दिल्ली के बाद क्या अब महाराष्ट्र में उठेगा आबकारी नीति का मामला? जानिए पूरा विवाद
भाजपा मुंबई प्रमुख आशीष शेलार ने अघाड़ी सरकार की शराब नीति की जांच की मांग की है. तो क्या अब दिल्ली के बाद महाराष्ट्र की आबकारी नीति की सीबीआई जांच होगी?
नई दिल्ली: मुंबई भाजपा अध्यक्ष आशीष शेलार ने मंगलवार को पिछली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार की आबकारी और शराब नीति की जांच की मांग करते हुए भ्रष्टाचार का आरोप लगाया. यह मांग केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा 26 फरवरी को कथित शराब घोटाला मामले में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद आई है.
सिसोदिया पर जबरन वसूली का आरोप लगाया
मीडिया से बात करते हुए शेलार ने कहा कि दिल्ली में शराब घोटाले में जिस तरह से सिसोदिया पर जबरन वसूली का आरोप लगाया गया है, उसी तरह महाराष्ट्र की तत्कालीन (एमवीए) सरकार ने उस दौरान इसे अंजाम दिया था.
उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की अध्यक्षता में एमवीए सरकार द्वारा शराब निर्माताओं को दिए गए उत्पाद प्रोत्साहन, विदेशी शराब को कर में छूट, बार-पब को लाइसेंस शुल्क में छूट और दुकानों और सुपरमार्केट के माध्यम से शराब की बिक्री की अनुमति देने की बात कही.
महाराष्ट्र में भी क्या खुलेगी रियायतों की फाइल?
शेलार ने एक ट्वीट में कहा, क्या सीबीआई की दिल्ली जांच के तार महाराष्ट्र तक फैले हुए हैं? महाराष्ट्र में क्या इनाम में दी जाने वाली रियायतों की फाइल खुलेगी? इसलिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल घूमने आए थे?
केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के 24 फरवरी को ठाकरे से मुलाकात करने के दो दिन बाद सिसोदिया को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया.
जनवरी 2022 में, तत्कालीन एमवीए सरकार एक नई शराब नीति लेकर आई थी, इसमें पड़ोस की दुकानों और सुपरमार्केट के माध्यम से शराब की बिक्री की अनुमति दी गई थी.
जानिए क्या है पूरा माजरा और कैसे आया सामने
महाराष्ट्र का यह कदम पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश द्वारा अपने सभी हवाई अड्डों पर शराब की बिक्री की अनुमति देने, चार शहरों में चुनिंदा सुपरमार्केटों और सालाना 1 करोड़ रुपये या उससे अधिक आय वालों को होम बार लाइसेंस की अनुमति देने के एक हफ्ते बाद आया.
महाराष्ट्र में लगभग चार दर्जन वाइनरी हैं, ज्यादातर नासिक और उसके आसपास, पुणे, सांगली, अहमदनगर, सोलापुर में स्थित है. यहां भारत के शराब उत्पादन का 80 प्रतिशत उत्पादन होता है और वार्षिक 1,000 करोड़ रुपये के घरेलू राजस्व में दो तिहाई से अधिक का योगदान करते हैं.
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