नई दिल्ली: Nitish Kumar and George Fernandes: बिहार की सियासत में बड़े उलटफेर के कयास लगाए जा रहे हैं. चर्चा है कि नीतीश कुमार जल्द ही लालू यादव की पार्टी RJD से गठबंधन तोड़कर BJP के साथ जाने वाले हैं. हालांकि, नीतीश पहले भी ऐसा कर चुके हैं. वो RJD का साथ छोड़कर BJP के साथ जा चुके हैं.  ये तो वो बात है जो आपको और हमें याद है. लेकिन नीतीश कुमार तो सियासत के पुराने खिलाड़ी है. लालू से पहले वो अपने ही राजनीतिक गुरु को भी पटखनी दे चुके हैं.  


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जॉर्ज की सदारत में आगे बढ़े नीतीश
देश के बड़े समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस नीतीश कुमार के राजनीतिक गुरु हैं. नीतीश जॉर्ज की ही छत्रछाया में बिहार के लोकप्रिय नेता बने थे. दरअसल, साल 1994 में  जॉर्ज फर्नांडिस ने जनता दल तोड़कर जनता दल (जॉर्ज) नाम से नई पार्टी बनाई. इस पार्टी में जनता दल के 14 सांसद शामिल हुए, इनमें एक नाम नीतीश कुमार का भी था. हालांकि, जॉर्ज इस पार्टी को ज्यादा दिन नहीं चला पाए और नीतीश के साथ 'समता पार्टी' बनाई.


नीतीश बने स्थापित नेता
समता पार्टी ने भाजपा को समर्थन दिया. साल 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने और जॉर्ज फर्नांडिस उनकी सरकार में मंत्री बने. इस बीच नीतीश ने बिहार में अपनी राजनीतिक धार तेज कर ली. वो एक प्रदेश में एक स्थापित नेता के तौर पर पहचाने जाने लगे. नीतीश कुमार ने लंबी परवाज तब भरी, जब जॉर्ज ने नीतीश और शरद यादव के साथ मिलकर जनता दल- यूनाइटेड यानी JDU बनाई. 


नीतीश और जॉर्ज में मनमुटाव
JDU बनने के बाद नीतीश और जॉर्ज के रिश्ते सहज नहीं रह पाए. नीतीश ने खुद को एक पावर सेंटर के तौर पर स्थापित किया. लेखक अरुण सिन्हा ने किताब 'नीतीश कुमार और उभरता बिहार' में बताया है कि JDU में नीतीश और जॉर्ज के गुट न गए थे. जॉर्ज ने साल 2003 में नीतीश को अपनी कुछ रैलियों में भी नहीं बुलाया. पटना की एक रैली में नीतीश ने जॉर्ज को नहीं बुलाया. यह चर्चा आम हो गई थी कि जॉर्ज और नीतीश कुमार में फूट हो गई है. 


जब नीतीश बने CM कैंडिडेट
इसके बाद साल 2005 के विधानसभा चुनाव आए. JDU और भाजपा मिलकर चुनाव लड़ रही थीं. भाजपा के तत्कालीन प्रदेश प्रभारी अरुण जेटली चाहते थे कि नीतीश को सीएम कैंडिडेट के तौर पर पेश किया जाए. उन्होंने इसकी घोषणा भी करवा दी. लेकिन जॉर्ज फर्नांडिस ने कहा कि हमारी पार्टी JDU ने अभी तक किसी नेता का नाम तय नहीं किया. लेखक संतोष सिंह ने अपनी किताब 'कितना राज, कितना काज' में नीतीश के हवाले से लिखा है कि जॉर्ज साहब को इसकी जानकारी नहीं थी. भ्रम की स्थिति पैदा हुई, जो 3 घंटे में दूर कर दी गई. जेटली जी ने जॉर्ज साहब को पूरी बात समझाई. फिर जॉर्ज मेरे नाम पर राजी हो गए. हालांकि, कहा जाता है इस वाकये के बाद नीतीश और जॉर्ज के बीच मतभेद शुरू हो गए थे.  


जब नीतीश ने काटा जॉर्ज का टिकट
मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. धीरे-धीरे नीतीश प्रदेश और पार्टी में मजबूत होते चले गए. जॉर्ज की उम्र भी बढ़ने लगी, लोग जॉर्ज से ज्यादा नीतीश से कनेक्ट करने लगे. साल 2009 में लोकसभा चुनाव आए. जॉर्ज मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ने के इच्छुक थे. लेकिन उन्हें खुद के द्वारा बनाई गई पार्टी यानी JDU ने ही टिकट नहीं दी. जॉर्ज ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और वो हार गए. ये वही सीट थी, जहां से जॉर्ज 1977 में 3 लाख वोटों से चुनाव जीते थे. लेकिन 2009 में मात्र 22 हजार वोट ही पा सके. इस तरह नीतीश कुमार ने अपने राजनैतिक गुरु जॉर्ज फर्नांडिस को पछाड़ दिया और आगे बढ़ गए. 


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