नई दिल्लीः बंबई हाइकोर्ट का एक फैसला आलोचना का शिकार हो रहा है. मामला बाल यौन अपराध का था, जिसकी सुनवाई के बाद फैसले में कहा गया कि नाबालिग पीड़िता का कपड़े के ऊपर से स्तन स्पर्श करना पोक्सो के तहत यौन हमला नहीं कहा जा सकता.


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यह भी कहा गया कि इस घटना को यौन हमला मानने के लिए त्वचा से त्वचा का संपर्क होना चाहिए. हाइकोर्ट के इस फैसले के बाद इसके खिलाफ आक्रोश देखा जा रहा है. बाल अधिकार समूहों एवं कार्यकर्ताओं ने इस फैसले पर नाराजगी जताई है. इस फैसले को चुनौती देने के लिए तैयारी की जा रही है. 


क्या है मामला
दरअसल यह मामला एक नाबालिग पीड़िता से जुड़ा हुआ है. एक 12 वर्षीय बालिका के साथ यौन उत्पीड़न मामले में 39 वर्षीय व्यक्ति को सत्र अदालत ने दोषी करार दिया था. दोषी को 3 वर्ष कारावास की सजा सुनाई गई थी. घटना दिसंबर 2016 में हुई थी, जिसके बारे में बताया गया कि आरोपी लड़की को कुछ खिलाने के लालच के बहाने अपने घर ले गया था.



बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने इसी फैसले का संशोधन किया. उन्होंने 19 जनवरी को पारित एक आदेश में कहा कि 'यौन हमले का कृत्य माने जाने के लिए ‘यौन मंशा से त्वचा से त्वचा का संपर्क होना’ जरूरी है. 


जज ने दिया यह आदेश
उन्होंने कहा कि किसी भी छेड़छाड़ की घटना को यौन शोषण की श्रेणी में रखने के लिए घटना में 'यौन इरादे से किया गया स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट' होना चाहिए. नाबालिग को टटोलना, यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आएगा. गनेडीवाला ने अपने आदेश में कहा है, जहां उसने बच्ची का ब्रेस्ट छुआ और उसके कपड़े उतारने की कोशिश की.



कोर्ट ने कहा कि हालांकि, उसने बच्ची के कपड़े उतारे बगैर उसे छुआ था, तो इसे यौन शोषण नहीं माना जा सकता, बल्कि यह आईपीसी की धारा 354 के तहत एक महिला की शीलता भंग करने का मामला माना जाएगा. 


बाल अधिकार कार्यकर्ता नाराज 
इस फैसले पर अब बाल अधिकार कार्यकर्ता कड़ी नाराजगी जता रहे हैं. उन्होंने इसे निश्चित रूप से अस्वीकार्य, आक्रोशित करने वाला एवं आपत्तिजनक करार दिया है.  बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकारी निदेशक धनंजय टिंगल ने कहा कि उनकी कानूनी टीम मामले को देख रही है और मामले से जुड़े सभी संबंधित आंकड़े जुटा रही है. 



उन्होंने मीडिया से कहा कि हम इनपुट के अधार पर उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकते हैं.’’ आल इंडिया प्रोग्रेसिव वुमैंस एसोसिएशन की सचिव एवं कार्यकर्ता कविता कृष्णन ने इसे ‘आक्रोशित करने वाला फैसला’ करार देते हुए इसे कानून की भावना के खिलाफ बताया. उन्होंने कहा,  यह पूर्णत: बेतुका है और आम समझ की कसौटी पर भी नाकाम साबित होता है. मेरा प्रश्न है कि लैंगिक आधारित मामलों में न्यायाधीश के लिए कौन अर्हता प्राप्त करता है. 


ऐसा फैसला अपराध को प्रोत्साहन
वहीं इस फैसले पर पीपुल्स अगेंस्ट रेप इन इंडिया (परी) की अध्यक्ष योगिता भायाना ने कहा कि न्यायाधीश से यह सुनना निराशाजनक है और ऐसे बयान ‘ अपराधियों को प्रोत्साहित’ करते हैं. भायाना ने कहा कि निर्भया मामले के बाद वे यहां तक गाली को भी यौन हमले में शामिल कराने की कोशिश कर रहे हैं.



सेव चिल्ड्रेन के उप निदेशक प्रभात कुमार ने कहा कि पोक्सो कानून में कहीं भी त्वचा से त्वचा के संपर्क की बात नहीं की गई है. महिला कार्यकर्ता शमिना शफीक ने कहा कि महिला न्यायाधीश द्वारा यह फैसला देना दुर्भाग्यपूर्ण है. 


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