नई दिल्ली: Amra ram Sikal Lok Sabha chunav 2024: साल 2004, देश में लोकसभा चुनाव हो रहे थे. राजस्थान की सीकर सीट पर कॉमरेड नेता अमरा राम चुनावी मैदान में थे. सीकर के कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं ने नारा दिया, 'लाल-लाल लहराएगा, अमरा दिल्ली जाएगा'. अमरा राम की पैठ गांव-ढाणियों तक तक थी. हर कार्यकर्ता को वे नाम से जानते थे. उन्हें उम्मीद थी कि सीकर के लोग इस बार उनके लिए संसद तक जाने का रास्ता बना ही देंगे. लेकिन चुनाव नतीजों ने अमरा राम को बड़ा झटका दे दिया. वे 3 लाख वोटों के अंतर से चुनाव हारे. चुनाव के बाद अमरा राम के एक कार्यकर्ता का बयान खूब चर्चा में रहा. उसने कहा कि मैं अमरा का समर्थक हूं, लेकिन उन्हें वोट नहीं दिया. उन्हें वोट देता तो वे जीतकर दिल्ली चले जाते. वे जाते तो यहां पटवारी से हमारे लिए कौन लड़ेगा? अब 2024 में अमरा राम चुनाव जीत गए हैं. अमरा ने भाजपा नेता सुमेधानन्द सरस्वती को चुनाव हराया है.


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इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी
अमरा राम सीकर लोकसभा सीट से इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी थे, उन्होंने जीत दर्ज की है. खास बात ये है कि राजस्थान के बीते विधानसभा चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी सीकर में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. बावजूद कांग्रेस ने इस सीट पर CPIM से गठबंधन किया है. अमरा राम की बेदाग छवि के चलते उन्हें यहां पर प्रत्याशी बनाया गया है. 68 बरस के अमरा युवाओं में भी खूब पॉपुलर हैं. शेखावाटी के कॉलेजों में SFI की धाक है, कम्युनिस्ट विचारधारा के छात्रों के लिए बाबा अमरा यहां आइडियल माने जाते हैं. 


मार्क्सवादी विचारधारा
अमराराम का जन्‍म 5 अगस्‍त, 1955 को सीकर के मूंडवाड़ा गांव में हुआ. गरीबी और मुफलिसी में जीवन बिताने वाले अमरा को मार्क्सवाद की विचारधारा पसंद आई. छात्र जीवन से ही उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी की छात्र विंग SFI का झंडा उठा लिया था. साल 1979 में अमरा राम सीकर के एसके कॉलेज से छात्रसंघ का चुनाव जीते. छात्र राजनीति से बाहर निकलते ही वे गांव के सरपंच बन गए. 


किस्तों में चुकाए जीप के पैसे
हालांकि, सरपंच बनने से पहले अमरा राम ने अपने ही गांव में एक साल तक टीचर की नौकरी भी की. लेकिन जैसे ही पंचायत के चुनाव आए, अमरा ने नौकरी छोड़ चुनावी राजनीति में किस्मत आजमाने का फैसला किया. अमरा राम 1981 में पहली बार सरपंच बने. दूसरी बार चुनाव लड़ा, उससे पहले उन्होंने 70 हजार रुपये में एक जीप खरीदी. अमरा राम बताते हैं कि मैंने अपने ही गांव के ही एक आदमी ने यह जीप खरीदी थी. इसके पैसे भी उन्होंने किस्तों में चुकाए थे. 


विधानसभा में नहीं मिली एंट्री
अमरा राम इलाके में किसानों के हकों के लिए लड़ने लगे. उन्होंने विधानसभा चुनाव में भी हाथ आजमाया, लेकिन जीत नहीं पाए. हालांकि, 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद हुए विधानसभा चुनाव में अमरा राम की धोद से जीत हुई. दरअसल, वहां के सांसद रामदेव सिंह से मुस्लिम वोटर्स खफा थे, इसलिए वे CPIM के पक्ष में आ गए. लिहाजा, अमरा ने जीत दर्ज की और विधायक बन गए. जब वे पहली बार विधानसभा गए, तो उन्हें अंदर ही नहीं जाने दिया गया था. यह किस्सा शेखावाटी के बुजुर्गों की जुबान पर आज भी है. दरअसल, अमरा राम बस से जयपुर पहुंचे थे. फिर वे ऑटो लेकर विधानसभा गए. जैसे ही वे विधानसभा के गेट पर पहुंचे तो गार्ड्स ने उन्हें वहीं रोक लिया. उनके लिए यह मानना कठिन था कि बगैर गाड़ी के भी कोई विधायक विधानसभा आ सकता है. जब अमरा राम ने जीत का सर्टिफिकेट दिखाया, तब उन्हें अंदर जाने दिया गया. फिर धोद व दांतारामगढ़ से अमरा चार बार विधायक रहे. 


आंदोलन के पर्याय बने अमरा राम 
शेखावाटी में अमरा राम आंदोलन के पर्याय बन गए हैं. किसान, छात्र या नौजवान, कोई भी आंदोलन करता है तो अमरा राम को जरूर याद किया जाता है. साल 2017 का किसान आंदोलन अमरा के कारण ही सफल माना जाता है. अमरा राम ने 13 दिन के भीतर बिना लाठी-डंडा चलवाए अपनी मांगे मनवा ली थीं. नतीजा ये रहा कि राजस्थान के किसानों का 50 हजार रुपये तक का कर्ज माफ हो गया. ये भी पढ़ें- Rahul Kaswan ने चुरू में 'मोरिये' बुलाए, भतीजे ने काका को ऐसे किया चित्त!


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