नई दिल्ली: एक तो कोरोना के कहर ने हर किसी को खौफ के साए में जीने को मजबूर कर दिया है, उपर से बिहार के बक्सर से इतनी भवायह तस्वीरें सामने आईं कि हर किसी की रूह कांप उठी. यहां गंगा नदी में लाशों का ढेर लगा हुआ है. ये वीभत्स तस्वीरें विचलित कर देने वाली हैं, इसीलिए हम आपको नहीं दिखा सकते हैं.


बिहार के बक्सर में लगा लाशों का मजमा


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कोरोना से अब देश की नदियों को खतरा पैदा हो गया है. बिहार के बक्सर में गंगा घाट पर लाशों का मजमा लग गया है. गंगा नदी में जिंदगी से जंग हार चुके लोगों के शव तैरते मिल रहे हैं. नदियों के किनारे बसे लोग शव मिलने से दहशत में हैं. कोरोना काल के बीच ये लापरवाही हर किसी को महंगी पड़ सकती है.


हम आपको समझाते हैं कि आखिर ये दर्दनाक मंजर किसकी लापरवाही है मजबूरी का नतीजा है. इस लापरवाही का पूरे देश को भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. ऐसे में आपको इन 3 पहलुओं को समझना चाहिए.


1). खर्च बचाने के चक्कर में आ सकती है भारी आफत


कोरोना महामारी के दौरान श्मशान घाट और कब्रिस्तानों में भारी भीड़ देखी जा रही है. कोरोना के चलते शवदाह के खर्च महंगे होते जा रहे हैं, ऐसे में गरीब और मजबूर लोगों को खासा परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. खर्च से बचने के लिए लोगों ने अब एक नई तरकीब निकाली है. वो अपने मृतकों के शवों को नदियों में बहा दे रहे हैं.


ऐसा करके भले ही वो महंगे खर्च से छुटकारा पा जा रहे हों, लेकिन इसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. नदियों में लाशें बहाने के चलते कई तरह की संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा भी बढ़ता जा रहा है. साथ ही उनकी इस लापरवाही के चलते दूसरों को अपनी जान गंवानी पड़ सकती है.


2). जल प्रदूषण और चील-कौवे, गिद्ध-कुत्तों का कहर


पिछले 1 हफ्ते के भीतर ही बक्सर के चौसा श्मशान घाट पर गंगा के किनारे भारी तादाद में लाशे मिली हैं. लाशों को नदियों में बहा दिया गया, जिसके बाद शव गंगा के किनारे आकर लग गई है. गिद्ध और कुत्ते शवों को नोच-नोच कर अपना आहार बना रहे हैं. इससे गंगा घाट किनारे का नजारा और भी वीभत्स हो गया है.


बक्सर में मां गंगा का किनारा शवों से पटा पड़ा है. कुत्ते शवों को नोच रहे हैं, मां गंगा सबका कष्ट हरती हैं और पाप धुलती हैं लेकिन इन दिनों बक्सर में खुद गंगा मईया कष्ट में हैं. इस लापरवाही से जल प्रदूषण का कहर भी बढ़ेगा, जितनी लापरवाही लोगों की है उतना ही प्रशासन ने लापरवाह रवैया अख्तियार किया है.


3). कोरोना विस्फोट, लोगों और प्रशासन की लापरवाही


बक्सर में नदी किनारे मिले शव करीब 5 से 7 दिन पुराने हैं और आशंका जताई जा रही है कि प्रयागराज और गाजीपुर से बहकर ये शव यहां पहुंचे हैं. स्थानीय अधिकारियों की तरफ से भी गंदगी को साफ करने को लेकर लंबे समय से कोई पहल नहीं की गई है.


अफसर घाट की सफाई कराने और शवों का अंतिम संस्कार कराने के बजाय इस बात पर बहस कर रहे हैं कि शव कहां से बहकर आए हैं. बक्सर में गंगा किनारे बसे गांववालों के आक्रोश के बाद प्रशासन हरकत में आया और एसडीएम ने सरकारी अमले के साथ मौके का जायजा लिया.


फिलहाल बक्सर प्रशासन घाट पर जेसीबी मशीन से गड्डा खुदवाकर लाशों को दफनाने की प्रक्रिया पूरी कर रहा है. बक्सर के स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि यहां कोविड संक्रमित मरीजों के दाह संस्कार करने के लिए 15-20 हजार रुपए का खर्च आता है. जिसके चलते मजबूर लोग लाशों को नदियों में ही बहा दे रहे हैं.


नदी किनारे बसे लोगों के सामने दोहरा संकट


यमुना और गंगा को भारत में जीवनदायिनी माना जाता है. दोनों नदियों के किनारे करोड़ों लोगों की बसावट है. नदियों में तैरते शव से नदी किनारे बसे लोगों के सामने दोहरा संकट है. एक तो पानी का इस्तेमाल करने में उन्हें डर लग रहा है और दूसरा नदी किनारे जाकर पूजा पाठ करने की हिम्मत भी नहीं हो रही. इसके अलावा नदी के जल के प्रदूषित होने का खतरा है.


हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय ये कह चुका है कि तैरते शव से पानी के जरिए कोरोना फैलने का कोई खतरा नहीं है, लेकिन नदियों में तैरते शव अनिष्ट की आशंका को जन्म दे रहे हैं और प्रशासन को तेजी से काम करने की जरूरत है.


यूपी और बिहार में कोरोना के आंकड़े कागजों में कम होने शुरू हो गए हैं लेकिन गंगा नदी में बहते शव इशारा करते हैं कि ग्रामीण इलाकों में हालात बद से बदतर हैं और कोरोना महामारी का कहर वहां ऐसा टूटा है कि लोगों के पास दाह संस्कार करने के संसाधन कम पड़ गए हैं, लिहाजा वो शवों को जलाने के बजाय नदी में प्रवाहित कर दे रहे हैं.


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यूपी और बिहार में जीवनदायिनी यमुना और गंगा नदियों में शवों का अंबार देखकर लोग सकते में हैं. नदी किनारे जाने से भी लोगों को डर लगने लगा है. इससे पहले तस्वीरें यूपी के हमीरपुर से भी आई थीं जहां यमुना नदी में शव बहते देखे गए थे अब बिहार के बक्सर में शव ही शव नदी किनारे दिखाई दे रहे हैं.


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