाला साहेब ने किया छी..छी..
साफ है बाला साहेब ने ना कभी कुर्सी का मोह किया और ना ही वो कभी किसी कुर्सी पर बैठना चाहते थे लेकिन इस बार शिवसेना ने चुनाव में अपने साथी दल से मुंह मोड़ लिया, विरोधियों से हाथ मिला लिया और कुर्सी की दौड़ में बीजेपी को करारी मात दे दी. अगर उसूल बाला साहेब जैसे अटल न हों तो सियासत में सब जायज है.



हालांकि एक बार ज़ी मीडिया ने बाला साहेब से प्रधानमंत्री बनने को लेकर सवाल किया था. रिपोर्टर ने पूछा, अच्छा कभी प्रधानमंत्री बनने का ख्याल नहीं आया आपको. बाला सहेब ने नाक-भौंह सिकोड़ते हुए कहा.  छि छि छि छि छि... कौन जाएगा, सवेरे उठने का, कोई सलामी लेने का, बीच में पिशाब आएगी तो क्या करेगा.


हम एक हैं, एक रहेंगेः उद्धव
अब सवाल है कि आनेवाले दिनों में वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी करने वाले उद्धव ठाकरे सरकार की तस्वीर तैयार करेंगे और तब क्या अपने साथियों को साथ रख पाएंगे, वो साथी जो पिछले 40 सालों से सियासी विरोधी थे क्या वह उद्धव सरकार की टांग नहीं खींचेंगे. हालांकि उद्धव इसे नकारने कि कोशिश करते हुए कह रहे हैं कि एक चीज़ तय है कि हम एक हैं और एक रहेंगे. लेकिन अब सीएम से पूर्व सीएम बन गए फडणवीस अभी चुप नहीं बैठे हैं.



वह कह रहे हैं कि मुझे लगता है ये सरकार अपने बोझ तले दबेगी, क्योंकि ये तीन पहियों की ऐसी गाड़ी है जिसका कोई भी पहिया एक दिशा में नहीं चल सकता. तीनों पहिए तीन दिशाओं में चलेंगे और महाराष्ट्र जैसा अगड़ा राज्य, इसकी क्या परिस्थिति होगी, इसके बारे में मैं कह नहीं सकता.


उद्धव की शांत रही है छवि
उद्धव को बड़ा श्रेय जाता है कि उन्होंने कुछ सालों में ही शिवसेना की कट्टर हिंदू और मराठा सियासत की छवि को ज़मीनी और विकास की छवि के साथ जोड़ दिया. 2002 में जब उद्धव सक्रिय सियासत में आए तो उनके शांत स्वभाव और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे को लेकर अक्सर बातें होती थीं लेकिन 2006 में उद्धव ठाकरे, बाला साहेब ठाकरे के उत्तराधिकारी के तौर पर पार्टी की कमान लेते हैं और राज ठाकरे अपनी अलग पार्टी बना लेते हैं फिर अपने शांत स्वभाव से ही उद्धव सियासत में अलग मुकाम हासिल करते हैं. लेकिन ऐसा नहीं कि महाराष्ट्र तक ही उद्धव के इरादे ठहर जाते हैं.


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आदित्य ठाकरे संभाल पाएंगे विरासत
ये तस्वीर देखिए दो पीढ़िया आज सत्ता के शिखर पर पहुंचकर एक दूसरे को गले लगा रही हैं और उनकी आदर्श पीढ़ी इसकी गवाह बन रही है. इस तस्वीर से समझिए कि राष्ट्रीय सियासत को प्रभावित करने के उद्धव के इरादे वही हैं जो कभी बाल ठाकरे के होते थे और यही वजह है कि सूबे में आदित्य ठाकरे को पहले ही ठाकरे परिवार की विरासत के तौर पर पेश किया जाने लगा है.



यानी आनेवाला वक़्त चुनौती भरा है, उद्धव ठाकरे को उस कुर्सी के लिए खुद को साबित करना है जिस पर ना तो उनके परिवार से कोई रहा है, ना ही उनकी पार्टी से और वो भी ऐसे गठबंधन में जिसमें दो ध्रुवों को साथ लाने की कोशिश की गई है. उद्धव को पार्टी स्तर पर भी अब चुनौती का सामना करना होगा, क्योंकि अपने दोस्त और महाराष्ट्र में नंबर वन पार्टी को सत्ता से बेदखल कर के शिवसेना ने ये कुर्सी कमाई है.


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