नई दिल्ली: Suchitra Sen: फिल्म इंडस्ट्री में कई ऐसे कलाकार रहे हैं जो अपने उसूलों के पक्के हैं, जो अपनी शर्तों पर काम करना पसंद करते हैं. ऐसे कलाकारों के लिए उनके उसूल पहले आते हैं, उसके बाद बाकी की दूसरी चीजें. सुचित्रा सेन भी एक ऐसी ही एक्ट्रेस रही हैं. वो खुद के उसूलों पर इस कदर चलती थीं कि उन्होंने एक दफा भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा फिल्मी पुरस्कार दादा साहब फाल्के अवॉर्ड लेने से भी इनकार कर दिया था. 6 अप्रैल को सुचित्रा की बर्थ एनिवर्सरी है. इस मौके पर चलिए आपको बताते हैं कि आखिर उन्होंने अवॉर्ड लेने से मना क्यों किया था.


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एक्ट्रेस की डेब्यू फिल्म नहीं हो पाई थी रिलीज 


सुचित्रा सेन का जन्म ब्रिटिश इंडिया के पबना (बांग्लादेश में) में हुआ था. वहीं से उन्होंने अपनी पढ़ाई-लिखाई पूरी की थी और जब वो महज 15 साल की ही थीं तभी उनकी शादी हो गई थी. उन्होंने बिजनेसमैन दिबानाथ सेन से शादी की थी. सुचित्रा फिल्मों में अपना करियर बनाना चाहती थीं. उन्होंने शादी के बाद अपने इस सपने को पूरा किया, जिसमें उनके पति और ससुर ने भी उनका साथ दिया था. साल 1952 के आसपास एक बंगाली फिल्म बन रही थी. नाम- ‘शेश कोठे’. उसी फिल्म के जरिए उन्होंने एक्टिंग की दुनिया में कदम रखा. हालांकि, ये फिल्म कभी रिलीज नहीं हो सकी. वो पहली बार पर्दे पर ‘चौत्तोर’ नाम की फिल्म में दिखी थीं. बस फिर क्या था, एक फिल्म रिलीज होना कि वो एक्टिंग की दुनिया में आगे बढ़ती चली गईं और ढेरों बंगाली फिल्में की. साथ ही हिंदी फिल्मों में भी अभिनय का जलवा बिखेरा.


सुचित्रा सेन की पहली हिंदी फिल्म


बिमल रॉय के डायरेक्शन में साल 1955 में ‘देवदास’ नाम की फिल्म आई थी. दिलीप कुमार फिल्म के हीरो थे. उसी फिल्म के जरिए सुचित्रा ने हिंदी सिनेमा में कदम रखा था. वो इस फिल्म में अहम किरदार में नजर आई थीं. सुचित्रा ने बॉलीवुड में एंट्री तो काफी बड़ी फिल्म से की, पर अपन पूरे करियर में उन्होंने सिर्फ 6 ही हिंदी फिल्मों में काम किया. दरअसल, उन दिनों आलम ये था कि लगभग हर फिल्ममेकर उन्हें अपनी फिल्म में कास्ट करना चाहता था, लेकिन वो बस उन्ंहीं फिल्मों को हां करती थीं, जो उन्हें सच में पसंद आती थीं. बस इसी वजह से उन्होंने हिंदी सिनेमा में गिनती की फिल्में की, लेकिन लोगों के ऊपर उम्दा अदाकारी की गहरी छाप छोड़ी.


दादा साहब फाल्के अवॉर्ड लेने से कर दिया था इनकार


फिल्मों में उनके योगदान को सराहने के लिए उन्हें अलग-अलग तरह के कई अवॉर्ड से नवाजा गया था. साल 1963 में ‘सात पाके बांधा’ के नाम से उनकी एक बंगाली फिल्म आई थी. उस फिल्म के लिए उन्हें रूस में मॉस्को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड दिया गया था. हालांकि, जब साल 2005 में उन्हें भारत का सबसे बड़ा फिल्मी अवॉर्ड दादा साहब फाल्के पुरस्कार दिया जा रहा था तो उन्होंने लेने से साफ मना कर दिया था. बता दें कि एक समय के बाद उन्होंने फिल्मों से संन्यास लिया था. सिनेमा से दूरी बनाने के बाद उन्होंने एक नियम बनाया था और खुद से ये वादा किया था कि वो अब लोगों के बीच कभी नहीं जाएंगी, यानी पब्लिक अपीयरेंस से बचेंगी. बस उसी वादे की खातिर उन्होंने अवॉर्ड नहीं लिया था.


कार्डियक अरेस्ट से हुआ था निधन 


दरअसल, वो कोलकता में रहा करती थीं और उन्हें अवॉर्ड लेने के लिए दिल्ली जाना पड़ता. और अगर वो ऐसा करतीं तो खुद से किया उनका वादा टूट जाता. बहरहाल, साल 2014 में सुचित्रा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था. रिपोर्ट्स में उनकी मौत की वजह कार्डियक अरेस्ट बताई जाती थी. आज वो भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन लोग उन्हें उनके उसूलों और शानदार एक्टिंग के लिए याद करते हैं.


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