मैं सुशांत सिंह राजपूत, मैं खुद से फांसी लगा ही नहीं सकता..!
आज हर कोई जानना चाहता है कि मेरी रहस्यमयी मौत का सच क्या है? मुझे किसने मार डाला? क्योंकि मैं आत्महत्या कर ही नहीं सकता..! मैं इतना कायर और बुज्दिल नहीं था. इससे सभी वाकिफ हैं, लेकिन सबसे बड़ा सच तो ये है कि मैंने खुद से फांसी तक नहीं लगाई.. मैं सुशांत हूं,
मैं सुशांत सिंह राजपूत.. मैं मर चुका हूं. मैंने खुद को नहीं मारा, लेकिन मरने के बाद मुझे सबसे ज्यादा अफसोस इसी बात है कि कम्बख्त दुनिया वालों ने मुझे खुद का हत्यारा बता दिया और ये कहने लगे कि मैंने खुद से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. बहुत सारे लोग जबरदस्ती इस झूठ को सच में बदलने पर तुले हुए हैं कि मैंने खुद से ही फांसी लगा ली. लेकिन मैं ये समझाना चाहता हूं कि मैं खुद से फांसी लगा ही नहीं सकता..!
मेरी मौत के बाद मेरे चाहने वालों ने इस बात को मानने से साफ-साफ इनकार कर दिया कि मैं ऐसे कदम उठाने के बारे में सोच भी सकता हूं. ये तो मेरे चाहने वाले कह रहे हैं, लेकिन मैं भी कुछ कहना चाहता हूं. मैं बताना चाहता हूं कि जिस फांसी को मेरी आत्महत्या बताई जा रही है वो फांसी मैंने खुद से लगाई ही नहीं. सबसे पहले आपको कुछ फैक्चुअल बातें बताता हूं.
मुझे किसने मारा ये तो मुझे ठीक से याद तो नहीं है, लेकिन हां इतना अच्छे से याद है कि मेरे कमरे की ऊंचाई करीब 11 फीट थी. हर किसी को पता है कि मेरी हाइट 6 फीट थी. मेरा बेड करीब 2 फीट का था, मेरा पंखा भी करीब 2 फीट लंबा था, पंखे से लटके हुए दुपट्टे की लंबाई भी 1.5 से 2 फीट बताई जा रही है. अब जरा आप ये समझिए कि अगर मैंने खुद से फांसी लगाई होती तो क्या मैं अपना पैर उपर उठाकर और लटककर आत्म हत्या करता?
कोई भी इंसान फांसी लगाकर खुदकुशी करता है तो वो कुर्सी या टेबल को बेड पर रखता है और फिर उसे पैर से ढकेलता है. लेकिन मुझे अच्छी तरह याद है कि मेरे कमरे में ऐसा कोई टेबल या कुर्सी.. कुछ था ही नहीं. ये तो सिर्फ एक छोटी सी बात है. मैं बार-बार यूं ही नहीं ये कह रहा हूं कि मैंने खुद से फांसी लगाई ही नहीं.. और मैं इस बात को पूरी दुनिया के सामने कहना चाहता हूं, लेकिन क्या करूं किसी ने मेरी आवाज को हमेशा के लिए दबा दिया. मैं बोलना चाहता हूं, अपनी मौत की सच्चाई से जुड़े हर सच को चीख-चीखकर बताना चाहता हूं. फिलहाल तो आपको ये समझना चाहिए कि मैं आखिर ये क्यों कह रहा हूं कि मैंने खुद फांसी लगाई ही नहीं..!
कहा ये जा रहा है जा रहा है कि मैंने खुद से फांसी लगा ली. लेकिन मेरे हैंगिंग ऑब्जेक्ट पर सिर्फ बाएं हाथ की उंगलियों के निशान थे. मैं तो लेफ्टी नहीं बल्कि राइटी था. तो क्या मैंने सिर्फ अपने लेफ्ट हाथ का इस्तेमाल करके अपने गले में फांसी का फंदा लगाया? अजीब बात है, मेरे गले के निशान के पास भी मेरे बाएं हाथ के ही फिंगर प्रिंट्स पाए गए हैं. मैं भला खुद के सिर्फ लेफ्ट हैंड का इस्तेमाल करके फांसी कैसे लगा सकता हूं? अच्छा आप लोग मेरी मौत के बाद की फोटो तो देखे ही होंगे, लेकिन आज एक बार फिर गौर से देखिए..
