Atal: कॉलेज के कैंपस से लेकर PM हाउस तक, कैसे बेनाम रही अटल बिहारी वाजपेयी की प्रेम कहानी?
Atal Bihari Vajpayee Love Story: अटल बिहारी वाजपेयी कॉलेज के जमाने में एक लड़की से प्रेम करते थे. लेकिन लड़की राजपरिवार थी, लिहाजा उसके घरवालों को यह रिश्ता मंजूर नहीं था. फिर उसकी शादी कहीं और कर दी गई.
नई दिल्ली: Atal Bihari Vajpayee Love Story: कॉलेज में एक नौजवान लड़का एक सुंदर नैनों वाली लड़की को चाहने लगा. धीरे-धीरे लड़की भी लड़के को प्रेम करने लगी. बात घरवालों तक पहुंची तो उन्होंने इससे रिश्ते से आपत्ति जताई. एक बड़े घर की बेटी का सामान्य से लड़के से प्रेम करना सबको नागवार गुजरा. फिर लड़की की शादी कहीं और कर दी गई. पढ़ने में यह किसी 80 या 90 के दशक की फिल्म का प्लॉट मालूम होता है, लेकिन यह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की प्रेम कहानी है, जो देश के लिए हमेशा एक पहेली रही.
राजकुमारी कौल
ग्वालियर के कॉलेज में पढ़ने वाला नौजवान अब देश का नामी वक्ता हो चुका था. बलरामपुर से साल 1957 में जनसंघ की टिकट पर सांसद बना, नाम था अटल बिहारी वाजपेयी. वाजपेयी भले सांसद बन गए, लेकिन वो उस लड़की को न भूल पाए जो कॉलेज में हमदम हुआ करती थी. राजकुमारी हक्सर अब राजकुमारी कौल हो चुकी थीं.
16 साल बाद...
अटल युवा सांसद के तौर पर दिल्ली पहुंचे. उन्हें रामजस कॉलेज में भाषण देने के लिए बुलाया गया, यहां उनकी मुलाकात प्रोफेसर बृजनारायण कौल और उनकी पत्नी राजकुमारी कॉल से हुई. राजकुमारी से यह मुलाकात 16 साल बाद हुई. फिर तो मानो ये सिलसिला चल निकला. अक्सर अटल की काले रंग की एंबेसडर गाड़ी प्रोफेसर कौल के घर के बाहर देखी जाने लगी.
शादी नहीं की
एक वक्त ऐसा आया जब कौल दंपती वाजपेयी के घर में रहने लगे. PM हाउस में एक दूसरी महिला को देखकर वहां आने वाले नेताओं को शुरू-शुरू में ये अजीब लगा, लेकिन बाद में सहज हो गुया. RSS को राजकुमारी कौल और वाजपेयी के रिश्ते से आपत्ति थी. वाजपेयी को कई नेताओं ने राजकुमारी को छोड़ देने या उनसे शादी करने की सलाह दी. वाजपेयी ने दोनों ही बातें नहीं मानीं.
वाजपेयी की हाई कमांड
एक कार्यक्रम के दौरान वाजपेयी ने कहा था कि मैं अविवाहित जरूर हूं, लेकिन ब्रह्मचारी नहीं हूं. इसके बाद राजनीतिक गलियारों में फुसफुसाहट का दौर शुरू हुआ, लेकिन किसी ने वाजपेयी से सीधे तौर पर कोई सवाल नहीं किया. वाजपेयी पर राजकुमारी कौल का अधिकार था, यह बात भी सियासी गलियारों में फैलने लगी. पत्रकार करण थापर अपनी किताब डेविल्स एडवोकेट में लिखते हैं कि मैं वाजपेयी का इंटरव्यू लेने के कई जतन कर चुका था, लेकिन सफल नहीं हो पाया. एक दिन मैंने रायसिना रोड पर फोन किया. सामने से एक महिला की आवाज आई. वो राजकुमारी कौल थीं, मैंने उन्हें अपनी व्यथा बताई. राजकुमारी ने कहा कि मुझे उनसे बात करने दीजिए. अगले दिन मुझे इंटरव्यू के लिए बुला लिया गया. उन्होंने मुझसे कहा कि आपने तो हाई कमांड से बात कर ली. अब मैं आपको कैसे इनकार कर सकता हूं.
बेनाम प्रेम कहानी का अंत
विनय सीतापति ने अपनी किताब 'जुगलबंदी' में लिखा कि राजकुमारी कौल का वाजपेयी को बदलने के बड़ा हाथ है. उन्होंने वाजपेयी को लिबरल और कॉस्मोपॉलिटन बनाया. कपड़े धोने की साबुन से नहाने और घी में तली हुई पूड़ियां खाने वाले एक बेतरतीब जिंदगी जी रहे शख्स के जीवन में मिसेज कौल का होना, कड़ाके की ठंड में सुहानी धूप का होने जैसा है. राजकुमारी कौल का 2014 में निधन हो गया, मगर अटल उनकी अंतिम यात्रा में शामिल न हो सके, क्योंकि वो साल 2009 से ही गंभीर रूप से बीमार थे. राजकुमारी कौल के जाने के साथ ही भारतीय राजनीति की एक 'बेनाम प्रेम कहानी' का अंत हो गया.
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