नई दिल्लीः बेरोजगारी और पत्नी के अमीर परिवार से होने की दलील देते हुए एक शख्स ने कर्नाटक हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर मंगलवार को सुनवाई में पीठ ने फैसला सुनाया. पति ने पत्नी से 2 लाख रुपये मुआवजे की मांग की थी.


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हाई कोर्ट ने पति की याचिका की खारिज
कर्नाटक हाई कोर्ट ने फैसला में कहा कि शारीरिक रूप से स्वस्थ पति अपनी पत्नी से भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकता है. यह आलस्य को बढ़ाना होगा. न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश की पीठ ने पति की रखरखाव की मांग वाली याचिका खारिज कर दी. साथ ही उसे अपनी पत्नी को प्रति माह 10,000 रुपये देने का आदेश दिया.


हाई कोर्ट ने की पति की खिंचाई 
पीठ ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के अनुसार, पति और पत्नी को अपने भागीदारों से रखरखाव की मांग करने वाली याचिका प्रस्तुत करने का प्रावधान है. लेकिन, याचिकाकर्ता पति ने केवल पत्नी को गुजारा भत्ता देने से इनकार करने के लिए भरण-पोषण की मांग वाली याचिका दायर की है.


न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने मामले में कहा, पति बेरोजगारी के बहाने पत्नी की ओर से दिए गए भरण-पोषण से गुजारा करना चाहता है. जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि पति शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम है, तब तक वह पत्नी से गुजारा भत्ता नहीं मांग सकता है.


'पति का कर्तव्य है कि वो नैतिक रूप से पैसा कमाए'
उन्होंने कहा कि पति का कर्तव्य है कि वह नैतिक रूप से पैसा कमाए और अपनी पत्नी और बच्चों की देखभाल करे. अपनी बहन के बेटे के जन्मदिन में शामिल होने के लिए पति के साथ झगड़ा करने के बाद 2017 में पत्नी अपने माता-पिता के घर चली गई थी और वह अलग हो गए थे.


पहले फैमिली कोर्ट में दाखिल की थी अर्जी
पति ने फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दाखिल की थी. पत्नी ने 25 हजार रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता और केस के खर्च की मांग की थी. बदले में पति ने अदालत को बताया था कि वह कोविड महामारी के कारण दो साल से बेरोजगार था और उसके पास पैसे नहीं हैं.


हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को रखा बरकरार
पति ने पत्नी से 2 लाख रुपये मुआवजा देने की मांग की, क्योंकि वह अमीर परिवार से है. फैमिली कोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर दी थी और उसे अपनी पत्नी को हर महीने 10 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था. इसके बाद उन्होंने इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की थी.


(इनपुटः आईएएनएस)


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