नई दिल्ली: एक राष्ट्राध्यक्ष होने के नाते पीएम मोदी(PM Modi) का ध्यान देश की आर्थिक तरक्की(Economic development) के साथ आध्यात्मिक विकास(Spiritual development) पर भी है. यही वजह है कि पीएम 'काफी बरसों से बाकी' धार्मिक कार्यों को पूर्ण कराने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई दे रहे हैं. उन्होंने अयोध्या(Ayodhya) में अपने हाथों से राम मंदिर(Ram MAndir) की नींव का पत्थर रखा. 

इसके बाद अब पीएम ने शिव के धाम यानी कैलाश तक जाने का रास्ता निष्कंटक बनाने का मन बना लिया है. परिस्थितियां जैसी निर्मित हो रही हैं. उन्हें देख कर लगता है उनके ही द्वारा 'भगवान शिव के धाम कैलाश' पहुंचने का मार्ग भी प्रशस्त हो जाएगा.
कैलाश जाने का आसान मार्ग है दामचुक 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शिव भक्त हैं. कई मौकों पर भोलेनाथ के प्रति उनका प्रेम छलक कर बाहर आ ही जाता है. ऐसे में पीएम मोदी भला भगवान शिव के परम धाम कैलाश मानसरोवर तक सुगम यात्रा का ध्यान भला कैसा नहीं रखते.


भारत से कैलाश मानसरोवर की यात्रा बेहद कष्टदायक होती है. इसमें 27 दिन लगते हैं. शायद इसीलिए पीएम मोदी के मन में लद्दाख से तिब्बत होते हुए मानसरोवर तक पहुंचने के मार्ग से बाधाएं हटाने का मन बना लिया है. लद्दाख के दामचुक से मानसरोवर मात्र चार दिनों की यात्रा है. यह समय संसाधन और शक्ति बचाता है. 
सदियों से मानसरोवर जाने के लिए प्रयोग होता था दामचुक का रास्ता
 सदियों से लेह के दामचुक से होते हुए मानसरोवर जाने का रास्ता शिव भक्तों द्वारा प्रयोग होता था. लेकिन पिछले कुछ दशकों में चीन की दखलंदाजी की वजह से यह रास्ता ठप पड़ गया. जब से तिब्बत पर चीन का कब्जा हुआ तब से चीन की सेना ने इस रास्ते पर कब्जा कर लिया.  लेकिन अब लगता है शिव की कृपा से चीन की दादागिरी का समय खत्म होने का समय आ गया है. भारत की शूरवीर सेना ने अपने पैर बढ़ाने शुरू कर दिया है.
29-30 अगस्त की रात चीनी सेना के दुस्साहस के बाद भारतीय सेना ने पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे की अहम चोटी ब्लैक टॉप पर कब्जा कर लिया है.  पूर्वी लद्दाख की सीमा पर यह चोटी भारत के लिए बहुत अहम है. क्योंकि यहां से चीन की पूरी गतिविधि पर नजर रखी जा सकती है.
 ब्लैक टॉप का क्या महत्व है इस से जुड़ी खबर आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं.


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पूर्वी लद्दाख के रास्ते से दामचुक होते हुए कैलाश मानसरोवर का मार्ग सिर्फ 4 दिनों का है. जबकि नाथू-ला के रास्ते कैलाश की यात्रा 26- 30 दिनों में पूरी होती है. यह एक छोटा और सुविधाजनक रास्ता है. 


लद्दाख और तिब्बत के लोग इस रास्ते को खोलने की मांग कई दशकों से कर रहे हैं. क्योंकि इस मार्ग का महत्व सिर्फ आध्यात्मिक ही नहीं. बल्कि आर्थिक और सामाजिक भी है. दामचुक-मानसरोवर मार्ग इस रास्ते की लाइफलाइन की तरह है. यह मार्ग सदियों पुराना है. लेकिन चीनी फौज इसपर कब्जा जमाए बैठी है.  


कैलाश मार्ग के निर्माण के दौरान ही शुरु हुआ भारत चीन का झगड़ा 


 आपको याद होगा कि चीन और भारत की झड़प की शुरुआत सीमा पर निर्माण कार्यों की वजह से हो रही थी. कैलाश मानसरोवर के यात्रियों के मार्ग के लिए भारत ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सड़कें और इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेन्ट का काम शुरु किया था. जिसपर चीन ने आपत्ति जताई थी. हालांकि यह निर्माण कार्य अभी भी जारी है.



