क्यों चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए पेश किए गए बिल पर विपक्ष को है ऐतराज? जानें ऐसा क्या बदलने जा रहा
केंद्र सरकार ने राज्यसभा में बिल पेश किया है जिसमें मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के चयन के लिए गठित की जाने वाली समिति में भारत के प्रधान न्यायाधीश की जगह एक कैबिनेट मंत्री को शामिल करने का प्रावधान किया गया है. यह बिल ऐसे समय में आया है जब बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयोग में शीर्ष नियुक्ति के लिए बनी समिति में पीएम, लोकसभा में विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस शामिल होंगे. अगर ये बिल पास हो जाता है तो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में चीफ जस्टिस शामिल नहीं होंगे.
नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने राज्यसभा में बिल पेश किया है जिसमें मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के चयन के लिए गठित की जाने वाली समिति में भारत के प्रधान न्यायाधीश की जगह एक कैबिनेट मंत्री को शामिल करने का प्रावधान किया गया है. यह बिल ऐसे समय में आया है जब बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयोग में शीर्ष नियुक्ति के लिए बनी समिति में पीएम, लोकसभा में विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस शामिल होंगे. अगर ये बिल पास हो जाता है तो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में चीफ जस्टिस शामिल नहीं होंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने बीते मार्च में अपने फैसले में कहा था कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए संसद द्वारा कानून न बनाए जाने तक प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और प्रधान न्यायाधीश की सदस्यता वाली समिति की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा इन चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति की जाएगी.
केजरीवाल ने उठाए सवाल
विपक्ष ने इस विधेयक को लेकर सरकार की आलोचना की है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दावा किया कि यह कदम चुनावों की निष्पक्षता को प्रभावित करेगा. केजरीवाल ने ट्विटर पर कहा कि यह 'बहुत खतरनाक स्थिति' है. उन्होंने लिखा, 'मैंने पहले भी कहा था कि प्रधानमंत्री देश की सर्वोच्च अदालत की बात नहीं मानते हैं. उनका संदेश स्पष्ट है-उच्चतम न्यायालय उनकी पसंद के खिलाफ जो भी फैसला देगा, वह उसे पलटने के लिए संसद के जरिये कानून लेकर आएंगे. अगर प्रधानमंत्री उच्चतम न्यायालय के फैसले का पालन नहीं करते हैं, तो यह बहुत खतरनाक स्थिति है.'
चुनावों की निष्पक्षता पर जताई चिंता
केजरीवाल ने कहा, 'उच्चतम न्यायालय ने एक निष्पक्ष समिति बनाई थी, जो निष्पक्ष निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति करेगी. प्रधानमंत्री ने उच्चतम न्यायालय का फैसला पलटते हुए एक समिति गठित की है, जो उनके नियंत्रण में रहेगी और वह इसके जरिये अपनी पसंद के व्यक्ति को चुनाव आयुक्त बना सकते हैं. इससे चुनावों की निष्पक्षता पर असर पड़ेगा.'
उन्होंने कहा कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए प्रस्तावित समिति में 'भाजपा के दो और कांग्रेस का एक सदस्य' होगा. उन्होंने आरोप लगाया, 'जाहिर तौर पर नियुक्त होने वाला निर्वाचन आयुक्त भाजपा के प्रति वफादार होगा.'
माकपा ने भी विधेयक की आलोचना की
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने भी इस बिल की आलोचना की. माकपा ने कहा कि यह निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता को 'नष्ट' कर देगा. माकपा ने सरकार पर मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति पर संविधान पीठ के फैसले को कमजोर करने का भी आरोप लगाया.
संविधान पीठ के फैसले को किया कमजोर
माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा, 'दिल्ली सरकार की शक्तियों पर उच्चतम न्यायालय के फैसले को नकारने के बाद, मोदी सरकार ने अब प्रधान न्यायाधीश की जगह प्रधानमंत्री की ओर से चुने गए कैबिनेट मंत्री को नियुक्त करके निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति पर एक और संविधान पीठ के फैसले को कमजोर कर दिया है!'
उन्होंने कहा, 'ऐसा प्रतीत होता है कि मोदी सरकार न्यायपालिका को अधीन बनाने के इजराइल की चरम दक्षिणपंथी सरकार के प्रयासों की नकल कर रही है. भारत का संविधान 'स्वतंत्र और निष्पक्ष' चुनाव कराने के लिए एक निष्पक्ष निर्वाचन आयोग का आदेश देता है. यह कदम निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता को नष्ट करता है.'
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