कोरोना संकट के बाद शुरु हो सकता है तीसरा विश्व युद्ध, देखिए 9 प्रबल संकेत
कोरोना संकट ने वैश्विक परिदृश्य पर विचित्र असर डाला है. जहां पूरी दुनिया इस महामारी से जूझने में व्यस्त है, वहीं दूसरी तरफ जंग की गहमागहमी जारी है. अमेरिका और यूरोप कोरोना संकट को लेकर जिस तरह से खफा दिख रहे हैं. उससे लगता है कि पूरी दुनिया पर छाया कोरोना तनाव कभी भी विश्व युद्ध में बदल सकता है.
नई दिल्ली: कोरोना(Coronavirus) ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले रखा है. विश्व का हर देश किसी भी कीमत पर सिर्फ कोरोना से निजात पाने के लिए जूझ रहा है. अमेरिका और यूरोप तबाह हो रहे हैं. उन्हें साफ तौर पर लगता है कि उनकी इस दुर्गति के लिए सिर्फ और सिर्फ चीन जिम्मेदार है. वह चीन को लगातार धमकियां दे रहे हैं. चीन भी आगामी संकट को समझते हुए अपनी तैयारियों में जुटा हुआ है. लेकिन यह तनाव क्या दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की विभीषिका में धकेल सकता है. देखिए इस बात के 9 बड़े संकेत-
खबर आ रही है कि दुनिया को कोरोना में उलझा कर चीन ने परमाणु परीक्षण किया है. चीन के परमाणु संस्थानों ने जमीन के नीचे कम तीव्रता वाले Nuclear Test किए हैं. चीन के परमाणु परीक्षण की खबर अमेरिकी एजेन्सियों ने दी है.
हालांकि उनकी तरफ से इस बात का कोई सबूत नहीं दिया गया है. लेकिन परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर ये कहा जा रहा है कि चीन ने लॉप नूर टेस्ट परीक्षण स्थल पर इसे अंजाम दिया है.
सबसे पहले वॉल स्ट्रीट जर्नल में छपे अमेरिकी विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है, “चीन शायद लॉप नूर टेस्ट साइट को साल भर चालू रखने की तैयारी में है. वहां पर बड़े विस्फोटक चैंबर्स बनाए गए हैं और लॉप नूर में न्यूक्लिर टेस्टिंग को लेकर पारदर्शिता नहीं बरती जा रही है.”
खास बात ये है कि चीन पर कम तीव्रता वाले परमाणु बमों के परीक्षण का शक है, जिनसे किसी छोटे इलाके को निशाना बनाना आसान होता है. शायद इसमें पाकिस्तान भी शामिल है. ये भारत के लिए खतरनाक खबर साबित हो सकती है.
2. अपने तेल भंडार में भारी इजाफा कर रहा है चीन
पिछले दिनों एक और खबर आई जो यह बताती है कि चीन युद्ध की तैयारियों में जुटा हुआ है. चीन ने पिछले एक महीने में अपने ऑयल रिजर्व में भारी इजाफा किया है. दरअसल पिछले दिनों कच्चा तेल सस्ता हुआ है. जिसकी वजह से चीन तेल का विशाल भंडार बनाने में लग गया है.
कच्चे तेल की मांग में भारी गिरावट आने तथा रूस के साथ प्राइस वार की वजह से सऊदी अरब द्वारा बाजार में आपूर्ति बढ़ाने से मार्च में यूएस ऑयल फ्यूचर और ब्रेंट क्रूड की कीमतें 18 साल के निम्नतम स्तर पर पहुंच गईं.
सीएनपीसी के मुताबिक चीन साल 2020 के अंत तक चीन अपने इमर्जेंसी भंडार में 8.5 करोड़ टन तेल चाहता है, जो अमेरिका द्वारा अपने स्ट्रैटिजिक पेट्रोलियम रिजर्व में रखे जाने वाले तेल से भी ज्यादा है. यह दुनिया का सबसे बड़ा तेल बैकअप है.
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक मार्च में चीन का क्रूड इंपोर्ट करीब 12 फीसदी बढ़कर 43.91 मिलियन टन पहुंच गया है. क्रूड ऑयल की कीमत पिछले एक साल में 50 फीसदी से ज्यादा नीचे आ गई है.
