कोलकाता: पश्चिम बंगाल में चुनावी माहौल गरम है, चुनावी रैलियों से लेकर प्रदर्शन तक पूरी ताकत झोंकी जा रही है. खासकर बीजेपी की धमक देखकर सत्ताधारी और सत्ता की चाहत वाले दलों में बेचैनी बढ़ी हुई है और इन्हीं बेचैन चेहरों में एक ओवैसी भी हैं. जिन्होंने बंगाल की सियासत में पहली चाल अपने मोहरे के जरिये चलने की कोशिश की है. जिसका नाम पीरजादा अब्बास सिद्दीकी है. पीरजादा ने नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया. यहां तक कि जिस ममता बनर्जी के खिलाफ पीरजादा अब्बास ने मोर्चा खोल रखा है, उसी टीएमसी के नेताओं से भी पीरजादा की बातचीत हो रही है.


फुरफुरा शरीफ के पीरजादा की नई पार्टी


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बंगाल के मुस्लिम वोटबैंक (Muslim Vote Bank) को अपनी मिल्कियत समझने वाले फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास ने ओवैसी के गेम प्लान के तहत ही नई पार्टी का ऐलान कर दिया है. अब्बास का दावा है कि उनके साथ दस से ज्यादा पार्टियों का मोर्चा बनेगा. यहां तक कि कांग्रेस (Congress) और लेफ्ट से भी तालमेल हो सकता है और सभी मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं. पीरजादा का कहना है कि हम किंगमेकर बनना चाहते हैं. सभी 294 सीट पर लड़ सकते हैं.


इतना ही नहीं अब्बास टीएमसी (TMC) के साथ भी गठबंधन की बातों से इनकार नहीं करते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ओवैसी ने बंगाल में बीजेपी (BJP) के खिलाफ मजहबी मकसद पर मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण का नया रोडमैप तैयार कर लिया है.


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खासकर चुनाव से ऐन पहले पीरजादा अब्बास की नई पार्टी के ऐलान के पीछे ओवैसी का दिमाग इसलिए माना जा रहा है, क्योंकि ओवैसी को अंदाजा हो चुका था कि बंगाल में शायद उनके कट्टरपंथी मजहबी मकसद पर वोट नहीं मिलेंगे और ये शक तब और भरोसे में बढ़ गया जब पीरजादा अब्बासी के घर से ही ओवैसी के खिलाफ मजबूत आवाज उठी.


'इंडियन सेक्युलर फ्रंट' नाम की पार्टी बनी


तोहा सिद्दीकी फुरफुरा शरीफ के मौजूदा प्रमुख पीरजादा अब्बास (Peerzada Abbas Siddiqui) के चाचा हैं और उनका आरोप है कि करोड़ों रुपये का घालमेल छिपाने के लिए अब्बास ने पार्टी बनाने का ढोंग किया है. चुनावी माहौल में फुरफुरा शरीफ के अंदर से उठ रही दो आवाजों का मतलब आप ऐसे समझ सकते हैं कि पश्चिम बंगाल की सियासत में इस दरगाह का बडा असर माना जाता है. खासकर बंगाल के करीब तीस फीसदी मुस्लिम वोटबैंक पर इस दरगाह का सीधा असर बताया जाता है. अब्बास सिद्दीकी की पार्टी का नाम 'इंडियन सेक्युलर फ्रंट' (ISF) है.


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बंगाल में करीब 30% मुस्लिम मतदाता


कहते हैं इसी दरगाह की मदद से ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने सिंगूर से लेकर नंदीग्राम तक के आंदोलनों का सियासी फायदा उठाया था, लेकिन अब इस दरगाह के प्रमुख पीरजादा अब्बासी हैदराबादी पतंगबाज ओवैसी जैसे नेताओं के प्रभाव में आकर अपनी डफली बजाने की कोशिश कर रहे हैं और इसके पीछे मुस्लिम वोटबैंक की ताकत है.


किसे वोट देगा मुसलमान?


ऐलान के मुताबिक बंगाल में 60-80 सीटों पर अब्बास की पार्टी चुनाव लड़ने वाली है और इससे पहले ओवैसी ने भी करीब 70 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही थी. माना जाता है कि बंगाल में करीब 120-125 सीटों पर मुस्लिम वोट का असर बड़ा है. जिसमें 41 सीटों पर 50 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं और 80 सीटों पर 25-35 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं.


इन मुस्लिम मतदाताओं पर फुरफुरा शरीफ दरगाह का बड़ा प्रभाव माना जाता है, क्योंकि कोलकाता से महज चालीस किलोमीटर दूर हुगली जिले का ये फुरफुरा शरीफ अजमेर के बाद दूसरा सबसे मशहूर दरगाह है. सात सौ साल पुरानी तारीख समेटे इस दरगाह ने आज़ादी के बाद कांग्रेस, लेफ्ट और टीएमसी को सत्ता तक पहुंचाने में बड़ी मदद की है. खासकर पश्चिम बंगाल के हुगली, बर्धवान, हावड़ा, उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, मालदा, मुर्शीदाबाद और बीरभूम जिले के लाखों बांग्लाभाषी मुसलमान इस दरगाह से जुड़े हुए हैं. ऐसे में इस बार के बंगाल चुनाव (Bengal Election) में ये देखना दिलचस्प होगा कि जिस दरगाह में चाचा ममता बनर्जी के साथ हो और भतीजा ओवैसी के साथ, उसमें से किन पर बंगाल का मुसलमान भरोसा करेगा.


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