नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में चुनावी महौल गरमाया हुआ है, इस बीच अगर ऐसा कहा जाए कि यूपी में ब्राह्मण नेताओं की 'चुनावी वेकैंसी' निकली हुई है तो गलत नहीं होगा. हर पार्टी ब्राह्मण नेताओं को लुभाने में अपनी पार्टी में लाने जुटे हैं.


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हर दिन बदल रही है चुनावी हवा


पिछले कई चुनावों में देखा गया है कि ब्राह्मणों का झुकाव जिस भी पार्टी की ओर अधिक होता है, उसे सत्ता की सीढ़ी चढ़ने में काफी आसानी हो जाता है. अखिलेश यादव को भी ये बखूबी मालूम है, इसी लिए वो लगातार ब्राह्मण नेताओं को सपा में शामिल कर रहे हैं.


सबको पता है जो अनुमानित 12 फीसदी ब्राह्मण वोट बैंक को अपने साथ कर लेगा उसकी बात बन जाएगी. इसी कड़ी में बीएसपी के पूर्व सांसद और वरिष्ठ नेता राकेश पाण्डेय समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. अखिलेश यादव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके राकेश पाण्डेय को पार्टी में शामिल कराया.


राकेश पाण्डेय पूर्वी यूपी के बड़े ब्राह्मण नेताओं में से एक हैं. 2009 में राकेश पाण्डेय साइकिल छोड़कर हाथी पर सवार हुए थे और बीएसपी की टिकट चुनाव पर लड़कर लोकसभा पहुंचे.


ब्राह्मण वोटबैंक में बढ़ती लोकप्रियता का फायदा उठाते हुए बीएसपी ने राकेश पाण्डेय के बेटे रितेश पाण्डेय को पहले विधानसभा का और 2019 में लोकसभा का टिकट दिया. अभी रितेश पाण्डेय अंबेडकरनगर लोकसभा सीट से बीएसपी के सांसद हैं.


यूपी में ब्राह्मण वोट की ताकत का आप अंदाज इस बात से ही लगा सकते हैं कि पिता-पुत्र अब अलग-अलग पार्टी में और दोनों पार्टी इनको अपने साथ बनाए रखने में जुटी है.


ब्राह्मण वोट बैंक की अहमियत समझिए


2007 में जब मायावती सीएम बनीं तब बीएसपी के 41 ब्राह्मण विधायक थे. वहीं 2012 के विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट पर 21 उम्मीदवार जीते और राज्य में अखिलेश यादव की सरकार बनी.


2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त से ही ब्राह्मण वोटर बीजेपी के साथ है. 2017 में तो 80 फीसदी ब्राह्मणों ने बीजेपी को वोट दिया था, जिसके चलते यूपी में बीजेपी के 46 ब्राह्मण विधायक लखनऊ पहुंचे थे. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी ब्राह्मण वोटर पूरी तरह बीजेपी के साथ ही खड़ा नजर आया था.


यूपी में ब्राह्मण वोट का नंबर गेम


अब जरा आंकड़ों के जरिए उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोट का नंबर गेम भी समझ लीजिए. चूकि वर्ष 1931 के बाद से देश में जातीय जनगणना नहीं हुआ है, ऐसे में एक अनुमान के अनुसार यूपी में तकरीबन 12 फीसदी मतदाता ब्राह्मण हैं.


वहीं 11 जिलों में ब्राह्मणों की तादाद 15% से ज्यादा है. माना जाता है कि 60 विधानसभा में ब्राह्मण वोट बैंक का निर्णायक असर है. वहीं उत्तर प्रदेश में 20 साल से ज्यादा समय तक सत्ता पर ब्राह्मण मुख्यमंत्री रहे हैं. यूपी में अब तक 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री रह चुके हैं.


समाजवादी पार्टी में बहराइच जिले की नानपारा सीट से बीजेपी की विधायक माधुरी वर्मा भी शामिल हो गई. इसके साथ ही पूर्व एमएलसी कांति सिंह, प्रतापगढ़ के पूर्व विधायक ब्रजेश मिश्रा भी समाजवादी पार्टी  में शामिल हो गए.

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किन-किन नेताओं ने बदली पार्टी


वहीं मुलायम सिंह यादव और शिवपाल के खास कहे जाने वाले कुंवर बलवीर सिंह चौहान ने भाजपा का दामन थाम लिया है. आपको एक-एक कर उन सारे दिग्गजों से रूबरू होना चाहिए, जिन्होंने चुनावी सीजन में पार्टी बदल ली.


सबसे पहले आप उन सभी बीएसपी विधायकों के नाम नीचे पढ़िए, जो चुनाव से ठीक पहले समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए.


असलम राईनी, भिनगा
असलम अली, धौलाना
मुज़तबा सिद्दीक़ी, प्रतापपुर
हाकिम लाल बिंद, हंडिया
हरगोविंद भार्गव, सिधौली
सुषमा पटेल, मुंदरा बादशाहपुर
विनय शंकर तिवारी, चिल्लूपार
लालजी वर्मा, कटेहरी
राम अचल राजभर, अकबरपुर


समाजवादी पार्टी में शामिल बीजेपी विधायक


नानपारा से विधायक माधुरी वर्मा के अलावा सीतापुर सदर से विधायक राकेश राठौर और खलीलाबाद से विधायक जय चौबे ने भी भाजपा से दामन छुड़ाकर साइकिल की सवारी करने में भलाई समझी है.


कौन-कौन विधायक बीजेपी में शामिल?


गाज़ीपुर के सैदपुर से विधायक सुभाष पासी समाजवादी पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए. वहीं प्रियंका गांधी वाड्रा की करीबी रही अदिति सिंह ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया. इसके अलावा बीएसपी विधायक वंदना सिंह भी भाजपा में शामिल हो गईं.


उत्तर प्रदेश का रण कौन जीतता है, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा. लेकिन एक बार फिर से ब्राह्मणों को अपनी ओर खींचने की होड़ मची हुई है. ऐसा लगने लगा है कि यूपी चुनाव में ब्राह्मण नेताओं के लिए हर पार्टी में 'वैकेंसी' निकली हुई है.

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