Bharat Bandh: अबतक का सबसे बड़ा भारत बंद, किसी की गई जान तो कइयों ने गंवाई नौकरी, मीडिया को भी नहीं लगी थी भनक
Bharat Bandh: 8 अप्रैल 2024 को हुए भारत बंद में कई युवा कार्यकर्ताओं को हॉस्टल में घुसकर बेरहमी से पीटा गया था. किसी का पैर तो किसी का हाथ भी टूटा था. वहीं किसी को फर्जी मामलों में कई महीनों तक जेल की हवा खानी पड़ी थी.
नई दिल्ली: Bharat Bandh: सुप्रीम कोर्ट के अनुसूचित जाती और जनजाति आरक्षण में 'क्रीमिलेयर' पर फैसले को लेकर देश के कई दलित और आदिवासी संगठनों ने आज बुधवार 21 अगस्त 2024 को भारत बंद का आव्हान किया है. बता दें कि देशभर में समय-समय पर आव्हान किया जाता रहा है. चलिए जानते हैं कि अबतक का सबसे बड़ा भारत बंद कब रहा है.
भारत बंद का इतिहास
2 अप्रैल 2018 को अचानक हुआ भारत बंद अभी तक का सबसे बड़ा भारत बंद माना जाता है. मीडिया को भी इस दिन की कोई भनक नहीं लग पाई थी. भारतीय इतिहास में 2 अप्रैल 2018 का भारत बंद संपूर्ण भारत बंद के रूप मे दर्ज है. इस दिन देशभर के आदिवासी और दलित सैकड़ों की संख्या में सड़कों पर उतर आए थे. इन लोगों ने अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम में सुप्रीम कोर्ट की ओर से संधोधन किए जाने पर नाराजगी जाहिर की थी. ‘सुरक्षा कवच’ कहे जाने वाले अधिनियम पर संशोधन को लेकर देशभर के दलितों और आदिवासियों में क्रोध भर उठा था.
विरोध प्रदर्शन ने लिया था उग्र रूप
2 अप्रैल 2018 को हुए भारत बंद में देश के कई अलग-अलग हिस्सों में हिंसा और आगजनी हुई थी. 'TOI'की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस दिन हुए भारत में शामिल 11 लोगों को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ा था. वहीं राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और गुजरात जैसे कई राज्यों में अनगिनत आदिवासी-दलित कार्यकर्ताओं पर मुकदमे भी दर्द किए गए थे. साथ ही राजस्थान और पंजाब के कई क्षेत्रों में इंटरनेट सेवाएं भी बंद कर दी गई थीं. मध्यप्रदेश के ग्वालियर में भारत बंद के प्रदर्शन के दौरान गोलियां चली थीं. इस दौरान कई असामाजिक तत्वों ने हिंसा भड़काने की भी कोशिश की थी.
कार्यकर्ताओं को बेरहमी से पीटा गया
'द प्रिंट' की एक रिपोर्ट के मुताबिक 8 अप्रैल 2024 को हुए भारत बंद में कई युवा कार्यकर्ताओं को हॉस्टल में घुसकर बेरहमी से पीटा गया था. किसी का पैर तो किसी का हाथ भी टूटा था. वहीं किसी को फर्जी मामलों में कई महीनों तक जेल की हवा खानी पड़ी थी तो किसी को नौकरी गंवानी पड़ी थी. इसके साथ ही राजस्थान के अलग-अलग पुलिसथानों में उन आदिवासी-दलित कार्यकर्ताओं की लिस्ट बनाई गई, जो आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे, ताकि पता लग सके कि किसे हिरासत में लेना है.
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