नई दिल्ली: Bharat Bandh 21 August 2024: देश के करीब-करीब सभी राजनीतिक दलों ने 'भारत बंद' का समर्थन किया है. फिर चाहे भाजपा, कांग्रेस, बसपा, सपा या आम आदमी पार्टी हो. यूं तो ये पार्टियां एक-दूसरे की धुर विरोधी हैं. लेकिन आरक्षण के कारण हो रहे 'भारत बंद' को लेकर एकराय हैं. ऐसे में ये समझना जरूरी है कि इन राजनीतिक दलों का 'भारत बंद' को समर्थन देना सियासी मजबूरी क्यों है? आइए, जानते हैं कि दलित और आदिवासी समुदाय का राजनीतिक प्रभुत्व कितना है?


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मायावती ने क्या ट्वीट किया?
BSP चीफ मायावती ने हाल ही में एक ट्वीट किया. उन्होंने लिखा- BSP का भारत बंद को समर्थन, क्योंकि भाजपा व कांग्रेस आदि पार्टियों के आरक्षण विरोधी षडयंत्र एवं इसे निष्प्रभावी बनाकर अन्ततः खत्म करने की मिलीभगत के कारण 1 अगस्त 2024 को SC/ST के उपवर्गीकरण व इनमें क्रीमीलेयर सम्बंधी मा. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के विरुद्ध इनमें रोष व आक्रोश.



राजनीतिक दलों की सियासी मजबूरी
दरअसल, सभी दल दलित और आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए 'भारत बंद' का समर्थन कर रहे हैं. लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में दलित और आदिवासी समाज सत्ता तक पहुंचाने में मदद करता है.
दलित: देश में 17% दलित वोटर हैं. 84 लोकसभा सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं. 150 से अधिक लोकसभा सीटों पर इनका प्रभाव है.
आदिवासी: ये देश की कुल आबादी का 8.6% हिस्सा हैं. 543 लोकसभा सीटों में से 47 सीटें ST (अनुसूचित जनजाति) के लिए आरक्षित हैं.


विधानसभा चुनाव में दलित-आदिवासी अहम
दलित और आदिवासी समाज को मिलाकर देखें तो देश की 131 लोकसभा सीटें इनके लिए आरक्षित हैं. आगामी विधानसभा चुनाव के लिए सभी दल इन्हें साधना चाहते हैं  हरियाणा में 21 प्रतिशत दलित आबादी है. विधानसभा की 17 सीटें आरक्षित हैं. महाराष्ट्र में दलितों की आबादी करीब 10.5% है. जबकि आदिवासियों की आबादी 9.4% है. इसी तरह झारखंड में भी आदिवासियों की आबादी 26% है, दलित आबादी 11% है.


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