नई दिल्लीः समान नागरिक संहिता को लागू करने को लेकर देश में अक्सर बहस देखने को मिलती है. उत्तराखंड और गुजरात में इसे लागू करने को लेकर काम किया जा रहा है. इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में केस दायर हुआ था, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था.


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समान नागरिक संहिता लागू करने पर फैसला नहीं
इस संबंध में गुरुवार को संसद में पूछा गया तो सरकार ने बताया कि समान नागरिक संहिता लागू करने पर कभी कोई निर्णय नहीं लिया गया है. केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने बृहस्पतिवार को राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में यह भी बताया कि 22वां विधि आयोग समान नागरिक संहिता से संबंधित मामले पर विचार कर सकता है. 


21वें विधि आयोग से किया गया था अनुरोध
उन्होंने बताया कि सरकार ने भारत के 21वें विधि आयोग से अनुरोध किया था कि समान नागरिक संहिता से संबंधित विभिन्न विषयों का परीक्षण करें और उस पर अपना सुझाव दें. रिजिजू ने कहा कि लेकिन 21वें विधि आयोग की अवधि 31 अगस्त 2018 को समाप्त हो गई. 


उन्होंने कहा, ‘विधि आयोग से प्राप्त जानकारी के अनुसार समान नागरिक संहिता से संबंधित मामला 22वें विधि आयोग की ओर से अपने विचार के लिए लिया जा सकेगा. अतः समान नागरिक संहिता लागू करने पर कभी कोई निर्णय नहीं लिया गया है.’ 


फरवरी 2020 में गठित हुआ था वर्तमान विधि आयोग
वर्तमान विधि आयोग का गठन 21 फरवरी, 2020 को किया गया था, लेकिन इसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति आयोग का कार्यकाल समाप्त होने से महीनों पहले पिछले साल नवंबर में की गई थी. 21 वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता से संबंधित विभिन्न मुद्दों की जांच की और व्यापक चर्चा के लिए अपनी वेबसाइट पर ‘परिवार कानून में सुधार’ नामक एक परामर्श पत्र अपलोड किया. 


ज्ञात हो कि समान नागरिक संहिता भारतीय जनता पार्टी का एक प्रमुख चुनावी मुद्दा रहा है. वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में यह भाजपा के प्रमुख चुनावी वादों में शुमार था. उत्तराखंड और गुजरात जैसे भाजपा शासित कुछ राज्यों ने इसे लागू करने की दिशा में कदम उठाया है.


(इनपुटः भाषा)


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