नई दिल्ली: Lok Sabha Speaker Post: देश में लोकसभा चुनाव के नतीजों में NDA को बहुमत मिला है. जनता ने अपने जनादेश में किसी भी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं दिया. भले भाजपा सबसे बड़ा दल बनी हो, लेकिन इन्हें जदयू और टीडीपी के सहारे सरकार का गठन करना होगा. JDU और TDP ने सरकार में कई मंत्रालय मांगे हैं, इसके अलावा स्पीकर पद पर भी सबकी नजर है. आइए, जानते हैं आखिरकार स्पीकर पद इतना अहम क्यों है?


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PM के बाद सबसे शक्तिशाली पद
आमतौर पर स्पीकर की जिम्मेदारी सदन को सुचारू रूप से चालान होती है. लेकिन इस पद की अहमियत तब बढ़ जाती है जब हंग पार्लियामेंट हो यानी सदन किसी एक दल को बहुमत न मिले. ऐसी स्थिति में स्पीकर का पद प्रधानमंत्री के बाद सबसे ताकतवर माना जाता है.


स्पीकर के पास होते हैं ये अधिकार
1. जब कोई गठबंधन का दल बहुमत पेश कर रहा हो और दोनों दलों के पक्षों का वोट बराबर हो तब फैसला स्पीकर के पास होते है. स्पीकर का अपना भी वोट होता है. वह जिसको भी वोट कर देता है, उसी के हक में फैसला जाता है. 


2. दल-बदलू सांसदों पर दल-बदल कानून लागू होगा या नहीं, इसका फैसला भी स्पीकर ही करता है. यदि किसी पार्टी या गठबंधन के सांसद पाला बदल लेते हैं तो उनकी अयोग्यता का फैसला स्पीकर ही करते हैं. 


3. स्‍थगन प्रस्‍ताव, अविश्वास प्रस्ताव या निंदा प्रस्ताव की अनुमति का अधिकार लोकसभा स्‍पीकर के पास ही होता है. सदन की प्रक्रियाओं में ये प्रस्ताव काफी जरूरी माने जाते हैं. 


4. सदन के  संसदीय समितियों के अध्यक्षों की नियुक्ति का अधिकार भी लोकसभा स्पीकर का होता है. स्पीकर उनकी कार्यशैली पर भी नजर  करता है और उनके कार्यों पर निगरानी रखता है.


किस्सा- स्पीकर चाहते तो बच जाती वाजपेयी सरकार!
स्पीकर की ताकत का अंदाजा आप इस किस्से से लगा सकते हैं. दरअसल, 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. BJP सबसे बड़ा दल बनी, 182 सीटें आईं. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार बनी. वाजपेयी ने TDP के GMC बालयोगी को स्पीकर बनाया. लेकिन करीब 13 महीने बाद ही AIADMK ने NDA से अपना समर्थन खींच लिया. संसद में वाजपेयी सरकार के पक्ष में 269 वोट पड़े. विरोध में 270 वोट. एक वोट से सरकार गिर गई. तब ओडिशा के सांसद गिरधर गमांग ने भी वाजपेयी सरकार के खिलाफ वोट किया. जबकि वे विधानसभा चुनाव जीत चुके थे और मुख्यमंत्री बन गए थे. नियम के मुताबिक उन्हें लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना था. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. सदन में वोट करना है या नहीं इसका फैसला स्पीकर GMC बालयोगी ने गमांग पर ही छोड़ दिया. जबकि स्पीकर चाहते तो उन्हें वोट करने से रोक सकते थे. इसका नतीजा ये रहा कि वाजपेयी की सरकार गिर गई. 


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