नई दिल्ली: चीन और भारत के बीच जब भी तनाव होता है तो 1962 के जंग की याद दिलाई जाती है. दोनों देशों से रक्षा बजट के असंतुलन और सैन्य बलों की संख्या की बातें की जाने लगती हैं. इस तरह के जिक्र से भारत पर एक तरह का मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिश की जाती है. लेकिन गलवान घाटी के खूनी संघर्ष ने चीन और चीन परस्त ताकतों दोनों के होश ठिकाने लगा दिए हैं. 

गलवान में भारतीय बलवानों के दांव से चीन के दिल में दहशत
भारतीय फौजियों ने बिना एक गोली चलाए गलवान घाटी में चीनी फौजियों पर वो कहर बरसाया कि उनके दिलों में भारतीय बहादुरी की छाप गहरे उतर गई. मात्र 55 फौजियों ने चीन के 300 से ज्यादा सिपाहियों को ना केवल खदेड़ दिया. बल्कि उनकी इतनी बुरी तरह पिटाई की है कि कई चीनियों की गर्दन और रीढ़ की हड्डी टूट गई है और वो उम्र भर के लिए अपाहिज हो गए हैं. 
भारत ने इस लड़ाई में अपने 20 बहादुर गंवा दिए. लेकिन दुश्मन की क्षति दोगुने से ज्यादा (43) हुई. 


15-16 जून की रात हुई इस झड़प के बाद हाल ये था कि चीनी सैनिकों की लाशें और घायल शरीर खुले में बिखरे पड़े हुए दिख रहे थे. बाद में चीन को उनके सैनिकों के शव सौंप दिए गए. खास बात ये थी कि भारत के लगभग 55 जवानों ने चीन के 300 से ज्यादा सिपाहियों को धूल चटा दी और बिहार रेजीमेंट के शूरवीर जवानों ने बलपूर्वक  पेट्रोलिंग प्वाइंट 14 पर चीन के टेंट को हटा दिया. हालांकि चीनी सैनिक झगड़े के लिए तैयारी करके आए थे. उनके पार कांटेदार डंडों से लेकर कई तरह के घातक हथियार थे

लेकिन भारतीय फौजियों ने उनसे उनके ही हथियार छीन लिए और उनकी जमकर पिटाई की. ये घटना कोई छोटी नहीं है. इसने भारत को चीन पर मनोवैज्ञानिक बढ़त दिला दी है. 
कई बार हार चुका है चीन
चीन को भारत कई बार धूल चटा चुका है. 1962 की जंग भारतीय सेना ने नकारा राजनीतिक नेतृत्व के गलत फैसलों के कारण गंवा दी थी. शौर्य में उस समय भी कोई कमी नहीं थी. साल 1967 में भारतीय सेना ने नाथु-ला के सेबु-ला में चीनी सैनिकों को भारतीय फौजियों के कहर झेलना पड़ा था. इस झड़प में 400 चीनी सैनिक मारे गए थे. 


इसके बाद अक्टूबर 1967 में चाओ ला इलाके में चीन और भारत की फौजों में झड़प हई. जिसमें भारत ने एक बार फिर से चीन को जबरदस्त सबक सिखाया था. 1967 की ये दोनों झड़पं 17वीं माउंटेन डिविजन के सागत सिंह के नेतृत्व में लड़ी गई थीं. जिसमें चीन को मुंह की खानी पड़ी थी.
  
इसके अलावा 1987 में नामका-चू इलाके में चीन ने भारतीय जमीन पर कब्जा कर लिया था. जिसके खिलाफ भारतीय सेना ने ऑपरेशन फॉल्कन चलाया था. इस दौरान भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल के.सुंदरजी के आदेश पर चीन सीमा पर 7 लाख सैनिकों की तैनाती की गई थी. यहां तक कि हिमालय के दुर्गम इलाकों में टी-72 जैसे टैंक भी उतार दिए गए थे. जिससे चीन इतना डर गया कि उसकी फौज भारतीय सीमा खाली करके भाग खड़ी हुई.
इसके बाद साल 2017 में डोकलाम में जो हुआ, उसे पूरी दुनिया ने देखा कि कैसे भारतीय फौज के सामने चीन की सेना को पीछे लौटना पड़ा.  
गलवान की घटना ने जाहिर किया चीन का खोखलापन 
लेकिन गलवान की ताजा घटना ने चीन की सेना के खोखलेपन को साफ जाहिर किया है. क्योंकि यह लड़ाई बंदूकों और टैंकों की ना होकर आमने सामने की थी. इसमें जंग का फैसला बाहुबल और मनोबल से हुआ. 
लाठी-डंडे, पत्थर और लात-घूंसों की जंग में चीन की फौज भारतीयों के सामने टिक नहीं पाई. इससे पता चलता है कि चीन की फौज दोयम दर्जे की है. उसका मनोबल गिरा हुआ है और वह शारीरिक ताकत में भारतीय सेना के सामने कहीं नहीं ठहरती. 
दरअसल चीन की फौज को भ्रष्टाचार का दीमक खा रहा है. साल 2012 में सत्ता संभालने के साथ ही चीन के वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रिश्वतखोरी और नकारेपन के इल्जाम में चीन की सेना के 100 जनरलों को बाहर निकाल दिया था. इसके अलावा चीन की सेन्ट्रल मिलिट्री कमीशन के दो वाइस चेयरमैन को भी हटाना पड़ा था. 


इसके अलावा चीन में वन चाइल्ड पॉलिसी के कारण पिछले 36 सालों में पैदा हुए चीन के बिगड़ैल और लाड़ले बच्चे चीन की फौज में सिपाही औऱ अधिकारी बनकर छाए हुए हैं. जो थोड़े से संघर्ष में घुटने टेक देते हैं.

चीन की सेना संख्या में भले ही ज्यादा हो. लेकिन जोश और हौसले के मामले में वह भारतीय फौज के सामने कहीं नहीं टिकती. चीन इस सच को समझ चुका है. यही वो मनोवैज्ञानिक बढ़त है, जो भारत ने चीन पर हासिल की है. यही ड्रैगन पर हिंदुस्तान की सबसे बड़ी जीत है. 


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