Bhairon Singh Shekhawat: 10 रुपये लेकर चुनाव लड़ने निकला था ये नेता, बाद में बन गया राजस्थान का CM!
Bhairon Singh Shekhawat Death Anniversary: देश के पूर्व उपराष्ट्रपति और राजस्थान के पूर्व CM भैरोंसिंह शेखावत की आज 14वीं पुण्यतिथि है. विरोधी भी भैरोंसिंह के कायल हुआ करते थे.
नई दिल्ली: Bhairon Singh Shekhawat Story: धोरों के प्रदेश राजस्थान की राजनीति में 'बाबोसा' उस शख्सियत का नाम है, जिनके विरोधी भी कायल थे. वे कहते थे, 'मैं दोस्त बनाता हूं, दुश्मन नहीं.' मुख्यमंत्री से लेकर उपराष्ट्रपति पद तक का सफर तय करने वाले इस नेता का नाम भैरोंसिंह शेखावत है. आज उनकी 14वीं पुण्यतिथि है.
हुआ करते थे थानेदार
भैरोंसिंह शेखावत का जन्म 23 अक्टूबर, 1923 को सीकर की खाचरियावास गांव में हुआ. आम राजपूत परिवार में जन्मे भैरोंसिंह रौबदार छवि के थे. लिहाजा, होश संभालते ही पुलिस में भर्ती हो गए. लेकिन नौकरी ज्यादा दिन नहीं चली. साल 1947 में कुछ पुलिस वाले सीकर के हरदयाल टॉकीज में फिल्म देखने गए, वहां उनकी मैनेजर से हाथापाई हो गई. इनमें भैरोसिंह भी थे. जब रावराजा कल्याण सिंह को इस घटना का पता चला तो वे खफा हुए. उन्होंने इलाके के एसपी को बुलावा भेजा. नतीजा ये रहा कि भैरोसिंह को नौकरी छोड़नी पड़ी.
आडवाणी के कहने पर लड़ा चुनाव
नौकरी छूटने के बाद भैरोंसिंह अपना पारंपरिक पेशा यानी खेती करने लगे. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. भैरोंसिंह के भाई बिशन सिंह का संघ से जुड़ाव था. साथ ही वे एक सरकारी स्कूल में टीचर भी थे. उन दिनों जनसंघ राजस्थान में अपनी जड़ें जमा रहा था. लालकृष्ण आडवाणी राजस्थान की सूखी धरती पर जनसंघ की ऐसी कोंपल लगाना चाहते थे जो कल को वटवृक्ष बन सके. आडवाणी ने सीकर की दातारामगढ़ सीट से बिशन सिंह को चुनाव लड़ने के लिए कहा. लेकिन बिशन सिंह सरकारी नौकरी किया करते थे, इसलिए उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया. अपने भाई भैरोसिंह को चुनाव लड़वाने का फैसला किया. यहीं से भैरोंसिंह की किस्मत ने करवट ली.
पत्नी ने दिए थे 10 रुपये
कहते हैं कि जब भैरोंसिंह चुनाव लड़ने चले तो उनकी पत्नी सूरज कुंवर ने उन्हें 10 रुपये एक नोट दिया था. भैरोंसिंह साल 1952 में दातारामगढ़ से अपना पहला ही चुनाव जीत गए और विधायक बन गए. वे तीन बार विधायक बने, वो भी अलग-अलग सीटों से.
विरोधी से बोले- आप चुनाव जीतेंगे
साल 1972 का एक किस्सा मशहूर है. शेखावत गांधीनगर सीट से चुनाव लड़ रहे थे, उनके सामने कांग्रेस से जनार्दन गहलोत थे. शेखावत एक दिन अचानक जनार्दन सिंह के घर पहुंचे. जनार्दन से उन्होंने कहा- घबराओ मत, चुनाव थे ही जीतस्यो. (घबराइए मत, आप ही चुनाव जीतेंगे) हुआ भी यही, भैरोंसिंह 5167 वोटों से चुनाव हार गए.
मुख्यमंत्री बने, फिर उपराष्ट्रपति
साल 1977 में जनता पार्टी ने राजस्थान में जीत दर्ज की. भैरोंसिंह पहली बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद वे 1990 और 1993 में भी राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे. फिर 2002 में भैरोंसिंह देश के उपराष्ट्रपति बन गए.
विपक्षी नेता ने दिया भोज
कांग्रेस के नेता अशोक गहलोत भैरोंसिंह को अदब से याद करते हैं. एक बार गहलोत ने बताया था कि 1996 में भैरोंसिंह शेखावत CM रहते हुए इलाज के लिए अमेरिका गए. पीछे से उनकी सरकार गिराने की साजिश हुई. तब मैंने साफ कहा था कि कोई इंसान इलाज करवाने गया है, हम पीछे से सरकार नहीं गिरा सकते. ये हमारी परंपरा नहीं रही. जब भैरोंसिंह उपराष्ट्रपति बने, तब गहलोत राजस्थाने के मुख्यमंत्री थे. विरोधी होने के बावजूद गहलोत ने बाबोसा के सम्मान में बड़ा भोज दिया था.
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