चीन को लगता था कि मानसरोवर यात्रा समाप्त हो जाने के बाद उसी इंफ्रास्ट्रक्चर का सहारा लेकर भारतीय सेना इस इलाके में मजबूत कब्जा बना लेगी. इसीलिए सीमा पर भारत के निर्माण कार्यों से क्रुद्ध होकर चीन की सेना बार-बार अपनी आपत्ति दर्ज करा रही है.  इसी आपत्ति का परिणाम गलवान घाटी में भारत और चीनी फौजियों की हाथापाई लाठियों और पत्थरों से हुए युद्ध में निकला. गलवान में भारतीय फौजियों ने 20 जवानों की जान गंवा दी. लेकिन बदले में 43 चीनी फौजियों को मौत के घाट उतार दिया. 
मोदी के सामने नहीं चलेगी चीन की जिद
चीन जिद पर अड़ा हुआ था कि वह बॉर्डर इलाकों में भारत को सड़कें नहीं बनाने देगा और इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप नहीं करने देगा. लेकिन चीन यह भूल जाता है कि भारत में इस वक्त कोई मजबूर सरकार नहीं बैठी है. भारत में एक मजबूत सरकार है. जो चीन की इस तरह की अवैध आपत्तियों का माकूल जवाब दे सकती है.  यही हुआ भी, जिसे हम सबने देखा. पूरी दुनिया देख रही है कि कैसे चीन दुम दबाकर पीछे हटता जा रहा है.


 चीन की फौज भारतीय शूरवीरों को देखते ही भाग खड़ी होती है.  पिछले कई दशकों में चीन की अजेय मानी जाने वाली पीपुल्स लिबरेशन आर्मी(PLA)  की यह दुर्गति किसी ने सोची भी नहीं होगी. 
चीन की यह दुर्गति तय थी
चीन को अभी बहुत दुर्दिन देखने हैं. उसकी सेना की भारत के हाथों बेइज्जती तय थी. क्योंकि उसने शिव के घर कैलाश मानसरोवर में घुसपैठ की कोशिश की थी. पिछले कुछ दिनों में देखा जा रहा था कि चीन ने भोलेनाथ के यानी कैलाश मानसरोवर के पास मिसाइलों का अड्डा बनाने की कोशिश की. जिसकी सजा चीन को मिलनी ही थी. चीन को अभी और पीछे हटना है. 



 चीन को अभी कैलाश मानसरोवर का रास्ता साफ करना है जिससे कि भोले के भक्त जयकारा लगाते हुए उस रास्ते बढ़ सके. भोलेनाथ की कृपा से पीएम मोदी शायद इसी मकसद के लिए काम कर रहे हैं. 
सिंधु पूजन करके पीएम ने दिया था अपने इरादों का संकेत 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 4 जुलाई को अचानक लद्दाख पहुंच गए थे. जहां उन्होंने निमू में सिंधु दर्शन किया और पारंपरिक रूप से पूजा अर्चना की. सिंधु दर्शन उत्सव हर साल इसी समय पूर्णिमा के मौके पर मनाया जाता है. जिसका काफी महत्व है. पीएम मोदी ने पहली बार लद्दाख के इस पारंपरिक उत्सव में हिस्सा लिया था. 



सिंधु दर्शन करने के बाद पीएम मोदी गलवान में घायल हुए भारतीय सैनिकों से मुलाकात करने अस्पताल पहुंचे थे. पीएम द्वारा सिंधु दर्शन इसलिए भी अहम है. क्योंकि सिंधु नदी के किनारे किनारे होते हुए ही दामचुक-लद्दाख का रास्ता निकलता है. जिसकी शुरुआत दामचुक गांव से होती है. यही वह 4 दिनों का मार्ग है. जो यात्रियों को बड़ी आसानी से कैलाश मानसरोवर पहुंचा देता है.



शायद सिंधु पूजन करके पीएम मोदी ने कैलाश तक जाने का मार्ग प्रशस्त करने का ही संकल्प लिया है. इस मार्ग का खुलना भारत और तिब्बत के साथ साथ चीन के लिए भी फायदेमंद है. बशर्ते चीन अपनी हठधर्मी बंद कर दे.   



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