3. समुंदर में चीन ने बढ़ाई अपनी धमक
कोरोना संकट के बीच चीन समुद्र में अपनी ताकत दिखानी शुरु कर दी है. चीन ने साउथ चाइन सी में मछली पकड़ने वाली एक वियतनामी नाव को टक्कर मारी और उसे डुबो दिया. डूबे हुए जहाज पर आठ लोग थे, इसके अलावा चीन ने दो वियतनामी नाव को पकड़ भी लिया है.
पिछले करीब एक सप्ताह से समुंदर में चीन का दुस्साहस बढ़ता जा रहा है. वह छोटे देशों के उत्पीड़न पर उतर आया है. जनवरी से फिलीपीन के कब्जे वाले पगासा द्वीप के पास कम से कम 130 चीनी जहाजों को देखा गया है.
चीन ने दक्षिण चीन सागर में बड़े मानव निर्मित द्वीपों पर दो नए रिसर्च स्टेशन शुरू किए गए हैं. ये स्टेशन विवादित द्वीप समूह(स्पार्टल्स) क्षेत्र में फील्ड नेविगेशन और रिसर्च कर रहे हैं. उन्हें रोकने वाला अमेरिका कोरोना में उलझा हुआ है.
चीन ने समुंदर में अपनी विस्तारवादी नीति बरसों से जारी रखी हैं. लेकिन दुनिया को कोरोना संकट में उलझाने के बाद उसकी गतिविधियां कई गुना बढ़ गई हैं. क्योंकि पहले अमेरिकी नौसेना उसका विरोध करती थीं. लेकिन अमेरिका में कोरोना का प्रकोप बढ़ जाने के कारण उसका ध्यान चीन की गतिविधियों पर से हट गया है.
चीन की विस्तारवादी नीति दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में चलती रहती हैं. चीन हमेशा से दक्षिण चीन सागर पर अपना हक जताता है. जबकि यहां वियतनाम, मलयेशिया, फिलीपींस, ब्रूनेई और ताइवान जैसे देशों का भी अधिकार है.
पूर्वी चीन सागर में चीन और जापान आमने सामने रहते हैं. ये दोनों समुद्री क्षेत्र दक्षिण और पूर्वी चीन सागर को खनिज संपदा के लिए काफी समृद्ध माना जाता रहा है. यह जल क्षेत्र वैश्विक कारोबार के लिहाज से भी अहम रहा है. अब कोरोना संकट का फायदा उठाते हुए चीन इस इलाके पर अपना कब्जा मजबूत करता जा रहा है.
अमेरिका में कोरोना फैलने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प साफ़ तौर पर चीन को जिम्मेदार मान रहे हैं. एक प्रेस कांफ्रेन्स में जब एक पत्रकार ने ट्रंप से सवाल किया कि - क्या चीन अपनी करनी का परिणाम नहीं भुगतेगा? इस बात पर भड़क कर ट्रम्प ने कहा कि आपको ये कैसे पता कि चीन परिणाम नहीं भुगतेगा?
इसके बाद पत्रकार ने जब आगे सवाल किया कि चीन पर क्या कार्रवाई होगी? क्या चीन अपनी करनी का क्या परिणाम भुगतेगा? इसपर ट्रम्प ने जवाब दिया कि मैं ये आप लोगों को नहीं बता सकता कि चीन क्या परिणाम भुगतेगा. ये चीन को ही पता चेलगा कि उसने जो किया उसका नतीजा अच्छा नहीं है.
ट्रंप के इस लहजे से साफ पता चलता है कि अमेरिका चीन से बेहद नाराज है. वह बस कार्रवाई करने के लिए उचित समय की तलाश कर रहा है.
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जहां अमेरिका चीन से नाराज है वहीं ब्रिटेन भी चीन को अपनी बर्बादी का जिम्मेदार मानता है. कोरोना वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि होने के बाद self isolation में रह रहे ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने सभी ब्रिटिश परिवारों को पत्र लिखा. जिसमें उन्होंने चेतावनी दी है कि परिस्थितियां ठीक होने से पहले खराब होंगी.