अगर मैं खुद से फंदा लगाकर लटका होतो मेरे गले पर जो निशान हैं वो शायद उपर की तरफ होते, लकिन तस्वीर में ये निशान राउंड शेप में साफ-साफ दिख रहा है. इस निशान को ध्यान से देखकर समझा जा सकता है कि मेरी मौत अगर फंसे में लटकने से होती तो निशान दूसरे तरह का होता.
एक और सवाल है, जो मुझे काफी परेशान कर रहा है. क्या किसी ने इस बात पर गौर किया कि लटकते हुए मेरी फोटो अभी तक सामने क्यों नहीं आई? अगर मेरी बॉडी पंखे से लटकी मिली तो... खैर मुझे तो बस इंसाफ चाहिए. क्योंकि मैं आत्महत्या कर ही नहीं सकता!
जहां तक मुझे याद है मैं तो जूस का ग्लास लेकर अपने कमरे में गया था. मैं ऑनलाइन वॉरफेयर गेम भी खेल रहा था. जो लोग ये साबित करने पर तुले हुए हैं कि मैंने खुद से फांसी लगा ली. उनसे मैं पूछना चाहता हूं कि दुनिया का कौन सा इंसान भला अपने मरने से पहले एक ग्लास जूस पीने की चाहत रखेगा और ऑनलाइन वॉरफेयर गेम खेलेगा. कौन सा व्यक्ति ये सोचेगा चलो मरने से पहले एक राउंड गेम खेल लेते हैं और एक ग्लास जूस भी पी लेते हैं फिर फांसी लगाएंगे.
सभी लोग मेरी मौत के रहस्य को दबाना चाहते हैं और इसे सुसाइड करार देना चाहते हैं. लेकिन मुझे इंसाफ चाहिए, मैंने खुद को नहीं मारा, मैंने आत्महत्या नहीं की, मैंने खुद से फांसी तक नहीं लगाई..!
मेरे केस से जुड़ी सारी बातें छिपाई जा रही हैं, ताकि इस रहस्य की गुत्थी को कभी सुलाझाया ना जा सके. हर किसी को मेरे केस का अपडेट जानने की चाहत है, सबको हक भी है, क्योंकि मेरे सभी अपनों को मुझपर पूरा भरोसा है कि मैंने खुद से खुद को नहीं मारा. ये भरोसा बिल्कुल सच्चा है, क्योंकि मैं तो जीना चाहता था. अपने हर एक सपनों को हर रोज नई उड़ान देना चाहता था. मैंने पूरी जिंदगी में कभी हार नहीं मानी तो भला जिंदगी की जंग में कैसे हार मान लूंगा. मुझे मैंने नहीं, किसी और ने मारा है.
मुझे मारने वाले ने भले ही मुझे दुनिया से मिटा दिया हो लेकिन मैं आज भी जिंदा हूं, हर किसी के दिल में.. मुझे वो चाहकर भी वहां से नहीं खत्म कर सकते हैं. मेरी मौत के रहस्य से पर्दा उठे इसके लिए हर किसी को एकजुट होना होगा. एक-एक चिंगारी को एकसाथ आकर मुझे मारने वाले को ढूंढना होगा. मैं चाहता हूं कि प्लीज मेरी मौत पर आत्महत्या का ठप्पा ना लगाया जाए. जांच करवाइए, तफ्तीश करवाइए, कुछ भी करके सच सामने आना चाहिए. क्योंकि मैं सुशांत सिंह राजपूत, मैं खुद से फांसी लगा ही नहीं सकता..!
यह अभी तक मिले सबूतों के आधार पर आयुष सिन्हा की कलम से लिखा गया है.
मैं सुशांत सिंह राजपूत, मैं आत्महत्या कर ही नहीं सकता..!
मैं सुशांत सिंह राजपूत, मेरी मौत को आत्महत्या बताने की जल्दबाजी क्यों?