प्रधानमंत्री की लिखी चिट्ठी कोरोना वायरस से लड़ने के लिए सरकार द्वारा जारी परामर्श की पुस्तिका के साथ डाक के जरिये तीन करोड़ घरों को भेजी गई है जिसपर करीब 58 लाख पाउंड की लागत आई.
ब्रिटिश पीएम जॉनसन ने कहा कि वह सख्त कदम उठाने से भी नहीं हिचकेंगे और चीजें बेहतर होने से पहले और खराब होंगी.
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दुनिया की महाशक्तियों में गिने जाने वाले यूरोप और अमेरिका अपनी हनक खत्म होते देखकर बेचैन हैं . अमेरिका औऱ यूरोप अभी तक विश्व की महाशक्तियों और सबसे ताकतवर देशों में गिने जाते थे. जो जब चाहे दुनिया के किसी भी देश को आँखें दिखाकर प्रतिबन्ध लगा देते थे.
लेकिन आज वे सभी कोरोना की वजह से घुटने टेकने की कगार पर पहुंच चुके हैं. फ़्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, स्पेन और यूरोप व पश्चिम के तमाम देश जो दुनिया पर आर्थिक नियंत्रण रखते थे, कोरोना वायरस की चपेट में आकर तबाह होते जा रहे हैं.
वो वर्चस्व जो पहले सिर्फ यूरोपियन देशों और अमेरिका के हाथ में रहता था, वह चीन के हाथों में जाता हुआ दिख रहा है. जो देश सदियों से विश्व की व्यवस्था और अर्थ नीति के संचालक थे वे आज नाक रगड़ने के लिए मजबूर हो चुके हैं.
ऐसे में अमेरिका और यूरोप कोरोना संकट खत्म होने के बाद अपनी स्थिति वापस पाने के लिए कभी भी चीन पर दंडात्मक कार्रवाई कर सकते हैं. जिसकी परिणति युद्ध में ही हो सकती है.
कोरोना संकट के बावजूद चीन की विस्तारवादी नीति को देखते हुए यूरोप और अमेरिका ने भारत से बहुत ज्यादा उम्मीदें बांधी हैं. महामारी के बावजूद अमेरिका ने भारत को 1,178 करोड़ रुपये की हारपून और टॉरपीडो मिसाइलें बेचेने का फैसला किया है. जो कि चीन से पैदा हुए समुद्री खतरे को ध्यान में रखते हुए किया गया फैसला है.
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि विदेश मंत्रालय ने इस डील को मंजूरी दे दी है. अमेरिकी मीडिया में छपी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को इन मिसाइलों के जरिए क्षेत्रीय चुनौतियों से निपटने में मदद मिलेगी.
रिपोर्ट के मुताबिक 10 AGM-84L हारपून मिसाइलों के लिए भारत को 92 मिलियन डॉलर की रकम चुकानी होगी, जबकि टॉरपीडो मिसाइलों को भारत 63 मिलियन डॉलर की रकम खर्च करके खरीदेगा.
अमेरिका की डिफेंस सिक्योरिटी कॉपरेशन एजेंसी ने अमेरिकी संसद को इस डील की जानकारी दी है.
2016 में अमेरिका ने भारत को मुख्य रक्षा साझीदार का तमगा दिया था. अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के मुताबिक हारपून मिसाइलों के जरिए हवा से समुद्री सीमा की निगरानी की जा सकती है और किसी संदिग्ध जहाज को निशाना बनाकर अटैक किया जा सकता है.
पेंटागन के मुताबिक इसके जरिए अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को संवेदनशील समुद्री क्षेत्रों पर निगरानी और सहयोग बढ़ाने में मदद मिलेगी. इस डील का मकसद दक्षिण चीन सागर में चीन की विस्तावादी नीतियों पर रोक लगाना है.
आने वाले विश्वयुद्ध के खतरे को भांपकर अमेरिका की जनता बेचैन हो रही है. उसकी बेचैनी इस बात से भी झलक रही है कि महामारी के बीच अमेरिका में पिछले महीने रिकार्ड हथियार की खरीद हुई है.
अमरीकियों द्वारा फायरआर्म्स की पिछले महीने की गई यह खरीदारी गुजरे 20 साल में सबसे अधिक है. एफबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल मार्च में ही 20 लाख से ज्यादा हथियार (गन, फायरआर्म्स) खरीदे गए. एफबीआई (फेडरल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेशन) ने मार्च 2020 में 37 लाख बैकग्राउंड चेक किया. जो कि 1998 के बाद से सबसे बड़ा बैकग्राउंड चेक है.
आंकड़े के मुताबिक मार्च 2019 के मुकाबले मार्च 2020 में इसमें 11 लाख का इजाफा हुआ है. 21 मार्च को ही एक ही दिन में 2,10,000 बैकग्राउंड चेक किए गए. यह एक दिन का सबसे बड़ा ऐतिहासिक आंकड़ा है.
अमेरिका के कुछ प्रांतों में तो हथियारों की खरीद को लेकर भगदड़ जैसी स्थिति बनी हुई है. हथियार खरीदने के मामले में इलिनॉय प्रांत सबसे आगे रहा. इसके बाद टेक्सस, केंटुकी, फ्लोरिडा और कैलिफोर्निया का नंबर आता है.
जानकारों का मानना है कि कोरोना वायरस संकट खत्म होने के बाद विश्वयुद्ध जैसे किसी संकट आने की स्थिति में अमेरिका में सिविल सोसाइटी, जिसमें फायर, पुलिस और स्वास्थ्य सेवाएं आती हैं, जैसी सेवाएं ध्वस्त हो सकती हैं. जिसकी वजह से कानून और व्यवस्था का ढांचा चरमरा सकता है. इन हालातों में हथियार ख़ुद को बचाए रखने का तरीका साबित हो सकते हैं.
9. इसके अलावा भी कई छोटे संकेत हैं
- यूनाइटेड नेशन और वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के अनुसार अमेरिका के बाद चीन विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था है और चीन की महत्वाकांक्षी सरकार इस पायदान पर नम्बर एक होना चाहती है. ये चीन का पुराना सपना है.
- कोरोना वायरस चीन में नवम्बर के आखिरी दिनों में सामने आया. लेकिन चीन ने महीनों तक इसकी जानकारी पूरी दुनिया से छिपा कर रखी.
- चीन काफी समय तक यह मानने से इंकार करता रहा कि ये हवा से फैलने वाला वायरस है.
- कोरोना वायरस के प्रसार के लिए चीन ने कई कोशिशें की. चीन के नागरिकों ने कोरोना वायरस लेकर यूरोप और अमेरिका के कई देशों में जान बूझककर यात्रा की.
- कोरोना से मची अफरातफरी का फायदा उठाकर चीन पूरी दुनिया के शेयर बाजार पर कब्जा कर रहा है.
- कोरोना वायरस के बहाने चीन अरबों के मेडिकल इक्विपमेन्ट और टेस्टिंग किट बेच रहा है. जिसमें से ज्यादातर बेहद बुरी क्वालिटी के हैं.
- यूनाइटेड नेशंस की सुरक्षा परिषद् ने जब कोरोना की पारदर्शिता को लेकर मीटिंग बुलाने का निर्णय लिया तब चीन ने अपने वीटो पावर का अधिकार करके इस मीटिंग को ही कैंसिल करवा दिया.
- कोरोना वायरस जब शुरुआती दौर में था तब सभी देशों में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय हवाई यातायात बंद किये जाने संबंधी कदम उठाने की कोशिश की गई थी. लेकिन चीन ने इसमें अड़ंगा डाल दिया.
ये सभी संकेत इस बात की तरफ इशारा कर रहे हैं कि कोरोना वायरस के बहाने चीन अपनी विस्तारवादी नीति को बल दे रहा है. अमेरिका और यूरोप भी चीन की इस कुटिल साजिश को भांप चुके हैं. लेकिन वे कोरोना वायरस से जूझने में व्यस्त हैं. लेकिन जैसे ही कोरोना का प्रकोप कम होगा पूरी दुनिया चीन पर टूट पड़ेगी. ऐसे में इस संघर्ष को विश्व युद्ध में तब्दील होने से कोई रोक नहीं सकता.
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